एक दरवेश का दस्तावेज
डॉ. फरीद बजमी की याद में

अलीम बजमी
भोपाल। जब कोई व्यक्ति जीवन में इतने आयामों को स्पर्श करता है — साहित्य, रंगमंच, प्रशासन, ज्ञान, संवेदनशीलता और सेवा — तो उसका जाना एक शून्य छोड़ जाता है, जिसे भर पाना लगभग असंभव होता है। डॉ. फरीद बजमी का जीवन एक ऐसे ही बहुआयामी व्यक्तित्व का जीवंत प्रमाण रहा, जिनकी यादें आज भी आत्मा को छू जाती हैं और प्रेरणा बनकर साथ चलती हैं।
फानी दुनिया से अनंत यात्रा की ओर
6 जून 2023 को जब डॉ. फरीद बजमी ने इस नश्वर संसार को अलविदा कहा, तो जैसे एक युग का पटाक्षेप हो गया। कैंसर जैसी कठिन बीमारी से लड़ते हुए उन्होंने जिस जीवटता का परिचय दिया, वह अद्वितीय है। एक समय ऐसा आया जब उन्हें लगा कि उन्होंने कैंसर को मात दे दी है। लेकिन नियति ने एक और परीक्षा ली।
— 24 दिसंबर 2023 को उन्हें पक्षाघात ने घेर लिया। फिर भी बिस्तर पर पड़े-पड़े उन्होंने जिस संकल्प के साथ पुलिस रेगुलेशन एक्ट के अद्यतन संस्करण को पूर्ण किया, वह किसी तपस्वी की साधना से कम नहीं था। कर्तव्य और सेवा की अमिट छापयह केवल एक पुस्तक नहीं थी, यह एक पुलिस अधिकारी की विद्वता, दूरदर्शिता और कर्तव्यनिष्ठा का दस्तावेज था।
डॉ. बजमी ने समय-समय पर हुए संशोधनों को समेकित करते हुए इसे पुस्तक के रूप में तैयार किया। यह पुलिस विभाग के हरेक कर्मचारी, अधिकारी के लिए नवीनतम संशोधनों सहित एक प्रमाणिक एवं उपयोगी दस्तावेज बन गया। पूर्व में प्रकाशित एक्ट की सभी त्रुटियां दूर करने के साथ –साथ पुलिस एक्ट में बने नए कानूनों को भी शामिल करके इसे किताब की शक्ल देने में वे कामयाब रहे। तत्कालीन एडीजी अादरणीया अनुराधा शंकर ने ही इस पुलिस रेगुलेशन एक्ट की उनके द्वारा तैयार किताब का विमोचन भी डॉ. फरीद बजमी के हाथों पालीवाल अस्पताल में कराया था। अस्पताल के बिस्तर पर लेटे अपने अथक प्रयासों को सफल होता देख डॉ.बजमी ने एडीजी आदरणीया अनुराधा शंकर को भावुक अंदाज में धन्यवाद दिया था। यह काम करने का अवसर देने के लिए आभार भी माना।
पालीवाल अस्पताल में हुए इस किताब विमोचन समारोह में डिप्टी डायरेक्टर मध्यप्रदेश पुलिस अकादमी भौंरी मलय जैन, एडिशनल डीसीपी महावीर मुजाल्दे, एआईजी इरमीन शाह सहित पीएचक्यू के अन्य पुलिस अफसर समेत परिवार के सदस्य भी उपस्थित रहे थे। जब इस पुस्तक का विमोचन हुआ, तो डॉ. बजमी की आंखों में तृप्ति का भाव था। उन्होंने न केवल अद्यतन कानूनों को पुस्तक में समेटा, बल्कि पुलिस विभाग की वर्षों पुरानी जरूरत को पूरा किया।
चलती-फिरती लाइब्रेरी, जीता-जागता इनसाइक्लोपीडिया
भोपाल में जन्मे डॉ. फरीद बजमी का बचपन और जीवन किताबों और कला के बीच पला-बढ़ा। उनके पास ग्रंथालय विज्ञान में पीएचडी के अलावा राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र, अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधियां थीं। वे चलते-फिरते ज्ञानकोष थे। शासन, प्रशासन, इतिहास, कला, संस्कृति, कानून—हर विषय पर उनकी गहरी पकड़ थी। वल्लभ भवन से पीएचक्यू तक, बड़े अफसर किसी भी विषय पर संदर्भ चाहिए होता, तो फरीद भाई ही याद आते।
रंगमंच के फकीर
पद्मश्री बंसी कौल जैसे महान रंगमंच निदेशक की छांव में रंगमंच का ककहरा सीखने वाले डॉ. बजमी का नाट्य प्रेम कभी भी कम नहीं हुआ। विदूषक की शैली में व्यंग्य से समाज को आईना दिखाने की उनकी शैली अनोखी थी। रंग विदूषक संस्था के साथ 300 से अधिक नाटकों में सहभागिता और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुति देकर उन्होंने पुलिस विभाग में कार्यरत होते हुए भी रंगकर्म के एक अद्वितीय अध्याय की रचना की। वे संभवत: भोपाल के पहले रंगकर्मी थे, जिनकी कई देशों में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिस्सेदारी रही।
लाइब्रेरी को बनाया जीवंत तीर्थ
जब पीएचक्यू लाइब्रेरी में उनकी नियुक्ति हुई, तो संसाधनों का घोर अभाव था। लेकिन फरीद भाई ने इसे एक जीवंत, अद्यतन और तकनीकी रूप से उन्नत ग्रंथालय बना दिया। Radio Frequency Identification प्रणाली लागू करके उन्होंने मध्यप्रदेश शासन की पहली हाईटेक लाइब्रेरी का निर्माण किया। 18 पुलिस लाइब्रेरी को सुधारने का उनका कार्य, उनके प्रयासों का अमर स्मारक बन गया है।
एक संत, एक साधक
सरकारी सुविधाओं के निजी उपयोग से हमेशा परहेज़, रंगकर्म और ग्रंथालय सेवा के लिए छुट्टियों में भी सक्रिय, फरीद बजमी दरअसल कबीर की उस निर्गुण परंपरा के संवाहक थे जो कहती है — “सुनता नहीं, करता है।” उनका जीवन एक निष्कलुष साधना थी — न कोई दिखावा, न कोई शिकायत। सादगी, शालीनता और सेवा उनकी पहचान रही।
विदाई नहीं, विरासत है,
उनकी लेखनी से निकली “कम्प्यूटर अपराध” पुस्तक को भारत सरकार द्वारा पं. गोविंद बल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारतीय पुलिस पदक और राष्ट्रपति पुलिस पदक जैसे सम्मान उनके कर्तव्यनिष्ठ जीवन की गवाही देते हैं। परंतु सबसे बड़ा सम्मान शायद यह है कि जो उन्हें जानते थे, वे उन्हें एक ऐसे इंसान के रूप में याद करते हैं जिसने जीवन को गरिमा और उद्देश्य से जिया।
“मैं फरीद भाई को अपनी खिराजे अकीदत पेश करता हूं।
वे अब नहीं हैं, लेकिन उनकी मुस्कुराहट, उनकी आवाज और उनके विचार मेरी चेतना में हमेशा जिंदा रहेंगे। डॉ. फरीद बजमी का जीवन एक दस्तावेज है, एक ऐसी किताब, जिसे बार-बार पढ़ने को दिल करता है। वे गए नहीं, वे एक विचार बनकर हर उस व्यक्ति के भीतर जीवित हैं, जो सच्चाई, सरोकार और सेवा की राह पर चलना चाहता है।

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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