चुनी सरकारों को नजरअंदाज करने वाले राज्यपालों को हटाने की बने व्यवस्था: जस्टिस नरीमन

नई दिल्ली। जस्टिस नरीमन ने कहा कि उन राज्यपालों के खिलाफ ऐक्शन लिया जाना चाहिए, जिन्होंने चुनी हुई सरकारों के कामकाज में अनाश्यक दखल दिया हो या दे रहे हों। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, ‘आप अपने दल के किसी नेता को नियुक्त नहीं कर सकते। स्वस्थ परंपरा स्थापित करें कि ऐसा कोई व्यक्ति नियुक्त न हो।’
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन का कहना है कि ऐसे लोगों को गवर्नर नहीं बनाना चाहिए, जिनके खिलाफ अदालत से कोई विपरीत आदेश आया हो। इसके अलावा उन्होंने कहा कि राज्यपालों की नियुक्ति और उन्हें हटाने के लिए एक संवैधानिक व्यवस्था की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि उन राज्यपालों के खिलाफ ऐक्शन लिया जाना चाहिए, जिन्होंने चुनी हुई सरकारों के कामकाज में अनाश्यक दखल दिया हो या दे रहे हों। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, ‘आप अपने दल के किसी नेता को नियुक्त नहीं कर सकते। स्वस्थ परंपरा स्थापित करें कि ऐसा कोई व्यक्ति नियुक्त न हो।’
उन्होंने यह भी कहा कि यदि किसी राज्यपाल को संवैधानिक अदालतें दोषी ठहराती हैं तो उसे पद से हटा देना चाहिए। उन्होंने कहा कि या तो अदालत ऐसा करे या फिर ऐसी परंपरा बनाएं कि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए जाने पर केंद्र सरकार उसे हटा दे। उन्होंने कहा कि यह देखना चाहिए कि राज्यपाल की शपथ में क्या लिखा गया है। उसका काम क्या होता है। उसे संविधान की मर्यादा के तहत काम करना चाहिए और लोगों की देखरेख करनी चाहिए। इसलिए यह ध्यान देने वाली बात है कि ऐसे व्यक्ति को राज्यपाल नहीं बनाया जा सकता, जो शपथ का उल्लंघन करता हो।
जस्टिस नरीमन ने कहा कि आप ऐसे नेता को राज्यपाल नहीं बना सकते, जो आपकी पार्टी से जुड़ा हो। राज्यपालों की नियुक्ति को लेकर भी एक नियमावली तैयार होनी चाहिए। उन्होंने स्पष्ट राय रखी कि अदालतों की ओर से दोषी ठहराए गए व्यक्ति को पद से हटा देना चाहिए। वह कहते हैं, ‘मान लीजिए कि एक राज्यपाल संविधान का उल्लंघन करता है। वह 10 विधेयकों को मंजूरी देने की बजाय उन सभी को राष्ट्रपति के पास भेज देता है। यह मामला जब अदालत में जाता है तो कोर्ट की ओर से उसे गलत ठहराया जाता है। लेकिन क्या आपने देखा कि किसी राज्यपाल को हटाया गया हो। इसलिए ऐसा कोई प्रावधान होना चाहिए कि या तो अदालत ही ऐसे राज्यपाल को हटा दे या फिर केंद्र सरकार की ओर से ही ऐक्शन लिया जाए।’
पूर्व जस्टिस नरीमन की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है, जब तमिलनाडु एवं पश्चिम बंगाल जैसे गैर-भाजपा शासित राज्यों तथा उनके राजभवनों के बीच विधायी प्रक्रिया में हस्तक्षेप संबंधी कानूनी विवाद चल रहे हैं। इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का 8 अप्रैल का फैसला भी उल्लेखनीय है। इसमें अदालत ने कहा था कि 90 दिन के अंदर राज्यपाल या राष्ट्रपति को बिल पर फैसला लेना चाहिए। यदि वे मंजूरी नहीं दे रहे हैं तो फिर उचित कारण बताते हुए वापस लौटाना चाहिए।



