यादों के चिनार और हजरत बल का अशोक स्तम्भ

 सुदेश वाघमारे

जब भारत की आबादी चालीस करोड़ थी तो रवीन्द्र नाथ टैगोर ने इसे मानवों का महासमुद्र कहा था। आज जब एक सौ चालीस करोड़ से भी अधिक है तो इसे क्या कहा जाये? मनोचिकित्सक कहते हैं कि भारत में हर दस में से एक आदमी मनोरोग(पागलपन) से पीड़ित है। यानि भारत में चौदह करोड़ पागल हैं। कश्मीर घाटी में कितने होंगे? फेनेटिक होना भी पागलपन की श्रेणी में रखा जाता है।
जब १९८० में पहली बार कश्मीर गया तो दो चीजें देखने की इच्छा बलवती थी। एक तो चिनार के पेड़। ‘यादों के चिनार’ में कृशन चन्दर ने क्या ही शानदार वर्णन इन पेड़ों का किया है। दूसरा हजरत बल।जिसका पवित्र बाल जब मैं अखबार पढ़ना सीख रहा था -सात साल की उम्र में १९६३ में,तब हजरत मोहम्मद साहब का बाल चोरी हो गया था और नव भारत उसकी सुर्खियों से भरा रहता था। बल का मतलब स्थान(स्थल) होता है न कि बाल जैसा कि सामान्य लोग अर्थ लगाते हैं। अस्सी के दौर में हजरत बल लगभग वैसा ही था जैसा १६९९ में हजरत मोहम्मद साहब की दाढ़ी  का बाल लाते समय समय रहा होगा और शाहजहाँ के बेटे दारा शिकोह ने डल झील के पास मस्जिद की तामीर करवाई होगी। जी! ये वही दाराशिकोह है जिसने वेदों का तर्जुमा करवाया था और ओरंगजेब ने इसकी हाथियों से कुचलवाकर और अंधा कर हत्या करवाई थी। तब मैं दरगाह को उसी श्रद्धा से नमन करके चला आया था जैसे बाकी लोग कर रहे थे। तब तक मेरे मुस्लिम दोस्तों को फोटो से घृणा नहीं थी और मेरा कश्मीर का ही दोस्त अपनी शरीके- हयात और बेटी का फोटो पर्स में रखता था और जाहिर है नमाज़ पढ़ने में पर्स साथ ले जाता था। अब कश्मीर की महिला नेता दरख़्शा अंद्राबी यदि यह कह रही हैं लोग असर- ए- शरीफ/दरगाह शरीफ/मदीन-उस-सानी(हज़रत बल को इन नामों से भी पुकारा जाता है) में प्रवेश के समय रुपये अंदर न ले जाएँ क्योंकि उनमें अशोक चिह्न या गांधी की फोटो है। तो वह सही ही कह रही हैं।मुझे याद है कि कुछ लोग तब भी घरों में एक फोटो लगाया करते थे जिसका आधा शरीर किसी पवित्र देवी का और आधा अश्व का होता था। उसे शायद हुमा कहते थे। एक शेर भी है-

ख़ुशी का ज़िक्र तो अक्सर सुना किये ‘ताँबा’
मगर वजूद न पाया कहीं हुमा की तरह ।
मगर यह फोटो भी वैसे ही ग़ायब हो गया जैसे ख़ुदा हाफिज हो गया है।अब लोग अल्लाह हाफिज कहते है।
बी एन एस की धारा १२४ में राष्ट्रीय चिन्हों को अपमानित करने पर तीन साल की बमशक्कत सजा है। अभी तक लगभग चालीस लोगों को गिरफ्तार किया गया है। ट्रैक करिये कि इन्हें सजा होती है या नहीं। ऐसे मुद्दों पर लिखने के लिये थोड़ी अक्ल और हिम्मत की दरकार होती है। वामी कोई भड़काऊ कमेंट न करें और ग़ालिब को पढ़ें-
या रब न वो समझें हैं न समझेंगे मेरी बात
दे और दिल उनको जो न दे मुझको ज़ुबाँ और।

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