Edirorial: फिर पोषण आहार घोटाला…!

मध्यप्रदेश में एक बार फिर पोषण आहार घोटाला सामने आया है। 1657 टन पोषण आहार कागजों में बांट दिया गया। और यह खुलासा हुआ है कैग की रिपोर्ट में। प्रदेश में पूर्व में भी बड़े स्तर पर पोषण आहार घोटाला हो चुका है और उसमें एक कंपनी के अधिकारियों सहित नोडल एजेंसी एमपी एग्रो के अधिकारियों के यहां भी छापे मारे गये थे, लेकिन बाद में मामला ठंडा पड़ गया और आरोपी कंपनी वाले खुले घूम रहे हैं।
नई खबर के अनुसार कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल यानि कैग की जो रिपोर्ट विधानसभा में पेश हुई है, उसमें पोषाहार बनाने वाले सयंत्रों ने स्टॉक में माल न होने के बावजूद 773 टन पोषाहार की फर्जी आपूर्ति दिखाये जाने की जानकारी दी गई है। इसके अलावा 834 टन पोषाहार को परिवहन में भी फर्जी बिल दिखाए गए। इसके बाद पड़ताल की तो कई चौंकाने वाले खुलासे हुए। साफ तौर पर इस मामले में विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत रही है।
कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2018 से 2021 के बीच जिन वाहनों से पोषण आहार होना बताया गया, वह इससे पहले ही कबाड़ में कट चुके थे। इस वाहनों में बाइक, ऑटो और छोटी कार शामिल हैं। कई वाहन मालिकों को तो इसकी जानकारी तक नहीं है। यानि वाहनों के फर्जी नंबर डाले गये। यही नहीं, जिन ट्रकों से विभिन्न जिलों में भेजना बताया गया वह हकीकत में बाइक, ऑटो, छोटी कार और टैंकर थे। एक बाइक से 18 टन पोषण आहार का परिवहन दिखाया गया।
विधानसभा की लोक लेखा समिति यानि पीएसी ने इस मामले में महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव से जवाब मांगा था। इसके बाद विभाग की कमिश्नर ने 21 दिसंबर 24 को इस संबंध में प्रदेश के छह संयुक्त संचालकों को नोटिस जारी कर दिए गये हैं। प्रदेश में 6 माह से 3 वर्ष तक के 34.69 लाख बच्चों, 14.25 लाख गर्भवती एवं धात्री महिलाओं और 64 हजार किशोरियों के लिए प्रति माह टेक होम राशन दिया जाता है। यह टीएचआर प्रदेश के 6 सयंत्रों में बनाकर विभिन्न जिलों में भेजा जाता है। ये संयंत्र शिवपुरी, सागर, मंडला, धार, रीवा और बाड़ी में लगे हुए हैं।
महिला एवं बाल विकास विभाग के चालान के अनुसार, ट्रक नंबर एमपी 09 एचई 9901 से पोषण आहार सप्लाई किया गया। जांच में यह कार निकली। कैग ने आपत्ति ली तो विभाग ने इसे लिपिकीय त्रुटि बता दिया। बाद में सही नंबर एमपी 04 एचई 9901 बताया। पड़ताल में यह भी भिंड के रविंद्र सिंह की कार निकली। रविंद्र की कार से 2018 में सप्लाई बताई गई, जबकि यह 2014 में कबाड़ हो चुकी थी और रविंद्र सिंह को इसका पता ही नहीं कि उसकी गाड़ी का नंबर कहीं दर्ज किया गया है।
विभाग के चालान में ट्रक नंबर एमपी 09 एचसी 0355 से पोषण आहार सप्लाई बताई। जांच में यह ग्वालियर के दिनेश जोशी की कार निकली। रजिस्ट्रेशन 2015 में खत्म हो चुका था। कैग की आपित्त पर विभाग ने इसे भी लिपिकीय त्रुटि बताया और सही नंबर एमपी 09 एचसी 3055 बताया। पड़ताल में यह गाड़ी भी ठाकुर माखीजा के नाम पर था, जिसका रजिस्ट्रेशन 2016 में समाप्त हो चुका था। इससे 15.85 टन सप्लाई बताई।
इस ऑटो से 3.24 विवंटल पोषण आहार की सप्लाई बताई गई। विभाग ने सफाई दी कि कम मात्रा थी, इसलिए ऑटो से परिवहन किया। पता चला कि यह ऑटो भोपाल के मुकदस नगर निवासी इसरार खान के नाम पर दर्ज मिला। उन्होंने ऑटो से कभी पोषण आहार ढोया ही नहीं। विधानसभा लोकलेखा समिति के सभापति भंवर सिंह शेखावत ने इस रिपोर्ट के आने के बाद विभाग के प्रमुख सचिव से पूछा है कि इस मामले में गड़बड़ी करने वाले कौन अफसर हैं? उन पर क्या कार्रवाई हुई या कब तक होगी? उन्होंने इन सभी सवालों के जवाब साक्ष्य सहित मांगे हैं। फिलहाल तो उनके पास कोई जवाब नहीं गया है।
खबर में विभागीय मंत्री कहती हैं कि कैग की रिपोर्ट पर क्या कार्रवाई हुई, यह चेक करवाऊंगी। पीएसी को निर्णय लेना होता है। उनके तथ्य आने के बाद आगे निर्णय लेंगे। सच्चाई यह है कि विभाग में कैग की रिपोर्ट और विधानसभा से आये पत्रों की फाइल बनाकर दबा दी गई है। यहां के अधिकारी घोटालों के आदी हो चुके हैं।
महिला एवं बाल विकास में पहले भी पोषण आहार घोटाला हो चुका है। उस समय नोडल एजेंसी एमपी एग्रो थी और एक निजी कंपनी को पोषण आहार का ठेका दिया गया था। जांच के दौरान छापामारी भी हुई। एग्रो और महिला बाल विकास के अधिकारी भी इसमें मिले हुए पाये गए। लेकिन बाद में क्या हुआ, पता ही नहीं चल पाया। जहां तक कैग की रिपोर्ट की बात है तो पहली बात तो यह कि कैग सैम्पल जांच करता है। यानि पूरे प्रदेश के बजाय कुछ जिलों को लेकर ही जांच करता है। दूसरी बात ये कि कैग की रिपोर्ट में जब भी अनियमितताएं उजागर होती हैं, तो संबंधित विभाग न तो प्रदेश स्तर पर जांच करवाते हैं और न ही आम तौर पर कोई कार्रवाई होती है।
सीधे सीधे कहा जा सकता है कि कैग की रिपोर्ट केवल राजनीतिक बयानबाजी तक या खबरों तक ही सीमित रह जाती है। हर साल की कैग रिपोर्ट में कहीं न कहीं खामी निकलती हैं, और सरकार में बैठे लोग ऐसी अनियमितताओं और घोटालों के आदी हो चुके हैं। जांच करने वाले भी अफसर ही हैं, सो फाइलें दबा दी जाती हैं। इधर बच्चों के निवालों पर डाका डाले जाने का दौर जारी रहता है। वैसे प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव भ्रष्टाचार को लेकर सजग हैं, उम्मीद की जानी चाहिए कि अब एक तो घोटालों की सही जांच होगी और दूसरे, जिम्मेदारों पर कार्रवाई भी की जाएगी।
– संजय सक्सेना


