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अब जंग नहीं आसान… – Vishleshan

“भारत जोड़ो यात्रा” से राहुल गांधी को मिले जन समर्थन और छवि में आये सकारात्मक बदलाव ने राजनीति का रुख पलट दिया है। कर्नाटक में काँग्रेस की विजय ने इस बदलाव पर मुहर लगा दी। इसी के बाद वो क्षेत्रीय दल, जो काँग्रेस को खत्म और राहुल को चुका हुआ मान रहे थे, एक महागठबंधन के लिए सारे अहंकार को छोड़कर एक साथ आये।

इसमें अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और अखिलेश यादव का काँग्रेस के प्रति सहयोगी होना महत्वपूर्ण है। इन नेताओं को भी यह मानना पड़ा कि राहुल गांधी के सतत प्रयास जमीनी स्तर पर रंग ला रहे हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी अध्यक्ष बनाने का निर्णय सटीक रहा है। इससे जहां परिवारवाद के हमले बेअसर हो गए, वहीं एक दक्षिण भारतीय दलित बुजुर्ग नेता को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर काँग्रेस को बड़ा फायदा हुआ है। 

राजनीतिक विश्लेषक भी, जो कुछ माह पूर्व तक, यही स्वीकार कर रहे थे कि मोदी नीत भाजपा फिलहाल अपराजेय है, उनका नजरिया परिवर्तित हो रहा है। पंजाब, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में भाजपा विरोधी नतीजों के बाद अब तेलंगाना, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी भाजपा की सत्तासीन होने की राह आसान नही दिखाई दे रही है। 

इसी बदले हुए माहौल का नतीजा है कि पिछले आठ वर्षों से मोदीमय भाजपा राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर अपने अनुसार कथानक तय कर रहे थे। बाकी सब दल बचाव और अनुसरण की मजबूरी में थे। अब चाहे अडानी का मुद्दा हो या हिन्दू-मुस्लिम कार्ड, भाजपा डिफेंसिव है। विपक्षी दलों का आत्मविश्वास बढ़ा है। भाजपा आलाकमान राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन या संगठन में बदलाव जैसे अहम फैसले लेने के बजाय राष्ट्रीय उलझन में रही। छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में वैकल्पिक नेतृत्व को आगे करने का काम किसी न किसी कारण से टलता ही रहा। इसका खामियाजा अंदरूनी कलह और जमीनी कार्यकर्ताओं की बेरुखी के रूप में पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है। दुरुस्त करने का समय निकल गया।

प्रांतीय चुनावों को वहीं के नेताओं पर छोड़ दिया है केंद्रीय संगठन ने मोदी सरकार के अब तक के कामों के प्रचार को प्राथमिकता दी है। उसके लिए देशभर में नेताओं को भेजा गया है। इससे संगठन में यह सन्देश गया है कि मोदी-शाह को केवल 2024 की चिंता है। 

भाजपा के जनसंघ के जमाने से सक्रिय नेता इसी गलती को बड़ा मान रहे हैं। उनका कहना है कि अगर पांच में से चार राज्यों में विपरीत परिणाम आये तो भाजपा के लिए मिशन 2024 कठिन होगा। तमाम सरकारी खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट भी यही इंगित कर रही है। यही कारण है कि मोदी-शाह इस विपरीत माहौल से उबरने के लिए कुछ बड़े फैसले लेने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। संसद का विशेष सत्र उसी का हिस्सा है। एक राष्ट्र,एक चुनाव, समान नागरिक संहिता, महिलाओं को संसद एवं असेंबलियों में 33 प्रतिशत आरक्षण देने से लगाकर देश का नाम इंडिया से बदलकर भारत करने जैसे ऐतिहासिक निर्णय लेने पर मंथन चल रहा है। 

कुल मिलाकर, मोदी-शाह की भाजपा के आलाकमान के माथे पर चिंता की सलवटें उभर आई हैं। पुराने पत्ते असर खो रहे हैं। नये कार्ड चलने पड़ेंगे। वो कितने मुफीद बैठेंगे, अनुमान लगाना मुश्किल है। पलड़ा भारी तो अभी भी है, लेकिन अलोकप्रियता भी बढ़ रही है। आने वाले दिन राजनीतिक तौर पर उथल पुथल भरे रहेंगे। 

जय हिंद 🇮🇳

संजीव आचार्य 

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