शहर से मोहब्बत ऐसी कि, तखल्लुस
में भोपाल नाम को साथ जोड़ लिया
अलीम बजमी
भोपाल। आपको 70 के दशक की दो फिल्में अधिकार और शोले जरूर याद होगी। इनमें से अधिकार फिल्म में मशहूर फिल्म अभिनेता प्राण (बन्ने खां भोपाली) और कामेडियन जगदीप (सूरमा भोपाली) ने फिल्म शोले में मस्त मौला भोपाली का किरदार ऐसे जिया कि लोगों के जहन में ये अब तक नक्श है। दोनों के लबो लहजे ने रुपहले पर्दे पर भोपाली संस्कृति को जीवंत किया था। इसके कारण भोपाली लफ्ज लोगों के दिल में उतर गया। ये भी एक इत्तेफाक है कि दोनों फिल्मों के पटकथा लेखक जावेद अख्तर-सलीम खान की जोड़ी रही। फिल्मों में भोपाली लफ्ज का किरदार गढ़ने का क्रेडिट जावेद अख्तर के नाम पर है। उनकी तालीम भी भोपाल की है। फिल्मों के इतर उर्दू दुनिया की कई शख्सियतों ने गीत, गजलों से भी फलक पर भोपाल का नाम न केवल पहुंचाया बल्कि तखल्लुस (उपनाम) की शक्ल में अपने नाम के साथ ही जोड़ लिया।
इसी मौजूं पर बात करते हैं कि भोपाली नाम को तखल्लुस के साथ जोड़ने की शुरुआत कहां से हुई, इसका कोई दस्तावेजी सबूत तो नहीं मिलता। अनुमान है कि शहर में इसकी शुरुआत बरकत उल्लाह भोपाली से हुई। वे अविभाजित भारत के अफगानिस्तान में वर्ष 1915 में बनी अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री भी रहे। संभवत: वहीं से ये उपनाम का सिलसिला शुरू हुआ।
अब भोपाली तखल्लुस रखने वालों के बारे में जानिए। उर्दू अदब से रिश्ता रखने वाले अब्दुर्रहमान ने भोपाल रियासतकाल के चलते शायरी में अपना परचम फहराया तो उन्हें मोहसिन भोपाली के नाम से पहचाना गया। विभाजन के बाद पाकिस्तान चले जाने पर उन्होंने वहां वर्ष 1992 में कराची (पाकिस्तान) में हुए सैन्य अभियान के खिलाफ ‘शहर ए आशोब’ शीर्षक से किताब भी लिखी ये काफी मशहूर है। उनका एक शेर काफी लोकप्रिय है, ज़िंदगी गुल है नगमा है, महताब है, ज़िंदगी को फ़क़त इम्तिहां मत समझ।
अब बात अब्दुल अहद खान उर्फ तखल्लुस भोपाली की। वे भोपाल के पहले कलमकार हैं, जिन्होंने शहर में उर्दू गद्यांश का कल्चर डेवलप किया। सामाजिक व्यवस्था पर तंज ओ- मज़ाह यानी हास्य व्यंग्य में खूब लिखा। उनके लोकप्रिय गद्यांश में पानदान वाली खाला, रोजा रखा, अदालत आदि काफी मकबूल है।
ये भी जान लीजिए कि उर्दू जुबान के गाढ़ेपन में तरलता, सौम्यता, सहजता लाने का काम भोपाल की बड़ी पहचान रहे मुल्ला रमूजी (सिद्दीक इरशाद) ने किया। “गुलाबी उर्दू” शीर्षक से प्रकाशित उनकी किताब काफी लोकप्रिय है।
शहर में मोहम्मद बासित उर्फ बासित भोपाली की शायरी में जज्बात और इश्क का समुंदर मिलेगा। संजीदा मिजाज के बासित भोपाली का उर्दू अदब में खास मुकाम है। उनका करीब 70 साल पुराना एक शेर सारा आलम आइना-ए- बासित ,जैसी निगाहें वैसे नजारे आज भी मकबूल है।
