Editorial: महाराष्ट्र में पल पल बदलते चुनावी समीकरण

कहने को देश के दो राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन सबकी नजर महाराष्ट्र पर ही है। कारण भी हैं। एक तो महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई देश की आर्थिक राजधानी है। दूसरे, महाराष्ट्र न केवल आर्थिक रूप से विकसित राज्य है, अपितु यह राज्य देश में अपना अलग ही राजनीतिक महत्व रखता है। यही कारण है कि भले ही पिछले तमाम अनुमान जनता या चुनाव प्रबंधन ने खारिज कर दिए हों, फिर भी अनुमानों के घोड़े तो दौड़ाए ही जाने लगे हैं।
महाराष्ट्र विकास अघाड़ी यानि शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी, कांग्रेस और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना, या महायुति अर्थात अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी, भाजपा और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना), इनमें से कौन-सा गठबंधन चुनाव जीतेगा, इस समय यह कहना बहुत मुश्किल है। लेकिन फिलहाल तो दोनों के बीच मुकाबला बेहद कांटे का लग रहा है।
महाराष्ट्र की राजनीति में जितनी उथल पुथल होती है, उतनी शायद देश के अन्य किसी राज्य में नहीं होती। फिर भी, अपने-अपने अनुमान लगाए जा रहे हैं। 2019 में महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव के आधार पर राज्य में वर्तमान में चुनाव लड़ रहे विभिन्न दलों के समर्थन को आधार बनाकर आकलन करना ठीक नहीं होगा, क्योंकि सरकार किसी की बनी, तोडफ़ोड़ के बाद किसी और ने कब्जा कर लिया। दोनों प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियों शिवसेना और एनसीपी में टूट हो चुकी है।
लोकसभा चुनाव नतीजों को देखते हुए कई लोगों का मानना है कि महाविकास अघाड़ी आगे है क्योंकि इस गठबंधन ने कुल 48 लोकसभा सीटों में से 30 जीतकर बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। महायुति ने 17 ही सीटें जीती थीं। लेकिन यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण होगा कि वोट शेयर के मामले में दोनों ही गठबंधनों के बीच लगभग बराबरी का मुकाबला था। महाविकास अघाड़ी को 43.9 प्रतिशत वोट मिले थे और महायुति को 42.7 प्रतिशत। ऐसे में अगर कोई दोनों गठबंधनों द्वारा लोकसभा में जीती सीटों की संख्या के आधार पर वर्तमान में कोई निष्कर्ष निकालना बहुत समझदारी नहीं कही जा सकती।
अक्टूबर के पहले सप्ताह में लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा कराए चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण में भी किसी गठबंधन की दूसरे पर स्पष्ट बढ़त का कोई संकेत नहीं मिला है। इसके विपरीत इसने बहुत ही करीबी मुकाबले का संकेत दिया है क्योंकि लोकप्रिय समर्थन आधार के मामले में दोनों गठबंधन एक-दूसरे के बहुत करीब खड़े हैं। मौजूदा शिंदे सरकार द्वारा किए गए काम का बेहतर मूल्यांकन करने वाले मतदाताओं के अनुपात और शिंदे सरकार के प्रदर्शन से नाखुश लोगों के अनुपात में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं है। बढ़ती कीमतों और बेरोजगारी को लेकर लोगों में बढ़ती चिंता के स्पष्ट संकेत हैं, लेकिन ये दोनों मुद्दे महाराष्ट्र के लिए नई बात नहीं हैं।
सर्वेक्षण से पता चलता है कि विधानसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद है, जो राज्य के कुल मतदाताओं का लगभग 12 प्रतिशत हैं। उसे बौद्ध और आदिवासी समुदाय का समर्थन भी प्राप्त है। आर्थिक रूप से गरीब और निम्न वर्ग के मतदाताओं के बीच भी वह अपने प्रतिद्वंद्वी महायुति गठबंधन से आगे है। और ऐसा प्रतीत होता है कि महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में किसानों के बीच भी वही पहली पसंद बना हुआ है। लेकिन दूसरी ओर, महायुति गठबंधन सवर्णों, मराठों, ओबीसी और दलित मतदाताओं के बीच अधिक लोकप्रिय है। महायुति को उच्च वर्ग और आर्थिक रूप से संपन्न लोगों के बीच बड़ा समर्थन मिलता दिख रहा है। ध्यान रखें कि कुनबियों के वोट दोनों गठबंधनों के बीच समान रूप से विभाजित होते दिखते हैं।
लोकप्रियता के मामले में, उद्धव ठाकरे मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से आगे हैं। लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि महाविकास अघाड़ी के मतदाताओं के बीच उद्धव ठाकरे लगभग सर्वसम्मत विकल्प हैं। जबकि महायुति के मतदाता शिंदे और फडणवीस के बीच विभाजित हैं। ऐसे में यह बात महत्वपूर्ण हो जाती है कि गठबंधन और पार्टियां किस तरह से चुनाव लड़ती हैं और कौन-सा गठबंधन अपने गठबंधन सहयोगियों को दूसरों के मुकाबले बेहतर तरीके से मैनेज कर पाता है।
दोनों ही खेमों में टिकट-बंटवारे और सीट-शेयरिंग को लेकर अलग-अलग स्तर पर टकराव हैं। कई बार एक रात भी चुनाव नतीजों को बदल देती है, महाराष्ट्र में मतदान से पहले तो अभी कई रातें बाकी हैं। एक बड़ा मुद्दा मराठी बनाम गुजराती का भी अंडर करंट के रूप में मौजूद है। महाराष्ट्र की एक-दो बड़ी योजनाएं गुजरात हस्तांतरित किए जाने का भी मुद्दा है, तो हाल ही में गुजरात जेल में बंद लारेंस विश्नोई द्वारा फिल्मनगरी में एक बार फिर से अंडरवल्र्ड की दहशत बनाने का मुद्दा भी बनता दिख रहा है। विश्नोई के गुर्गों से जिस तरह बाबा सिद्दीकी की हत्या कराई गई और सलमान खान को लगातार धमकियां दी जा रही हैं, इसके माध्यम से हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा भी सामने आता दिख रहा है। अब कौन सा मुद्दा कब हावी हो जाए, कहा नहीं जा सकता। मैदान में अघाड़ी के मुकाबला प्रबंधन में माहिर भाजपा से है, यह नहीं भूलना चाहिए।
– संजय सक्सेना


