Editorial
नशे का नया नक्शा


मध्यप्रदेश के जो इलाके अफीम की खेती के लिए जाने जाते हैं, आज वे मादक पदार्थों की तस्करी का माध्यम बन गए हैं। आज प्रकाशित एक खबर ने फिर से चौंकाया है। इसमें बताया गया है कि अरुणाचल, झारखंड व मणिपुर की अफीम मध्यप्रदेश के मंदसौर-नीमच से होकर राजस्थान-पंजाब में सप्लाई की जा रही है। यह नया रास्ता काफी पहले से बना हुआ है, लेकिन इस समय यह हाट लाइन जैसा बन गया है, जो तस्करी के लिए काफी मुफीद माना जा रहा है।
कहने को दो साल में 1 हजार किलो सहित वर्ष 2023 में 376 किलो अफीम जब्त की गई है। इसमें से बड़ी मात्रा में मणिपुर व अरुणाचल से मप्र, राजस्थान व पंजाब भेजने की तैयारी थी। इसी तरह 2023 में ही 69 हजार किलो डोडाचूरा भी पकड़ा गया जो पंजाब भेजा जा रहा था। सूत्रों का तो यह भी कहना है कि मणिपुर में जो घटनाएं हो रहीं उसके पीछे अफीम कारोबार का वर्चस्व स्थापित करना भी एक बड़ा कारण है।
सेंट्रल ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स के अधिकारियों के अनुसार 2023 में ऑपरेशन प्रहार चलाते हुए 10326 हेक्टेयर की अवैध अफीम की खेती को नष्ट किया गया। इसमें अरुणाचल प्रदेश में 8501 हेक्टेयर और मणिपुर मेंं 1825 हेक्टेयर में फसल नष्ट की। यह आजादी के बाद अब तक का सबसे बड़ा ऑपरेशन भी रहा। वहीं ऑपरेशन शक्ति हिमाचल प्रदेश में चलाया। इसके अंतर्गत 1124 हेक्टेयर (2777 एकड़) में अवैध कैनबिस (गांजा) की फसल को नष्ट किया। इसमें ड्रग कार्टेल का सामना करने के लिए सशस्त्र बल के साथ कार्रवाई की गई। अधिकारियों के अनुसार नशे के इस नेटवर्क के पीछे बड़े-बड़े ड्रग कार्टेल सक्रिय हैं।
मध्यप्रदेश, राजस्थान व पंजाब के बड़े तस्कर सीधे नार्थ ईस्ट के गैंग के संपर्क में रहते हैं। इसकी तस्करी के लिए विशेष वाहन बनाते हैं जिसमें मादक पदार्थ छिपाने के लिए खुफिया जगह बनाई जाती है। यह बड़े-बड़े वाहनों में केला, मसाला व अन्य सामान की आड़ में मादक पदार्थ पूर्वोत्तर के राज्यों से लेकर निकलते हैं व मप्र, गुजरात, यूपी से रास्ते राजस्थान व पंजाब जाते हैं। इसके लिए मप्र में मंदसौर नीमच के रास्ते का उपयोग कुछ ज्यादा किया जाता है।
जर्नल ऑफ ड्रग एंड अल्कोहल रिसर्च एशदीन प्रकाशन की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में 60 प्रतिशत लोग नशे के आदी हैं। पश्चिमी राजस्थान के जोधपुर, बाड़मेर, जालौर, जैसलमेर और आसपास के जिलो में सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार अफीम का सेवन किया जाता है। समारोह में पीने के लिए अफीम दी जाती है। ऐसी सभा व समारोह को रेयान कहा जाता है। शादी समारोह हो या मौत-मरण के कार्यक्रम। इनमें पीने के लिए अफीम का प्याला सम्मान की निशानी के रूप में हथेली पर रखा जाता है। 45 गांवों के सर्वे में पाया कि लत की दर उम्र के साथ बढ़ती जा रही है।
अफीम को सामाजिक स्टेटस से जोडऩे के चलते अफीम से स्मैक बनाने का कार्य भी राजस्थान के क्षेत्रों में अधिक होने लगा है। इसलिए अफीम राजस्थान अधिक पहुंचती है। यहां से स्मैक तैयार कर देश के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचाई जाती है। सूत्रों के अनुसार नीमच जिले से लगे प्रतापगढ़ व झालावाड़ जिले के कुछ गांव में बड़ी मात्रा में स्मैक तैयार की जाती है। यहीं से छोटी-छोटी मात्रा में मध्यप्रदेश के जिलों में सप्लाई होती है। इसके अतिरिक्त पश्चिमी राजस्थान में बड़ी मात्रा में स्मैक बनाई जाती है। यहां से पंजाब-हरियाणा व अन्य स्थानों को भेजी जाती है। बताते तो यह भी हैं कि महाराष्ट्र और गोवा भी मादक पदार्थों की तस्करी यहां से खूब होती है।
यह सिलसिला लगातार जारी इसलिए रहता है, क्योंकि कार्रवाई के तहत जिन लोगों को पकड़ा जाता है, वो बहुत ही निचले स्तर के कार्यकर्ता होते हैं। इन्हें पैडलर भी कहा जाता है। कभी-कभार कुछ बड़े पैमाने पर कार्रवाई की जाती है, लेकिन उसमें भी नेटवर्क चलाने वालों का नंबर नहीं आ पाता है। कहा तो यह भी जाता है कि इस तस्करी की जानकारी बड़े अधिकारियों को होती है। इसमें कई बार अधिकारियों के साथ ही राजनेताओं का भी संरक्षण मिला होता है।
असल में जैसे शहरों में चालान बनाने का लक्ष्य देकर यातायात सुधारने की कार्रवाई पूरी कर ली जाती है, ठीक उसी तरह का अभियान तस्करी रोकने का चलता है। कुछ छोटे लोगों को पकडक़र बड़ी मात्रा का माल बरामद कर पुलिस या नारकोटिक्स विभाग के अधिकारी अपनी सीआर अच्छी कर लेते हैं और कहने को भी हो जाता है कि तस्करी रोकने में सफलता हासिल की गई। लेकिन तस्करी रुकती नहीं है। बताते हैं कि एक बार किसी नेटवर्क के प्यादे को पकड़ा जाता है, तो फिर उसे लंबे समय तक छूट भी मिल जाती है, ताकि वो अपना घाटा पूरा कर ले। तस्करी की यही परंपरा होती है। लेकिन इसका अहम पहलू तो यह है कि अफीम की तस्करी केवल अफीम नहीं इसके तमाम अन्य नशे के उत्पादों को बढ़ावा देती है। हेरोइन, एलएसडी जैसे नशीले पदार्थ भी इसकी आड़ में सप्लाई किए जाते हैं।
जहां तक मंदसौर, नीमच का सवाल है, तो यह इलाका अफीम की खेती के लिए  प्रसिद्ध है। इसका लाभ ही तस्कर उठाते हैं। लेकिन कुछ वर्षों से यहां अफीम की खेती पर बहुत सारे प्रतिबंध भी लगाए गए हैं। अब ये बात और है कि नारकोटिक्स विभाग की जानकारी के चलते ही बहुत कुछ होता रहता है। फिर भी नशे के कारोबार पर किसी भी तरह रोक लगाई जानी चाहिए। मध्यप्रदेश के ये इलाके कम से कम बदनाम न हों।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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