Editorial
ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण: कोई भी गंभीर नहीं?

संजय सक्सेना
मध्य प्रदेश में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा या नहीं, इसको लेकर बुधवार से सुप्रीम कोर्ट में नियमित सुनवाई होनी थी। सभी की नजर इस सुनवाई पर थी। लेकिन सुनवाई अचानक टाल दी गई। सुनवाई के दौरान वकीलों की बहस के तरीके को देखकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की। जस्टिस पी.एस. नरसिम्मा और जस्टिस अतुल कुमार चंदोकर की बेंच ने यहां तक कह दिया कि ऐसा लग रहा है कि सभी पक्ष यहां सिर्फ पोस्चरिंग यानि दिखावा कर रहे हैं, कोई भी केस में सुनवाई के लिए गंभीर नहीं हैं।
दरअसल, मप्र सरकार और आरक्षण के पक्ष में याचिका लगाने वाले वकीलों की ओर से 15 हजार पेज का लिखित जबाव कोर्ट में पेश किया गया। इसमें 1983 से लेकर 2024 तक ओबीसी से जुड़ी सभी रिपोर्ट शामिल हैं। महाजन कमीशन, मंडल कमीशन के अलावा महू के आंबेडकर यूनिवर्सिटी की ओर से तैयार ओबीसी आरक्षण की रिपोर्ट के अलावा 2022 के नगरीय निकाय व पंचायत चुनाव से पहले सरकार के सर्वे रिपोर्ट के आंकड़ों को भी रखा गया। इसके बाद वकीलों ने जवाब पढऩे के लिए समय मांगा, लेकिन बहस के तरीके पर शीर्ष कोर्ट ने नाराजगी जताई।
आरक्षण विरोधी याचिकाकर्ताओं और इंटरवीनर पक्ष की ओर से नोडल काउंसिल पूजा धर का कहना था कि जवाब की कॉपी 23 सितंबर की शाम को मिली है। इसका अध्ययन किए बिना बहस नहीं कर सकते। बहस शुरू करने से पहले पढऩे का वक्त दिया जाए। केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा दस्तावेज पढऩे के लिए हमें भी अतिरिक्त समय चाहिए। राज्य सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट पी. विल्सन का कहना था कि 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण पर लागू स्टे को हटाया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम केस में फाइनल डिसीजन लेंगे। कोई भी अंतरिम आदेश की मांग न करे। उधर अटॉर्नी जनरल कह रहे थे कि हम रिजर्वेशन के विरोध में हैं। जब कोर्ट ने कहा कि आप तो पक्ष की ओर से खड़े हुए हैं, तो अटॉर्नी जनरल बोले- मैं रिजर्वेशन के विरोध में नहीं, कानून के पालन के सपोर्ट में खड़ा हूं। इसके बाद कोर्ट ने बहस शुरू करने के लिए 8 अक्टूबर की तारीख तय कर दी।
इधर, एक आश्चर्यजनक घटना यह भी हुई कि सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने खुद को मप्र की ओर से अलग कर लिया। जबकि मेहता को संघ और भाजपा की विचारधारा का ही माना जाता है। मेहता ने छत्तीसगढ़ राज्य की ओर से पैरवी करते हुए छत्तीसगढ़ के ओबीसी आरक्षण केस को मप्र के केस से अलग करने की मांग रखी। मेहता के स्थान पर मप्र की ओर यूपीए सरकार में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल रहे और डीएमके से तमिलनाडु के राज्यसभा सांसद पी विल्सन ने पैरवी की। मप्र की ओर से एक और नए अधिवक्ता शशांक रतनू भी नियुक्त किए गए हैं।
अब सुनवाई अगले महीने होगी, लेकिन सर्वाेच्च न्यायालय ने पैरवीकर्ताओं और दाखिल की गई रिपोर्ट के आधार पर जो टिप्पणी की है, वो काबिले गौर है। कोर्ट को यदि लगता है कि कोई पक्ष गंभीर नहीं है, तो यह बड़ा गंभीर मामला है। यहां ओबीसी को लेकर राजनीति चरम पर है, वहां कोई गंभीर नहीं…!