Lifestyle यात्रा वृतांत -1
आईटी हब बंगलुरु, जैसा सुना था वैसा पाया

संजय सक्सेना
कुछ हट के। राजनीतिक – प्रशासनिक खबरों से…। हाल में पूरी हुई कुछ यात्राओं के अनुभवों को शब्दों में ढालने ला प्रयास करते हैँ। पहले चलते हैँ बेंगलुरु। भारत का सबसे बड़ा आई टी हब माना जाता है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से लेकर राष्ट्रीय कम्पनियों की भरमार है। शुरू करते हैँ भोपाल से, जो हमारा डिपार्चर स्टेशन था। हवाई यात्रा करनी थी। कुछ ही दिन हुए, अहमदाबाद की घटना ने झकझोर दिया था। खैर..। वैसे भी यात्रा शुरू करते समय भगवान को यादव कर लेते हैँ। इस बार विशेष तौर पर याद किया। कहने में संकोच नहीं, पहली हवाई यात्रा थी। विमान ने उड़ान भरी। सब ठीक रहा। कुछ ही देर बाद बादलों का डेरा सामने आया। एयर टरबूलेन्स की घोषणा हुई। थोड़ा डर जरूर लगा, अहमदाबाद याद आ गया। लेकिन कुछ ही पलों में बाहर आ गए।

हवाई जहाज से लिया गया चित्र


बेंगलुरु पहुंचे तो भोपाल का राजा भोज विमान तल बहुत ही छोटा लगने लगा। खैर.. टैक्सी से अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गए। रास्ता लम्बा था, पर जैसा सुना था, वैसा जाम नहीं मिला। भगवान का धन्यवाद किया और कुछ भोजन करके विश्राम की मुद्रा में चले गए।
शाम को अचानक सर्दी का प्रकोप बढ़ा और दवा का सहारा लेना पड़ा। रात्रि विश्राम के बाद सुबह कुछ बेहतर लगा। जिस कार्य के लिए बेंगलुरु गए थे, उसे संपन्न करने निकल पड़े। कार्यक्रम संपन्न होने के बाद शहर में भ्रमण किया और फिर शाम को एक दक्षिण भारतीय कैफे का ज्याजा लेने पहुँच गए। दिन में भोजन के साथ महाराष्ट्रीयन पूरन पोली का स्वाद लिया, वो थोड़ी भारी रही, सो शाम को कुछ हल्का लेने की इच्छा थी। रामेश्वरम कैफेव पहुंचे तो वहाँ काफ़ी संख्या में हिंदी भाषी लोग थे। भोपाल से अलग कल्चर। भीड़ अच्छी। लोग सीढ़ियों पर भी बैठ कर खा रहे थे। प्रवेश के पहले सुरक्षा की जाँच अवश्य की जा रही थी। यहाँ का स्वाद दक्षिण भारतीय शैली का ही था, भोपाल के इंडियन कॉफ़ी हॉउस ला स्वाद जीभ पर रहता है, जो स्वाभाविक है, यहां उस से कुछ अलग था। शाम को घर पहुंचे तो रास्ते में बेंगलुरु के जाम का भी थोड़ा अनुभव लिया। हमारे भांजे साहब ही वाहन चला रहे थे, वो यहाँ रहते रहते अभ्यस्त हो गये हैँ। रात को कहीं जाने का सवाल ही नहीं था।
दूसरे दिन कुछ और घूमने का प्लान था। सो, निकल लिए। पहले तो एक दिल्ली वाले के रेस्टोरेंट में पहुंचे। दो परिवार थे। दिल्ली स्टाइल में ही भोजन मंगाया और आनंद उठाया। फिर चल पड़े लाल बाग बॉटनिकल गार्डन की तरफ। ये ऐतिहासिक गार्डन है। वाकई ऐतिहासिक है ये गार्डन। हजारों प्रजातियों के वृक्ष और पौधे हैँ यहाँ। लम्बे चौड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। बुजुर्गों के लिए बैटरी वाली गाड़ी उपलब्ध है। उन्हें मुख्य स्थान दिखाए जाते हैँ।
कुछ बोन्साई पेड़ थे। भोपाल में बोन्साई प्रदर्शनी में कई प्रजातियां देखते रहे हैँ, यहाँ कुछ हटकर था। बताया गया कि ये बेंगलुरु के संस्थापक केम्पेगौड़ा द्वारा निर्मित, किया गया था। 240 एकड़ में फैले बाग़ में 300 करोड़ वर्ष पुराना एक चट्टानी उभार है, ये  एक राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक स्मारक है। इसके ऊपर स्थित एक प्रहरीदुर्ग भी इस सुरम्य उद्यान की सुंदरता बढ़ाता है।


यहां का लालबाग ग्लास हाउस, कांच और लोहे से बना एक विशाल महल जैसा ढांचा है, जो लंदन के हाइड पार्क स्थित क्रिस्टल पैलेस से प्रेरित है। लालबाग ग्लास हाउस का निर्माण 1989 में हुआ था और 2004 में इसका जीर्णोद्धार किया गया था। यह लालबाग आने वाले पर्यटकों के लिए आज भी मुख्य आकर्षण का केंद्र है। लालबाग के दक्षिणी भाग में एक बड़ी झील है, जिसमें पैदल मार्ग, एक पुल और एक छोटा झरना भी है।लालबाग में भारत के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय पौधों का सबसे बड़ा संग्रह है, जिसमें कई सदियों पुराने पेड़ भी शामिल हैं। स्नो व्हाइट का अपना आकर्षण है। एक नहीं कई ऐसे वृक्ष हैँ, जो हजारों साल पुराने हैँ। एक वृक्ष ऐसा है, जिसके तने में कई शाखाएं हैँ, उसमें लोगों का प्रवेश वर्जित है। हालांकि हम भी वनस्पति शास्त्र के छात्र रहे हैँ, इसलिए दिमाग़ में थोड़ा बहुत जानकारियां शेष हैँ, वो स्मृति पटल पर आ जाती हैँ। लेकिन  पौधों के बॉटनिकल नाम भूल चुके हैँ। पढ़कर ही जान पाते हैँ। गार्डन में फोटो के लायक इतना था कि क्या कैद करें, क्या छोड़ें, समझ नहीं आ रहा था। फोटो के साथ ही तमाम चीजें स्मृतियों में सहेजने का प्रयास किया और फिर लाल बाग़ से रवाना हो गए।
तीसरे दिन सुबह छह बजे भोपाल वापसी की फ्लाइट थी, विमान तल की दूरी और शहर की व्यस्तताओं के साथ ही दो घंटे पहले पहुँचने की अनिवार्यता के चलते तड़के तीन बजे  घर से निकले, चार बजे कैम्पगोवड़ा अंतर्राष्ट्रीय विमान तल पहुंचे, डेढ़ घंटे में भोपाल। और इस तरह नई पीढ़ी के बच्चों के पसंदीदा शहरों में से एक  बेंगलुरु की यात्रा संपन्न हुई। मस्तिष्क में कुछ विचार कौधते रहे, हमारा भोपाल कहाँ है? हमारे लिए भले ही रहने के लिए बहुत मुफीद… नई पीढ़ी के लिए पुराना छोटा शहर, कम वेतन, ज्यादा काम, योग्यता के लिए बेहद कम अवसर, प्रोफेशनल कहने के लिए शायद कुछ नहीं। झीलों और शैल शिखरों की नगरी। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर, लेकिन विचार तो करना चाहिए कि कुछ, या बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। इति…।

लाल बाग के कुछ फोटो
बेंगलुरु का कैफे
Exit mobile version