लगभग 142 हिंदी फिल्मों के लिए 400 गाने और सैकड़ों गजलें लिखकर लोकप्रियता पाने वाले शायर असद भोपाली का असली नाम असद अहमद खां था लेकिन भोपाल से मोहब्बत के चलते उपनाम भोपाली रख लिया। उनकी आखिरी फिल्म मैंने प्यार किया रही। इसके दो गानें दिल दीवाना बिन सजना के माने ना और कबूतर जा जा जा काफी लोकप्रिय हुए।
‘जिगर’ मुरादाबादी और ‘फ़िराक़’ गोरखपुरी के समकालीन शायर की पहचान रखने वाले मोहम्मद असग़र खान यानी शैरी भोपाली अपने कलाम को जब दिलकश तरन्नुम में पढ़ते तो मुशायरे में तालियां गूंज उठती। उनकी एक गजल का शेर है- ग़ज़ब है जुस्तजू- ए-दिल का ये अंजाम हो जाए, कि मंज़िल दूर हो और रास्ते में शाम हो जाए।
अब बात ख्वाजा मोहम्मद इदरीस उर्फ कैफ भोपाली यानी कलंदर मिजाज शायर की। उन्होंने पाकीज़ा, रजिया सुल्तान जैसी कई फिल्मों के लिए गीत लिखे। उनको सर्वाधिक लोकप्रियता पाकीजा फिल्म के गीत तीर-ए-नज़र देखेंगे और चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो से मिली। उनकी लिखीं गजलों जैसे-तेरा चेहरा सुहाना लगता है, झूम के जब रिंदों ने पिला दी को जगजीत सिंह ने अपनी आवाज भी दी है। फिल्मी दुनिया रास नहीं आने पर वे वापस भोपाल लौट आए थे।
फक्कड़ मिजाज के मोहम्मद अली ताज के बारे में जानिए। आम- खास में ताज भोपाली के नाम से मशहूर रहे। जिंदगी का तर्जुबा उनकी शायरी की खासियत हैं। चुनिंदा फिल्मों में गीत लिखकर शोहरत पाने वाले ताज साहब का एक शेर काफी लोकप्रिय है, पीछे बंधे हैं हाथ मगर शर्त है सफर, किससे कहें कि पांव के कांटे निकाल दे। एक अन्य शेर- मैं ताज हूं तू अपने सर पे सजाके देख या मुझको यूं गिरा कि जमाना मिसाल दे।
अब बात शकीला बानो भोपाली की। वे देश की पहली महिला कव्वाल होने के साथ शायर और अभिनेत्री भी रही। फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार की प्रेरणा से भोपाल से मुंबई पहुंचकर लगभग 50 फिल्मों में उन्होंने अपनी अदाकारी और गायकी के जौहर दिखाए। उनका लिखा एक मशहूर गीत अब यह छोड़ दिया है तुझ पर चाहे ज़हर दे या जाम दे, काफी लोकप्रिय हुआ। वे जिंदगी के फलसफे को अपने कलाम के जरिये बेबाकी से बयां करती थीं।
सैयद अली रजा मंजर यानी मंजर भोपाली शहर का ऐसा शायर जिसे देश-दुनिया में अपने कलाम और आवाज के कारण पहचाना जाता है। उनके कलाम में आपको मोहब्बत और वफा मिलेगी। जुल्म के खिलाफ बेबाक बयानी भी नजर आएगी तो तंज भी मिलेंगे। उनकी गजल का एक शेर है- आंख भर आई किसी से जो मुलाकात हुई, खुश्क मौसम था मगर टूट के बरसात हुई। मंजर भोपाली का ही एक अन्य शेर भी काफी लोकप्रिय है- कोई बचने का नहीं सबका पता जानती है, किस तरफ़ आग लगाना है हवा जानती है ।
मरहूम बासित भोपाली, शैरी भोपाली, ताज भोपाली,असद भोपाली कैफ भोपाली, मोहसिन भोपाली, मंजर भोपाली का कलाम नई पीढ़ी के लिए धरोहर है। इसको समझ कर नई नस्ल अपनी अदबी सोच को एक मुकाम दे सकती है। इन सभी शायरों के कलाम में जिद, जोश, जुनून है। रोमांटिक अहसास, जज्बात और शोख रंग है। छुपी मोहब्बत है। ये अल्फाज़ किसी दवा से कम नहीं है।
भोपाल
फेसबुक वाल से साभार
