अमरावती। भारत के प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई (CJI B R Gavai ) ने एक बार फिर कहा है कि वह अनुसूचित जातियों (Scheduled Castes) के आरक्षण (Reservation) में क्रीमी लेयर को शामिल न करने के पक्ष में हैं। गवई ने ’75 वर्षों में भारत और जीवंत भारतीय संविधान’ नामक एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि आरक्षण के मामले में एक आईएएस अधिकारी के बच्चों की तुलना एक गरीब खेतिहर मजदूर के बच्चों से नहीं की जा सकती।
सीजेआई गवई ने कहा कि मैंने आगे बढ़कर यह विचार रखा कि क्रीमी लेयर की अवधारणा, जैसा कि इंद्रा साहनी (बनाम भारत संघ एवं अन्य) के फैसले में पाया गया है, लागू होनी चाहिए। जो अन्य पिछड़ा वर्ग पर लागू होता है। वही अनुसूचित जातियों पर भी लागू होना चाहिए। हालांकि इस मुद्दे पर मेरे फैसले की व्यापक रूप से आलोचना हुई है।
देश में समानता या महिला सशक्तीकरण बढ़ा
सीजेआई बी आर गवई ने कहा कि हालांकि मेरा अब भी मानना है कि न्यायाधीशों से सामान्यतः अपने फैसलों को सही ठहराने की अपेक्षा नहीं की जाती है और मेरे रिटायरमेंट में अभी लगभग एक सप्ताह बाकी है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पिछले कुछ सालों में देश में समानता या महिला सशक्तीकरण बढ़ा है।
राज्यों को सीजेआई ने क्या दी सलाह?
सीजेआई गवई ने 2024 में कहा था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के बीच भी क्रीमी लेयर की पहचान करने और उन्हें आरक्षण का लाभ देने से इनकार करने के लिए एक नीति विकसित करनी चाहिए।
