संचार साथी एप को लेकर विपक्ष का हमला, प्रियंका बोलीं-सरकार जासूसी करना चाहती है…. डिलीट कर सकते हैं संचार साथी ऐप: सिंधिया

नई दिल्ली। संचार साथी ऐप को लेकर जारी विवाद के बीच सरकार ने कहा है कि इसे फोन में रखना जरूरी नहीं है। साथ ही यूजर इसे डिलीट भी कर सकते हैं। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार को यह जानकारी दी है। दूरसंचार विभाग ने नवंबर में निर्देश जारी किया था कि भारत में इस्तेमाल हो रहे फोन में संचार साथी ऐप अनिवार्य होगा। विपक्ष ने इस ऐप के जरिए जासूसी के आरोप लगाए हैं।
सिंधिया ने कहा, ‘इसके आधार पर न कोई जासूसी है, न कोई कॉल मॉनीटरिंग है। अगर आप चाहते हैं, तो इसे एक्टिवेट करें। अगर आप नहीं चाहते, तो इसे एक्टिवेट मत करो। अगर आप इसे अपने फोन में रखना चाहते हैं, तो रखो। अगर आप इसको डिलीट करना चाहते हो, तो डिलीट करो…। अगर आपको संचार साथी इस्तेमाल नहीं करना है, तो डिलीट कर दो। इसे डिलीट कर सकते हैं, कोई परेशानी नहीं है।’ उन्होंने कहा, ‘यह उपभोक्ता की सुरक्षा की बात है…। आपको डिलीट करना है, तो डिलीट कर दोगे आप। कोई अनिवार्य नहीं है। अगर आप इस ऐप का उपयोग नहीं करना चाहते, तो इस पर रजिस्टर मत करो।
विपक्ष ने साधा निशाना
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने कहा कि यह कदम लोगों की प्राइवेसी पर सीधा हमला है। यह एक जासूसी एप है। सरकार हर नागरिक की निगरानी करना चाहती है। साइबर धोखाधड़ी की रिपोर्टिंग के लिए सिस्टम जरूरी है, लेकिन सरकार का ताजा आदेश लोगों की निजी जिंदगी में अनावश्यक दखल जैसा है। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि फोन फ्रॉड रोकने और नागरिकों की फोन गतिविधियों पर निगरानी रखने के बीच बहुत कम अंतर होता है।

प्रियंका गांधी ने कहा,  ‘साइबर सुरक्षा जरूरी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सरकार हर नागरिक के फोन में झांकने का बहाना बनाए। मुझे नहीं लगता कि कोई भी नागरिक इससे खुश होगा ‘
कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने भी सरकार के इस आदेश की आलोचना की है। वहीं, कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी ने मंगलवार को इस मुद्दे पर सदन स्थगन नोटिस भी दिया। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा, मैं सदन में बहस के दौरान बोलूंंगा … अभी टिप्पणी नहीं करूंगा। कांग्रेस सांसद शशि थरूर- संचार साथी एप उपयोगी हो सकता है, लेकिन इसे स्वैच्छिक होना चाहिए। जिसे जरूरत हो, वह खुद इसे डाउनलोड कर सके। किसी भी चीज़ को लोकतंत्र में जबरन लागू करना चिंता की बात है। सरकार को मीडिया के जरिए आदेश जारी करने के बजाय जनता को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए कि इस फैसले के पीछे तर्क क्या है।

प्रियंका चतुर्वेदी का भी विरोध: यह निगरानी का एक और तरीका
सरकार के इस कदम पर शिवसेना (यूबीटी) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी कड़ा विरोध जताया। उन्होंने इसे नागरिकों की निजी जिंदगी में दखल बताते हुए कहा कि प्री-इंस्टॉल्ड एप के जरिए सरकार फोन इस्तेमाल की हर गतिविधि पर नजर रख सकती है। ये निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, “प्री-इंस्टॉल्ड एप के नाम पर यह निगरानी का एक और तरीका है। इससे हमारी हर फोन गतिविधि ट्रैक की जा सकती है। हम इसका कड़ा विरोध करेंगे और सरकार से इसे तुरंत वापस लेने की मांग करेंगे”। उन्होंने साफ कहा कि उनकी पार्टी इस फैसले का हर स्तर पर विरोध करेगी, क्योंकि यह नागरिकों की स्वतंत्रता और निजता के खिलाफ है।

डुप्लिकेट IMEI नंबर से बढ़ रहा साइबर क्राइम

भारत में 1.2 अरब से ज्यादा मोबाइल यूजर्स हैं, जो दुनिया का सबसे बड़ा मार्केट है, लेकिन फर्जी या डुप्लिकेट IMEI नंबर की वजह से साइबर क्राइम बढ़ रहा है। IMEI एक 15 डिजिट का यूनीक कोड होता है, जो फोन की पहचान करता है।
अपराधी इसे क्लोन करके चोरी के फोन को ट्रैक से बचाते हैं, स्कैम करते हैं या ब्लैक मार्केट में बेचते हैं। सरकार का कहना है कि यह एप पुलिस को डिवाइस ट्रेस करने में मदद करेगा। सितंबर में DoT ने बताया था कि 22.76 लाख डिवाइस ट्रेस हो चुके हैं।

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