Constitution Club चुनाव : रूडी की जीत क्या अमित शाह की हार है..? क्या बीजेपी में शाह बनाम योगी हो गया था? क्या निशिकांत को कमान देना महँगा पड़ा? आखिर विपक्ष क्यों गया रूढ़ी के साथ..?

संजय सक्सेना

कांस्टीट्यूशन क्लब का चुनाव वैसे तो महज सांसदों के एक क्लब का चुनाव था जिसमें मौजूदा और पूर्व सांसद वोट करते हैं. मगर इसके कई राजनैतिक मतलब निकाले जा रहे है.वजह ये है कि इस बार का चुनाव एक ही पार्टी के दो नेताओं के बीच हो रहा था. भारतीय जनता पार्टी ( बीजेपी) के राजीव प्रताप रूडी और संजीव बलियान आमने-सामने लड़े। रूढ़ी की जीत के बाद सवाल उठ रहे हैँ – रूडी की जीत क्या अमित शाह की हार है..? क्या बीजेपी में शाह बनाम योगी हो गया था? क्या निशिकांत को कमान देना महँगा पड़ा? आखिर विपक्ष क्यों गया रूढ़ी के साथ..?

यह भी पहली बार नहीं था कि एक ही पार्टी के दो नेताओं के बीच मुकाबला हुआ हो. पहले भी रामनाथ कोविंद, विजय गोयल जैसे नेता क्लब का चुनाव लड़ते रहे हैं और हारे भी हैं. मगर इस बार का चुनाव सुर्ख़ियों में रहा उसका मुख्य कारण था कि इस चुनाव में संजीव बालियान को सरकार यानि गृहमंत्री अमित शाह के सर्मथन वाला उम्मीदवार के तौर पर देखा गया, जिसकी वजह से राजीव प्रताप रूडी को विपक्षी दलों का पूरा साथ मिल गया। और तो और कई कारणों से यू पी ले सीएम योगी का भी साथ मिला, ऐसा बताया जा रहा हैँ। निशिकांत दुबे को अमित शाह ने बालियान को जिताने की जिम्मेदारी दी थी। दुबे चौबे बनने चले लेकिन जीरो बन कर वापस आये। एक तो शाह का समर्थन, दूसरे दुबे की जरूरत से ज्यादा बोलने की आदत…। सो, कई पार्टी के साथी भी विरोध में चले गये।

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बीजेपी में बलियान की उम्मीदवारी के बाद कई तरह की चर्चाएं होने लगी यह चुनाव जाट बनाम राजपूत लॉबी भी बन गया. यही वजह है कि रूडी की जीत के बाद देर रात जय सांगा के नारे भी लगे। राजपूत लॉबी ने एकजुट हो कर रूडी को वोट किया.राजस्थान सरकार के एक मंत्री तो जयपुर से दिल्ली आए केवल वोट डालने के लिए यही हाल बिहार और उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के सांसदों का भी रहा। कहा जा रहा है कि राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी भी इस चुनाव पर नजर बनाए हुए थे।

कांस्टीट्यूशन क्लब के इस चुनाव में कांग्रेस और विपक्ष रूडी के पक्ष में खड़ा हो गया सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे सबसे पहले वोट डालने वालों में थे.क्लब के 11 कार्यकारी सदस्यों के पैनल में भी रूडी ने सभी दलों और सभी राज्यों का ख्याल रखा था जैसे कार्यकारिणी के सदस्यों में सपा के अक्षय यादव थे तो कुछ दक्षिण के नेता भी थे, जिससे इन पार्टियों और राज्यों के सांसदों और पूर्व सांसदों का वोट भी रूडी पैनल को मिला जबकि बलियान का कोई पैनल नहीं था. वो अकेले सचिव पद के लिए लड़ रहे थे.

