Editorial
राहुल, रायबरेली और परिवार की परंपरा


अंतत: लंबी कशमकश के बाद कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश की रायबरेली और अमेठी सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी। राहुल गांधी अमेठी से नहीं, रायबरेली से चुनाव लड़ेंगे और अमेठी से गांधी परिवार के पुराने विश्वसनीय केएल शर्मा चुनाव मैदान में हांगे। इससे एक बात साफ होती जा रही है कि गांधी परिवार इन दोनों सीटों पर अपनी दावेदारी बनाए रखना चाहता है।
पिछले कुछ दिनों से रायबरेली और अमेठी सीटों के संभावित उम्मीदवारों को लेकर जैसी गहन चर्चा चल रही थी, उससे साफ है कि यह सिर्फ दो सीटों का मामला नहीं रह गया था। ये परिवार और परंपरा का प्रश्न बन गई हैं। ये दोनों सीटें न सिर्फ लंबे समय से कांग्रेस का गढ़ रही हैं, अपितु गांधी परिवार का पसंदीदा अखाड़ा मानी जाती रही हैं। हालांकि, अतीत में एकाधिक अवसर ऐसे आए हैं, जब इन सीटों की नुमाइंदगी गांधी परिवार से बाहर के व्यक्ति के हाथों में भी गई है, लेकिन इन सीटों को गांधी परिवार के चुनाव क्षेत्र के ही रूप में देखा जाता रहा है। पिछले चुनाव यानि 2019 लोकसभा चुनाव में अमेठी से राहुल गांधी की हार और इस बार सोनिया गांधी के लोकसभा चुनाव से बाहर रहने की वजह से कांग्रेस में इन दोनों सीटों पर शून्य बन गया था, इसे भरे जाने की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही थी।
सोनिया गांधी के राज्यसभा का रुख करने के बाद राहुल गांधी के रायबरेली सीट को चुनने और प्रियंका के चुनाव में खड़ा न होने के फैसले पर भी कई तरह से टीका-टिप्पणी की जा सकती है। लोग कर भी रहे हैं। भाजपा के कुछ नेता इसे राहुल का अमेठी से भागना बताने भी लगे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही सभा के दौरान राहुल को भागने वाला कह दिया। अमेठी से प्रत्याशी कोई भी हो, ये दोनों सीटें गांधी परिवार की प्रतिष्ठा से जुड़ी हैं। इन सीटों पर जीत-हार को गांधी परिवार की जीत-हार के ही रूप में ही देखा जाएगा। हालांकि राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने रायबरेली सीट से भी उन्होंने ताल ठोक दी है। और यह साफ कर दिया है कि गांधी परिवार उत्तर भारत से नाता नहीं तोडऩे वाला।
रायबरेली से नामांकन भरने के दौरान कुछ भावुक पल भी दिखाई दिए। राहुल गांधी के साथ सोनिया गांधी भी रायबरेली आईं। रायबरेली सीट से राहुल गांधी के नामांकन को लेकर एक वीडियो सामने आया है। इसमें सोनिया गांधी को एक दिग्गज नेता नहीं, बल्कि एक मां के रूप में महसूस किया जा सकता है। इसमें उनके जज्बात बेटे को लेकर साफ देखा जा सकता है। उनके मातृत्व भाव को देखकर हर कोई इसकी चर्चा करता दिख रहा है।
सोनिया गांधी ने फरवरी में चुनावी राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी। राजस्थान से राज्यसभा जाने वाली सोनिया गांधी ने रायबरेली को उस समय अपना परिवार बताया था। रायबरेली की जनता को लिखी चिट्ठी में सोनिया ने कहा था कि उनका परिवार हमेशा उनके दिल के करीब रहेगा। पांच सालों के बाद सोनिया गांधी एक बार फिर रायबरेली पहुंची तो उनके भाव भी उसी प्रकार के दिखे। सोनिया इस बार अपने बेटे राहुल के नामांकन के दौरान उनके साथ मौजूद रहीं। राहुल गांधी के नामांकन भरने के दौरान पूरे समय सोनिया गांधी उनके साथ दिखाई दीं।
राहुल गांधी का नामांकन के दौरान रायबरेली जिला कार्यालय में स्थित नामांकन केंद्र पर सबसे पहले सोनिया गांधी पहुंचीं। नामांकन कक्ष में प्रवेश के समय सोनिया गांधी ने सिर पर पल्लू डाल रखा था। उन्होंने हाथ जोडक़र मंच पर बैठे जिला निर्वाचन अधिकारी समेत अन्य अधिकारियों का अभिवादन किया। नामांकन दाखिल करने आने वाले प्रत्याशियों और उनके समर्थकों के लिए नामांकन कक्ष में कुर्सी लगाई गई थी, लेकिन सोनिया गांधी उस कुर्सी पर नहीं बैठीं। वह राहुल गांधी की प्रतीक्षा कर रही थी, जो पीछे से आ रहे थे। नामांकन फॉर्म दाखिल करने के पूरे कार्यक्रम के दौरान सोनिया गांधी और राहुल गांधी की अलग ही बॉन्डिंग दिखाई दे रही थी।
असल में सोनिया गांधी का रायबरेली से करीब 25 सालों का नाता रहा है। पहली बार उन्होंने वर्ष 1999 में रायबरेली लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में कदम रखा। इसके बाद 2004, 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने रायबरेली सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। गांधी परिवार की सबसे सुरक्षित सीट माने जाने वाली रायबरेली से वे 25 सालों तक प्रतिनिधित्व करती रही हैं। अब इस सीट की जिम्मेदारी उन्होंने राहुल गांधी को दे दी है। उनके सामने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह की चुनौती है। दिनेश प्रताप सिंह ने भी शुक्रवार को अपना नामांकन दाखिल किया। दोनों नेताओं की टक्कर की उम्मीद इस सीट पर की जा रही है। ऐसे में रायबरेली पहुंच कर सोनिया गांधी ने राहुल गांधी के लिए राह आसान करने की कोशिश की है।
बहरहाल, ये बात साफ है कि राहुल को रायबरेली सीट से प्रत्याशी बनाकर कांग्रेस ने संकेत दिया है कि दक्षिण के राज्यों से विशेष उम्मीदें रखते हुए भी उसने नॉर्थ और खासकर यूपी में अपनी दिलचस्पी कम नहीं होने दी है। यह बात और है कि राज्य में कांग्रेस का संगठनात्मक आधार हाल के वर्षों में काफी कमजोर हो गया है, लेकिन राहुल का रायबरेली से लडऩा एक राजनीतिक संदेश है और यह काफी मायने रखता है। अभी जब पांच चरणों की वोटिंग बाकी है, तो कांग्रेस नेतृत्व और गांधी परिवार का यह कथित आक्रामक रुख उत्तर भारत में मतदाताओं के मन को प्रभावित कर पाता है या नहीं और करता है, यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन अब यूपी की राजनीतिक जंग और रोचक हो गई है।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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