Upper Lake of Bhopal : सीएम के नाम बड़े तालाब की पाती…
हुज़ूर! आप तो मेरी सुध लीजिए

अलीम बजमी
27 मई 2025, भोपाल
प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री मोहन यादवजी मेरी भी अर्ज सुनिए। मुझ पर भी नजरें करम कीजिए। मैं आपके बंगले से नजर आता हूं। वीआईपी रोड से गुजरते वक्त आपने मुझे कोई बार देखा है। नहीं पहचाना तो मैं अपना परिचय आपको देता हूं। मैं बड़ा तालाब हूं।मेरी जलसंरचना विशाल है। यही मेरी पहचान है। मेरी उम्र 1000 साल से भी ज्यादा है। लेकिन बूढ़ा नहीं हूं। मैं अभी जवां हूं।
मेरी फरियाद है। मैं कुम्हलाना नहीं चाहता। जीना चाहता हूं। गुनगुनाना चाहता हूं। बरसात में मेघ चाहता हूं। बसंत की ताजगी और सावन की हरियाली से सरोकार चाहता हूं। प्रदूषण के रथ पर सवार स्याह सोच से छुटकारा चाहता हूं। यह मुमकिन है। बस आपकी (सीएम) तवज्जो मिल जाए। प्रार्थना है कि मेरा संरक्षण और संवर्धन किया जाए। यद्यपि यह बड़ा फैसला होगा।
ऐसा हुआ तो मेरा भविष्य संवरेगा। मेरी बिगड़ती सेहत सुधरेगी। इसके लिए जरुरी है कि मेरी जल गुणवत्ता को सुधारा जाए। नालों से सीवरेज मिलने से रोका जाए। कैचमेंट एरिया में खेती पर रोक लगे। इस खेती में खाद के रूप में केमिकल का इस्तेमाल होने से मेरी जलगुणवत्ता प्रभावित होती है।
मेरी दरकार पूरे शरीर की बड़े पैमाने पर शल्य क्रिया की है। जानता हूं कि यह बहुत महंगा है। खर्चा भी ज्यादा है। समय भी लगेगा। लेकिन आप (सीएम) इच्छा शक्ति की धनी हो। संवेदनशीलता आपका (सीएम) गुण है। उसी दृष्टि से मुझे देखे। पर्यावरणीय सरोकार से आपका नाता है। विश्वास है कि मेरे आग्रह को आप (सीएम) स्वीकार करेंगे।
दरअसल मेरे अंदर तहलटी में लाखों मिलियन क्यूबिक फीट गाद जमा है। बरसात में भदभदा बांध के गेट खुलने पर कचरा, जलकुंभी तो साफ हो जाती है लेकिन तलहटी में जमा गाद बाहर नहीं निकलती। इसके कारण जल स्तर फुल टैंक लेवल होने पर भी जल मात्रा कम ही रहती है।
कोलांश और उलझांवन मेरी लाइफ लाइन है। इन दोनों नदियों के जल मार्ग पर अवैध निर्माण और अतिक्रमण होने से इनका प्रवाह थम गया है। तरह-तरह की बाधाएं इनके मार्ग में खड़ी होने से यह अब बरसात में पूरे वेग से मुझ तक नहीं आती। सिर्फ इतना ही नहीं, मेरे अंदर शहर के बड़े-छोटे करीब 26 नालों से करोड़ों लीटर सीवेज रोजाना मुझमें आकर मिल रहा है।
यह स्थिति भी तब है जबकि मेरी पहचान जल स्त्रोत और लाइन लाइन के रूप में है। इसके कारण मेरी जल गुणवत्ता खतरे में है। मेरे अंदर कचरा डालकर मुझे प्रदूषित किया जा रहा है। ये मेरा दर्द है। पीड़ा है। अब मैं बहुत दुखी हूं। मेरा आपसे से निवेदन है कि मेरे जीवन की रक्षा करें। विश्वास है कि आप निराश नहीं करेंगे। वर्ष 1948 के पहले मेरा पानी इतना स्वच्छ होता था कि इसको बिना फिल्टर किए शहर को सप्लाई किया जाता था। लेकिन आज परिस्थितियां उलटी हो गई है।
चलिए मेरे बारे मैं भी जान लीजिए। मेरे आसपास पहाड़ियां है। हरियाली है। किनारों पर पत्तियों की कुरकुराहट है। हसीन मंजर, दिलकश फिजा भी है। मेरा दीदार करने, ताजी हवा लेने लोग मेरे करीब आते हैं। दोपहर में ताजी धूप मेरा श्रृंगार करती है। मेरे ठहरे पानी में गीत सरसराते है। मेरी लहरों का मचलना-इठलाना, किनारे पर दस्तक देना। मेरे चिरयुवा होने का सबूत है। मेरी शौख-ए-अदा भी है।
