कोड नेम सिन्दूर…

कुछ वामियों को आपत्ति हुई कि ‘ऑपरेशन सिंदूर नाम क्यों रखा गया।यह धार्मिक और पितृ सत्तात्मक है।’ इस बयान से मुझे दो साल पहले की एक घटना याद आ गई। मध्यप्रदेश के शिवपुरी राष्ट्रीय उद्यान में वन अधिकारियों और एनजीओ को यह प्रशिक्षण दे रहा था कि वन विभाग के एक महत्वपूर्ण पोस्टर बॉय कार्यक्रम अनुभूति में विद्यार्थियों को नेचर ट्रेल में क्या -क्या बता सकते हैं। तभी एक प्रतिभागी ने पूछ लिया- “जिस पेड़ के नीचे खड़े होकर आप ज्ञान दे रहे हैं उसका क्या नाम है?” मुझे सोचने में बीस सेकंड लगे क्योंकि पास में चाँदपाठा जलाशय की जलधार वहाँ से बह रही थी। पेड़ का नाम सिन्दूर था। Mallotus philipinensis नाम का यह पेड़ लीनियस या उसके चेलों को भारत से पहले फिलीपींस में दिखा होगा इसलिये प्रजाति उसके नाम पर रख दी। नदियों के किनारे ही यह पेड़ मिलता है। इसके फलों के ऊपर सिंदूरी रंग का पाउडर आता है।जिसे एकत्रित कर उपयोग में लिया जाता था।
भारत में माँग में सिंदूर भरने की परम्परा लगभग ५००० साल से भी पुरानी है। बलूचिस्तान के मेहरगढ़ में पूर्व हड़प्पा कालीन सभ्यता के समय मिली हिन्दू सभ्यता के अध्ययन में सिद्ध हुआ है कि तब भी माँग भरने की परम्परा थी। जी वही मेहरगढ़ जहाँ भारतीय सेना आतंकियों को फुलझड़ी चलाना सिखा चुकी है। इसके अलावा दो और वनस्पति हैं जिन्हें सिन्दूर/सिन्दूरी/रोली कहा जाता है।एक तो छोटा वृक्ष है रोली(Bixa orellina) और दूसरा फुलधाबड़ी या धवई(Woodfordia fruticosa), इनसे भी लाल रंग का सिन्दूर मिलता है। बाद वाले का उल्लेख तो महाभारत,सौंदर्यलहरी,पाणिनी की अष्टाध्यायी और पुराणों में भी मिलता है। इस प्रकृति प्रदत्त सिन्दूर को अंग्रेजों ने vermillion कहा।
अब जो सिन्दूर उपयोग में लाया जा रहा है वह कृत्रिम रसायन है। यह मरकरी ऑक्साइड,हल्दी और लाइम पाउडर को घोल कर बनाया जा रहा है।लाल संगमरमर का पाउडर भी इसमें मिलाया जाता था।चटखपन लाने इसमें लेड,जिंक और मरकरी सल्फाइड भी डाल दिया जाता है। ये सब हाईली टॉक्सिक हैं। इन सबके बीच शहनाज हुसैन महँगा हर्बल सिन्दूर बेंचती हैं जिसमें जासौन,गेंदा,जाफ़रान और चंदन होता है।
वामपंथी फैज़ के “जाहिर है कि हम भी देखेंगे” का वमन करके ही रह जाते हैं।कभी मानस भी पढ़ लो। पाँच सौ साल पहले तुलसी क्या लिख गए हैं-
राम सीय सिर सेन्दुर देहीं
शोभा कहि न जाति विधि केहीं।
राम सीता की माँग में सिंदूर भर रहे हैं और उसका वर्णन सृष्टि निर्माता(विधि-ब्रह्मा) भी नहीं कर पा रहे हैं। यार अर्बन नक्सलियों!आपको और कैसे समझायें।
बिल्कुल मन नहीं है पड़ोस के नंगे-भूखे-जाहिल नापाक मुल्क का नाम पूरी पोस्ट में कहीं आये।प्रसिद्ध शायर जॉन एलिया ने कहा भी है वह मुल्क है ही नहीं।अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के कुछ शोहदों और लौंडों की दिमागी ख़ुराफ़ात है।

अभी तो मुकुट बँधे थे माथ
हुए कल ही हल्दी के हाथ
खुले भी न थे लाज के बोल
खिले थे चुंबक शून्य कपोल
हाय रूक गया आज श्रृंगार
बना सिन्दूर अनल अंगार ।
-पन्त

लौट आओ माँग के सिन्दूर की सौगंध तुमको
नयन का सागर निमन्त्रण दे रहा है
आज बिसराकर तुम्हें कितना दुखी मन,यह कहा जाता नहीं है
मौन रहना चाहता,पर बिन कहे भी अब रहा जाता नहीं है
लौट आओ प्राण! पहले प्यार की सौगंध तुमको
प्रीति का बचपन निमन्त्रण दे रहा है
ज्योति का कण- कण निमन्त्रण दे रहा है
नयन का सागर निमन्त्रण दे रहा है।
-सोम ठाकुर
सुदेश वाघमारे-०८/०५/२०२५

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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