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एक पूर्व सांसद ने बताया कि रूडी को बीजेपी के कुछ सांसद और विपक्ष के अधिकतर सांसदों का साथ मिला, जिससे उनकी जीत संभव हुई। एक बात और ये रही कि गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष नड्डा 3 बजे के बाद वोट डालने आए और जब तक बीजेपी सांसदों में ये बात पहुंचती तब तक देर हो चुकी थी क्योंकि पांच बजे तक वोटिंग होनी थी।

हालांकि कई केन्द्रीय मंत्रियों , दो राज्यपालों ने भी वोट किया.सबसे महत्वपूर्ण है कि महज सांसद या पूर्व सांसद होने के नाते आप कांस्टीट्यूशन क्लब के वोटर नहीं बन सकते जब तक आप उसके सदस्य ना हों जैसे प्रेस क्लब के चुनाव में हर पत्रकार वोट नहीं डाल सकता जब तक कि वो क्लब का सदस्य नहीं है। कांस्टीट्यूशन क्लब के सदस्य महज 1300 के आसपास ही सदस्य है और अभी तक जितने भी चुनाव हुए है 100 के आसपास वोटिंग होती थी मगर इस बार 707 वोटहुए जिसमें पोस्टल बैलेट भी थे.

रूडी के ख़िलाफ़ भले ही संजीव बालियान चुनाव में उतरे थे, लेकिन सारी राजनीतिक तिकड़म और फ्रंटफ़ुट पर निशिकांत दुबे नज़र आ रहे थे. दुबे ने पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के समर्थन में खुलकर अपनी आवाज़ बुलंद की और आख़िरी वक़्त तक जीत की उम्मीद लगाए थे. उन्होंने कहा था, ‘संसदीय क्लब के चुनाव में मैं संजीव बालियान जी के साथ हूँ. यह चुनाव बालियान के जीवन का ऐतिहासिक चुनाव है. क्लब को पायलटों, आईएएस-आईपीएस अफ़सरों और वामपंथियों के क़ब्ज़े से मुक्त कराने के लिए संजीव बालियान चुनाव में उतरे हैं.’ इस तरह बालियान को जिताने के लिए पूरी ताक़त निशिकांत दुबे ने झोंक रखी थी.

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कॉन्स्टिट्यूशन क्लब चुनाव में गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा, कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, किरेन रिजिजू सहित कई और केंद्रीय मंत्री वोट देने पहुँचे थे. पिछले काफ़ी दिनों से इसे लेकर सोशल मीडिया सहित वन-टू-वन प्रचार चल रहा था. संजीव बालियान का समर्थन कर रहे बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने राजीव प्रताप रूडी पर आरोप भी लगाए और कहा था कि यह क्लब अफ़सरों और दलालों का अड्डा बन गया है और उसे चंगुल से मुक्त करना है, जबकि रूढ़ी खुद भाजपा के सांसद हैँ और केंद्रीय मंत्री रहे हैँ। बताते हैँ कि वे कुछ मामलों के चलते अमित शाह के कोप का भाजन बने, इसलिए कैबिनेट से बाहर हो गये। हालात ये थे कि उन्हें लोकसभा का टिकट तक नहीं दिया जा रहा रहा। वो तो उनके क्षेत्र से लालू कि बेटी को उतार दिया गया, बीजेपी के पास कोई जीतने योग्य उम्मीदवार नहीं था, मजबूरी में रूढ़ी कि टिकट देना पड़ा. रूढ़ी ने मुश्किल से ही सही, चुनाव में जीत हासिल कर ली, मामूली वोटों के अंतर से. लेकिन उन्हें वरिष्ठ होने के बाद भी कैबिनेट में जगह नहीं मिल सकी।

