PMO: पीएमओ के तीन रत्न… तीनों बाहर… क्यों खड़ा हुआ बखेड़ा…धमाका होने से पहले है रोक दिया गया..? ख़बरों के लिए हुई एक की अनौपचारिक वापसी…?

विश्लेषण : संजय सक्सेना
पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि पीएमओ के सबसे ताकतवर और प्रभावशाली चेहरों में से एक, हिरेन जोशी जिन्हें दिल्ली से लेकर मीडिया हाउसों तक “PM Modi का सबसे गोपनीय मैन” कहा जाता था. अचानक चुपचाप इस्तीफा देकर गायब हो जाएं. उनके साथ ही लॉ कमीशन के सदस्य हितेश जैन और प्रसार भारती के चेयरमैन नवनीत सहगल का पद छोड़ देना सिर्फ प्रशासनिक बदलाव नहीं, बल्कि एक ऐसे भूकंप की शुरुआत जैसा लग रहा है जिसकी गड़गड़ाहट अभी दबाई जा रही है, लेकिन असर दूर तक जाएगा। हालांकि संसद के सत्र और रूस के राष्ट्रपति पुतिन के भारत दौरे के चलते हिरेन जोशी की वापसी हो गईं है, लेकिन इसे अस्थाई बताया जा रहा है।
देश में 48 घंटों के भीतर हुई इन तीन ‘बड़ी विदाइयों’ ने सोशल मीडिया पर तूफ़ान ला दिया है. ट्विटर (X) से लेकर व्हाट्सएप ग्रुपों तक एक ही चर्चा है कि क्या यह सब महादेव बेटिंग ऐप के पैसे, गठजोड़ और विदेशी नेटवर्क का नतीजा है? क्या सरकार PMO के भीतर किसी “सिस्टम क्लीनिंग” की प्रक्रिया में लगी है? या फिर किसी बड़े खुलासे की आहट मिलने पर इन हस्तियों को चुपचाप हटाया गया है?

कांग्रेस ने उठाए सवाल
इसे लेकर कांग्रेस ने भी सवाल उठाए हैं कि आखिर इन लोगों ने अचानक इस्तीफा क्यों दे दिया. पवन खेड़ा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि इसकी CBI जांच हो, हिरेन जोशी के अमेरिकी पार्टनर कौन? कितना पैसा आया? सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि ये सब महादेव बैटिंग ऐप की वजह से हुआ. साथ ही सोशल मीडिया पर #MahadevBettingScam #HirenJoshi ट्रेंड कर रहा है.
गिरफ़्तारी से बचकर भागे हिरेन जोशी?
शीतल पी सिंह ने एक्स पर लिखा, “सोशल मीडिया पर वायरल दस्तावेज़ और चैट्स में दावा किया जा रहा है कि जोशी को दुबई से महादेव ऐप के मालिकों की तरफ से मोटी रकम मिलती थी. विदेशी डील्स, चैनल मैनेजमेंट और ‘नैरेटिव सेटिंग’ के बदले कमीशन! गिरफ्तारी से बचाने के लिए अचानक अश्विनी वैष्णव को इस्तीफा सौंपकर भाग गए है.
आधिकारिक तौर पर तो सब जगह चुप्पी है. यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय में भी. अब तो इसे ‘सेवा तीर्थ’ की संज्ञा दी गई है.. खैर, यहां सालों से ‘सेवा’ में लगे एक ‘बिग ब्रदर’ की विदाई हो गई. लेकिन हमें इस बात ने ज्यादा उदास किया कि इनके लिए ना कोई नोट, ना कोई अधिसूचना, यहां तक कि विदाई के वक्त कोई गुलदस्ता देने की भी ख़बर नहीं आई. जबकि यह शख्स बीते एक दशक से भी ज़्यादा वक्त से भारत भूमि के समाचार जगत को झिंझोड़े हुए था. कहीसुनी बातों की माने तो कभी यह ‘मीडिया मैनेज’ कर रहा था तो कभी उसे ‘धमका’ भी रहा था।
ओपन मैगज़ीन ने एक बार मजाकिया लहज़े में लिखा था कि, हिरेन जोशी सिर्फ़ मोदी के इकोसिस्टम का हिस्सा नहीं हैं – वे इस इकोसिस्टम का मदरबोर्ड हैं. मोदी के खासमखास हैं. वह व्यक्ति जो ना सिर्फ़ प्रधानमंत्री को डिजिटल पॉलिसी पर राय देता रहा बल्कि ‘नमो’ के रूप में प्रधानमंत्री के लिए डिजिटल स्पेस में एक नई तरह का फैनबेस बनाया.
