Neetish kumar : नीतीश कुमार को भारत रत्न देने का प्रस्ताव प्रधानमंत्री को दिया गया..?

रमा शंकर सिंह
खबर कुछ कुछ जगहों पर लीक हो गई थी तो किसी तरह दबाई गई कि ज्यादा न फैल पाये कि नीतीश कुमार को भारत रत्न देने का प्रस्ताव बिहार की भाजपा और जदयू ने संयुक्त रूप से प्रधानमंत्री को दिया गया है। ऐसे प्रस्ताव भाजपा द्वारा तो बिल्कुल ही औचक नहीं दिये जाते बल्कि पहले सिद्धांततः स्वीकृति ली जाती है फिर माहौल बनाया जाता है।
यही एकमात्र तरीक़ा ढूँढा गया कि कैसे भी नीतीश कुमार को नवंबर २०२५ में आसन्न बिहार चुनाव के पहले हटाया जाये और कोई नया नेतृत्व कामचलाऊ बना कर चुनाव के बाद ही पुख़्ता चुना जाये। मज़े की बात यह कि ये सारी योजना जदयू और नीतीश कुमार के दोनों चंगू मंगुओं ने बनायी है जो सिद्ध व स्पष्ट रूप से भाजपा के मोहरे हैं बल्कि प्लांट किये गये हैं। मत भूलिये कि नीतीश कुमार एक बार पहले भी रहस्योद्घाटन कर चुके हैं कि प्रशांत किशोर को जदयू का कार्यवाहक अध्यक्ष वे अमित शाह के कहने पर बनाया था। यह भी सभी को पता होना चाहिये कि वर्तमान में जदयू अध्यक्ष अरुण जैटली की सिफारिश पर जदयू में शामिल किये गये थे जो कि कभी किसी समय भाजपा में थे और अरुण जैटली के स्टॉफ में छोटा मोटा काम करते थे।
नीतीश कुमार की मानसिक तबियत अब पहले जैसी नहीं है यह अब जगज़ाहिर है। उनकी महत्वाकांक्षा राष्ट्रपति की है लेकिन उस पद पर अब सर्वशक्तिमान की नज़र है। उपराष्ट्रपति को राज्यसभा चलानी होती है इसलिये भी नीतीश कुमार वहॉं उपयुक्त नहीं बैठ रहे हैं।
तो कैसे कहा जाये और मनाया जाये नीतीश कुमार को कि कुर्सी ख़ाली कर दें ? भारत रत्न को मुख्यमंत्री पद पर नहीं बैठना चाहिये , अब इससे बड़ा और सम्मान क्या हो सकता है ?
जो नीतीश कुमार को जानते हैं वे समझते हैं कि उनका कोई भरोसा नहीं कि भारत रत्न भी ले लें और मुख्यमंत्री भी बने रहें ! ज़्यादा दवाब डाला हटने का तो लपक कर पड़ोस के यादव निवास में जाकर दही चिउडा खाने चले जायेंगें और एक फिर इस्तीफ़ा और फिर छठी बार मुख्यमंत्री पद का शपथग्रहण संभव है। लालू उधार लेकर बैठे ही हुयें कि कैसे भी सरकार फिर से बने और उनकी उगाही चालू हो जाये। उधर नीतीश कुमार के इकलौते पुत्र का राजनीति से वैराग्य अचानक ही खत्म हो गया है और उनकी इच्छा ज़ोर मारने लगी है कि पिता के बाद वे ही विरासत सँभालें। परिवारवाद से एकमात्र मुक्त पार्टी का दावा करने वाले नीतीश कुमार अब पुत्रमोह की ओर सरकने लगे हैं।
भाजपा को यही उपयुक्त लगता है कि सारी शर्तें मानते हुये कैसे भी बिहार की राजनीति के संतुलन फ़ैक्टर नीतीश के दल को हज़म कर लिया जाये कि बिहार की लड़ाई दो ध्रुवों में होनी चाहिये जिसे लंबे समय तक जीतना आसान होगा क्यों कि सबसे अविचारित असंगठित और हडबौंग भीड़ का दल राजद हइयै जो अपने मूल चरित्र से ही किसी भी सामाजिक समूह को नज़दीक करने के बजाये दूर भगाने में एक्सपर्ट हो चुका है।
उधर कांग्रेस के अंतिम खेवनहार जिस राजनीतिक रणनीति के पक्ष में दिख रहे हैं वह भी भाजपा के पक्ष में ही जायेगा और वह यह कि बिहार में कांग्रेस अकेले ही ताल ठोके यानी जीवन भर गांधी परिवार के समर्थन में रहे लालू की राजद के साथ चुनाव न लड़ें ! जो काम औबेसी मायावती आप पार्टी करती थी वोटकटवा भूमिका में वहीं शायद कांग्रेस इस चुनाव में २०२५ में बिहार में और २०२७ में यूपी में भी करने का तय करे। किन महान राजनीतिक विचारकों ने यह सुझाया है और किस बुद्धि विवेक के साथ स्वीकार किया जा रहा है यह तो नहीं मालूम पर यह तय है कि इसके बाद कांग्रेस न सिर्फ अपने २०१४ के लोकसभा की संख्या से भी नीचे जा सकती है। उन स्थितियों में अमेठी और रायबरेली फिर से बुरी तरह हार कर राहुल तब क्या तेलंगाना से चुनाव लडेंगें ? हर चुनाव में सीट बदलने वाले नेता की विश्वसनीयता कैसे बनेगी ?
एकमात्र भाजपा ही अब ऐसा राजनीतिक दल बचा है जो हर क्षेत्र अंचल राज्य की अद्यतन स्थिति पर बारीकी से विश्लेषण करती है और अपने हित में अल्पकालिक और दीर्घकालिक नीतियों को अमल में लाती रहती है। बिहार में जद यू की अंत्येष्टि किस रूप में होगी यह आज स्पष्ट नहीं है पर दो चार लोगों को फ़ौरी ही सही मनमाफिक पद बॉंट कर भाजपा विलय कराने का मार्ग चुनना पसंद करेगी।
फेसबुक वाल से साभार