कॉन्स्टिट्यूशन क्लब के चुनाव कि बात करें तो राजीव प्रताप रूडी और संजीव बालियान के मैदान में उतरने से बीजेपी दो धड़ों में बंटी हुई नज़र आई, क्योंकि दोनों ही नेता बीजेपी से हैं. राजीव प्रताप रूडी लंबे समय से गवर्निंग काउंसिल के सदस्य हैं, उन्हें बीजेपी से लेकर कांग्रेस सांसदों तक का व्यापक समर्थन प्राप्त है. रूडी ने अपने पैनल से कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा के साथ सपा के महासचिव रामगोपाल यादव के बेटे सांसद अक्षय यादव, चार अन्य बीजेपी सांसदों को चुनाव लड़ाया था. इसके अलावा प्रमचंद्रन को भी चुनाव लड़ाया था.
रूडी के पैनल से बीजेपी के पूर्व राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल, बीजेपी के पूर्व लोकसभा सांसद प्रदीप गांधी, बीजेपी के सांसद नवीन जिंदल चुनाव लड़ रहे थे. टीडीपी के लोकसभा सांसद कृष्ण प्रसाद टेनेट्टी, टीएमसी के लोकसभा सांसद प्रसून बनर्जी, शिवसेना के पूर्व लोकसभा सांसद श्रीरंग अप्पा बारणे और बीजेडी के कालीकेश सिंह देव मैदान में उतरे थे.

वहीं, संजीव बालियान को तेजतर्रार बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के साथ-साथ पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का भी समर्थन प्राप्त था. इस तरह बीजेपी बनाम बीजेपी के चुनाव में लड़ाई ज़बरदस्त बन गई थी, लेकिन रूडी ने जिस तरह से विपक्ष के वोटों को लामबंद करने के लिए अपने पैनल में जगह दी, उसके आगे बालियान पस्त नज़र आए.

कांग्रेस-सपा का समर्थन रूडी को मिला

राजीव प्रताप रूडी को कांग्रेस का खुला समर्थन मिला, राहुल गांधी ने खुले तौर पर संसद में उन्हें समर्थन का भरोसा दिया था. इसके अलावा कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं ने रूडी को जिताने के लिए पूरी ताक़त झोंक रखी थी. कांग्रेस ने रूडी को समर्थन देकर दीपेंद्र हुड्डा को सदस्य बनवाया. इसके अलावा राजीव शुक्ला को सचिव (खेल) और जितेंद्र रेड्डी को कोषाध्यक्ष के लिए निर्विरोध जीत दर्ज कराई. इस तरह कांग्रेस ने रूडी को समर्थन देकर अपने कई नेताओं को क्लब के अहम पद दिला दिए.

सपा के सभी सांसदों का समर्थन रूडी को मिला, क्योंकि रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव उनके पैनल से चुनाव लड़ रहे थे. इसी तरह रूडी ने डीएमके का वोट हासिल करने के लिए डीएमके के तिरुची सिवा को सचिव (संस्कृति) पद पर बिना चुनाव के जिता दिया था. टीएमसी नेताओं का भी समर्थन रूडी को रहा. विपक्षी पार्टी से जुड़े सदस्यों ने राजीव प्रताप रूडी का समर्थन किया, जबकि बीजेपी के सदस्य बंट गए.

राजीव प्रताप रूडी ठाकुर हैं, जबकि संजीव बालियान जाट समुदाय से हैं. इस मुकाबले में जाति वाला एंगल भी दिखा. सूत्रों का कहना है कि व्यक्तिगत संबंध और पर्दे के पीछे की रणनीति ने अंतिम परिणाम में बड़ी भूमिका निभाई. राजीव प्रताप रूडी का सदस्यों के साथ लंबे समय से चला आ रहा संबंध निर्णायक साबित हुआ. यूपी से लेकर बिहार तक के ठाकुर नेता पूरी तरह से राजीव प्रताप रूडी के पक्ष में लामबंद नज़र आए. लोकसभा में 32 ठाकुर सांसद हैं, जिनका एकमुश्त वोट राजीव प्रताप रूडी को गया, जबकि जाट वोट बँटा हुआ रहा.

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Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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