My Bhopal : फुटपाथ नहीं, बदनसीबी की पटरी है हुज़ूर …!

अलीम बजमी
19 मई 2025. भोपाल
भोपाल की तरक्की का तमाशा देखिए जनाब… इमारतें ऊंची हो गईं, फ्लायओवर चढ़ गए, मॉल चमकने लगे— लेकिन पैदल चलने वाला आज भी सड़क की ठोकरों में उलझा है। फुटपाथ—जो कभी राहगीरों की राहत थे, अब कब्ज़ेदारों की जागीर हैं। हर मोड़ पर अतिक्रमण का आलम यह कि आम आदमी के पास या तो सड़क पर जान जोखिम में डालकर चलने का विकल्प है, या फिर चुपचाप कोफ्त में घुटते रहना।
फुटपाथ: नाम का है, काम किसी और का है। जी हां हुजूर….. इन फुटपाथों पर कचौरी -समोसे, चाय की प्याली और प्लास्टिक की कुर्सियां पसरी हैं। फुटपाथ अब दुकान है, बाज़ार है, ठेले की जगह है, बस पैदल चलने वालों के लिए नहीं है।
वाह रे ‘स्मार्ट सिटी’! पैदल चलने की सहूलियत ग़ायब और वसूली की रसीदें हाज़िर। नगर निगम अमले की सुबह रसीद बुक के साथ शुरू होती है और शाम ‘वसूली लक्ष्यों’ के साथ पूरी। बदले में फुटपाथों की शक्ल वैसी की वैसी… मतलब बदहाल।
कानून, लाचार—कब्ज़ेदार शेर
हैरानी की बात ये नहीं कि फुटपाथों पर कब्ज़े हैं। हैरानी की बात ये है कि कोई डर नहीं, कोई रोक नहीं, कोई जवाबदेही नहीं। जो हटाने वाला है, वही बिछाता है गलीचे। और जो शिकायत करता है, उसकी आवाज़ ट्रैफिक के हॉर्न में गुम हो जाती है।
हुज़ूर! आप पैदल नहीं चलते, तभी तो दर्द समझ नहीं आता
शहर के रहनुमा लग्ज़री गाड़ियों से निकलते हैं। उनके लिए फुटपाथ सिर्फ़ चुनावी वादों का हिस्सा हैं, जमीनी सच्चाई नहीं। पैदल चलना जैसे उनकी हैसियत से बाहर है। तो फिर क्यों समझें वो उस बच्चे की मजबूरी जो स्कूल जाते वक्त हर रोज़ एक सिरे से दूसरे सिरे तक जान बचाकर चलता है?
विदेश गए, वहां से सिर्फ़ तस्वीरें लाए
नगर नियोजन के नाम पर अफसरान यूरोप, अमेरिका की गलियों से गुजरते हैं, जापान की ट्रेनों में सफर करते हैं। वापस आते हैं तो सबक नहीं, सिर्फ़ दौरे की रिपोर्ट लाते हैं। काश! फुटपाथों की इज़्ज़त वहीं से ले आते।
बात सियासत की भी कर लें…
वो हर साल ‘स्मार्ट सिटी’ के झंडे गाड़ते हैं, टेंडर पास होते हैं, योजनाओं की नींव रखी जाती है। पर असलियत यही है कि फुटपाथ पर चलना आज भी किसी सज़ा से कम नहीं। ट्रैफिक के बीच चलती आत्मा, हादसों के डर से कांपता शरीर और जिम्मेदारियों से मुंह चुराते अफसर—यही है शहर की असल तस्वीर।
फुटपाथों की बदहाली और पैदल यात्रियों की बढ़ती मौतें
–2024 में भोपाल में सड़क हादसों में 235 लोगों की मौत हुई, जो 2023 की तुलना में 20% अधिक है।
–भोपाल की प्रमुख सड़कों में से केवल 40% पर ही फुटपाथ हैं, और उनमें से भी अधिकांश अतिक्रमण या खराब रखरखाव के कारण उपयोग के योग्य नहीं हैं।
आख़िर में एक गुज़ारिश…
हुजूर! फुटपाथों को बचाइए। ये सिर्फ़ सीमेंट की पट्टी नहीं, आम आदमी की जिंदगी की डगर हैं। इन्हें सुधारिए, सुरक्षित बनाइए, और कब्ज़े हटाइए—वर्ना एक दिन सड़क पर सिर्फ़ वाहन होंगे और इंसान कहीं दिखाई नहीं देगा।
याद आता है डॉ. बशीर बद्र का शेर—
“मैं बोलता हूं तो इल्ज़ाम है बग़ावत का,
मैं चुप रहूं तो बड़ी बेबसी सी होती है…”
अब फैसला हुक्मरानों के हाथ में है—जनता की बेबसी दूर करनी है या फिर स्मार्ट सिटी को स्लोगन ही रहने देना है।

साभार

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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