मुझे फक्र है कि शहर मुझ से मोहब्बत करता है। टूटकर चाहता है। पूर्वज भी मानता है। यहां की गंगा-जमुनी तहजीब का मैं हमेशा से कायल हूं। कई लोग तो अल सुबह मेरे नजदीक आकर कुछ पल ठहर कर जीते है। सूरज की किरणें आकर मेरे शरीर पर चांदी की परत चढ़ाती है। शाम ढलने पर रोशनी का झुरमट मुझे सलाम करता है। जी हुजूर, मैंने झुलसाती गर्मी, कड़कड़ाती सर्दी देखी है। सावन की घटाओं के उमड़ने-घुमड़ने का भी साक्षी हूं। मुझे हरदम तरोताजा रखती अलमस्त ब्यार है। कुदरत की चित्रकारी से रुबरु होना चाहते हैं तो ये जान लीजिए मेरी आकृति छिपकली जैसी है। लेकिन लोग मुझे अनुपम कहते हैं।
गोंड कालीन राज से रियासत काल फिर लोकतांत्रिक व्यवस्था का गवाह हूं। शहर के कई फसाने-अफसाने मेरे अंदर दफन है। मैंने भोपाल में जर्रे को आफताब और आफताब को जर्रा बनते हुए देखा है। यहां की सभ्यता, संस्कृति और आपसी भाईचारे, रिवायतों का मैं हमेशा से कायल रहा।अब मेरा आकार सिमट कर कागजों में महज 31 वर्ग किलोमीटर में है। लगभग 361 वर्ग किलोमीटर इलाके से मेरे अंदर पानी समाता है। अब मेरे पेट में 1160 लाख घन मीटर पानी समाता है।
वैसे मेरी एक पहचान जैव विविधता के कारण भी है। 103 दुर्लभ प्रजाति समेत 223 जलीय पौधों का संसार मेरे शरीर में हैं।
ये प्राकृतिक ट्रीटमेंट प्लांट का दर्जा रखते हैं, यानी मेरे अंदर दाखिल होने वाले जहरीले तत्वों को सोखते हैं। वहीं, वन राजा बाघ की दहाड़, पक्षियों की चहचहाट मुझे भाती है। मेरे भीतर लबालब पानी है। इसमें छुपा है, जलीय संसार। यह काफी समृद्ध भी है। लाखों प्रजाति की मछलियां कई परिवारों की जीविका का साधन है।
हर साल यहां देश-दुनिया के 200 से अधिक प्रजातियों के परिंदे मेरे आंचल में पनाह लेने आते हैं।इनमें व्हाईट स्टॉर्क, काले गले वाले सारस, हंस आदि है । मुझे मलाल है कि वक्त के बेरहम हाथों के कारण कुछ परिंदों की नस्लें खत्म हो चुकी थीं। मेरी खुशनसीबी है कि कुछ साल पहले अपने आकार और उड़ान के लिए प्रसिद्ध और देश में सबसे बड़े पक्षी का दर्जा रखने वाला ‘सारस क्रेन’ भी देखा गया था।
हांलाकि मुझे एक मलाल है कि मेरी सेहत को लेकर उतनी फिक्र नहीं की जा रही, जितनी की जानी चाहिए। मुझे जल्द इलाज नहीं मिला तो मेरा वजूद सिमट जाएगा।पारा 40-44 डिग्री रहने के साथ तेजी से वाष्पीकरण होने के कारण किनारों ने कई हिस्सों से पानी छोड़ दिया है।
उम्मीद है कि मुख्यमंत्री डॉ. यादव मेरी सेहत की फिक्र करेंगे। साथ ही मुझे संवारने की कवायद करेंगे। मेरे चारों तरफ सघन वन विकसित किया गया तो यकीन मानिए शहर के फेफड़े के रूप में मेरी पहचान प्राणवायु स्त्रोत के रूप में बनेगी। ऐसा हुआ तो आपको मिलेती तारीफ। बढ़ेगा मेरा जीवन।
अंत में डॉ. बशीर बद्र साहब की एक गजल
उदासी आसमां है दिल मिरा कितना अकेला है
परिंदा शाम के पुल पर बहुत ख़ामोश बैठा है
मैं जब सो जाऊं इन आंखों पे अपने होंठ रख देना
यक़ीं आ जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है
तुम्हारे शहर के सारे दिए तो सो गए कब के
हवा से पूछना दहलीज़ पे ये कौन जलता है
अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा
मुझे मालूम है क़िस्मत का लिखा भी बदलता है।
साभार