भीलवाड़ा से आने वाले पूर्व इंजीनियरिंग प्रोफ़ेसर, जोशी राजनीति के लिए तो नहीं बने थे. साल 2008 में मोदी के एक कार्यक्रम के दौरान एक तकनीकी गड़बड़ी को ठीक करने के बाद, उनकी एंट्री नाटकीय तरीके से किसी फिल्मी कहानी की तरह हुई. तब से, उनका गांधीनगर से दिल्ली तक आना और मोदी की ऑनलाइन छवि को आकार देते रहना चमत्कारिक है. साथ ही वो चुपचाप इस बात पर नज़र रखते रहे कि मीडिया में कौन ठीक से ‘लाइन पर चल’ रहा है और किसे थोड़ा ‘सही करने’ की ज़रूरत है.
2014 में जब मोदी पीएमओ में पहुंचे, तब तक जोशी उनके ठीक पीछे थे. 2019 तक, वे संयुक्त सचिव/ओएसडी (संचार एवं आईटी) के पद तक पहुंच गए थे. जिसका लुटियंस की भाषा में साफ मतलब है: संपादक, मालिक, मंत्री, और यहां तक कि भाजपा के अपने सोशल मीडिया वॉरियर भी उनकी निगाह में चढ़ने से बचते हैं.
व्यक्तिगत रूप से नरम लहजे वाले, असलियत में ‘सर्वव्यापी’, जोशी को लंबे समय से पीएम की “आंख और कान” कहा जाता रहा है. कहा तो यहां तक जाता है कि मीडिया को भेजे जाने वाले संदेशों, उसकी निगरानी, और कौन क्या पूछेगा, इस सब के पीछे एक ही शख्स हैं जोशी,
ऐसे में साफ है कि ये कोई “सामान्य तबादला” तो नहीं है. कम से कम दिल्ली के राजनीतिक और मीडिया जगत के गलियारों से वाकिफ लोग ये अच्छे से जानते हैं और उसे महसूस भी कर रहे हैं. और लुटियंस जोन्स की गलियों में तो मानो अटकलबाजियों की बाढ़ ही आ गई है. जो बस किसी तरह पुख्ता होने का इंतजार कर रही हैं.
आज कल जब सब कुछ व्हाट्सएप फ़ॉरवर्ड के दायरे में रहता है. वो जिसके जरिए हीरेज जोशी मीडिया के लिए प्राइम टाइम तक के मुद्दे सेट करते आए हैं. लेकिन हम उस बारे में कुछ नहीं कहेंगे.
हां, इस बीच पवन खेड़ा की प्रेस कॉन्फ्रेंस का जिक्र जरूरी हो जाता है. जिन्होंने इन अटकलबाजियों को और पुख्ता कर दिया. उन्होंने जोशी के व्यावसायिक संबंधों, विदेशी संबंधों और ‘कथित तबादले’ के बारे में पारदर्शिता की मांग करके इस अफवाह को आधिकारिक तौर पर ‘खबर’ बना दिया.खेड़ा ने कहा कि जोशी कोई छोटा नाम नहीं है. “वह पीएमओ में सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हैं जिन्होंने इस देश में लोकतंत्र की हत्या करने और आप (मीडिया) का गला घोंटने का बहुत काम किया है.”उन्होंने आगे कहा: “देश को यह जानने का पूरा हक़ है कि बिजनेस में उनके साझेदार कौन हैं. पीएमओ में बैठकर हीरेन जोशी क्या धंधा कर रहे थे, यह भी देश को जानने का हक़ है.”
अगर हीरेन जोशी बाहर गए, तो पीएमओ का मीडिया कमांड सेंटर कौन संभालेगा? रात 9 बजे की बहस मुद्दा कौन तय करेगा? “जॉर्ज सोरोस” को कोसने के लिए कौन कहेगा? कौन बताएगा कि आज खास विपक्षियों पर केंद्रित ‘देशद्रोही प्रोग्राम’ होगा? एंकरों को चर्चा के मुद्दे कौन व्हाट्सएप करेगा? बेशर्मों की वो लिस्ट कौन तैयार करेगा, जिसमें उन लोगों को चिन्हित किया जाएगा जिन्होंने सत्ता को जवाबदेह ठहराने जैसा ‘घिनौना’ काम करने की हिम्मत की.
इस सबके बीच, नोएडा फिल्म सिटी के न्यूज़रूम्स से लेकर हर ओर सन्नाटा पसर गया था, उनके सामने अस्तित्व बचाने का संकट खड़ा हो गया था. पुतिन के दौरे की खबरें प्लांट करवाना थी, सो जोशी की फिर एंट्री करवा डी गईं। देखना होगा कि pmo के बाकी दो पिलर का क्या होता है? और महादेव ऐप कि जांच का क्या होगा..?






