BHOPAL : मैं भोपाल हूं, अब यही मेरी पहचान…नवाब बेगमों ने मेरे हुस्न को निखारा, दिलकश अंदाज में संवारा

आकाश से देखेंगे तो घोड़े की नाल जैसी मेरी आकृति नजर आएगी
गौरव दिवस की बधाई
अलीम बजमी,  1 जून 2025
मैं भोपाल हूं। मैं स्वर्णिम हूं। प्रदेश की राजधानी हूं। जिला मुख्यालय हूं। मध्य प्रदेश की पहचान हूं। प्रदेश का स्वाभिमान हूं। मेरा परिचय और भी है।  मैं अपना क्या जिक्र करुं। मैं देश के मध्य भाग में स्थित हूं। विंध्य पर्वत श्रेणियों की उत्तरी सीमाओं पर बसा हूं। ऊंची- नीची सतह पर खड़ा हूं। मेरे भीतर और सीमाओं पर बड़ी-छोटी पहाड़ियां हैं। मेरा अतीत समृद्ध है। गौरवशाली भी है। वैभव और ऐश्वर्य भरा मेरा जीवन है। मैं हमेशा से गंगा-जमुनी संस्कृति का पक्षधर रहा। मुझे अमन का टापू भी कहा जाता है। भोपालियों की मोहब्बत कद्र करने के लायक है। यहां की भाषा में अपनत्व है। लावण्य है। यहां के तीज-त्योहार, परंपराएं महान सभ्यता, संस्कृति की प्रतीक है। यहां के लोगों के सरोकारों में मानवता शामिल है।
मेरे अंदर प्रदेश धड़कता है। सच पूछो तो मुझे सही ढं‍ग से याद नहीं, कब किसने मेरी नींव रखीं। पूंछु भी किससे अब मेरा कोई नातेदार नहीं। हां, मैं गोंड शासन काल से भोपाल रियासत का दौर फिर जम्हूरियत कायम होने का गवाह हूं।
पहले बात मेरे नाम की। मेरा असली नाम भूपाल है। भोपाल नाम तो अपभ्रंश है। इसको लेकर कई लोगों का दावा है कि राजा भोज ने मुझे बसाया था। बड़ा तालाब उन्होंने ही बनवाया। भोजपाल बांध के कारण मेरा नाम भोपाल पड़ा। इसको लेकर इतिहासकारों में काफी मत भिन्नता है। भूपाल शब्द को लेकर यह भी किवदंती है कि 650 ईस्वी के आसपास भूपाल शाह नामक गोंड राजा ने मेरी परवरिश करते हुए मुझे बनाने की नींव रखीं थी। मुझ पर गोंड राजाओं का लंबे समय तक शासन रहा। आखिरी गोंड शासक रानी कमलापति थी। वे राजा निजाम शाह की पत्नी थीं।।
मुझे याद है कि भोपाल रियासत काल में 1847 में अंग्रेजों का प्रवेश हो गया। अंग्रेजों ने भूपाल की स्पेलिंग लिखने में गलती कर दी। ऐसा कहा जाता है। अंग्रेजों की इस गलती का नतीजा ये हुआ कि भूपाल (Bhupal), भोपाल (Bhopal) हो गया। उर्दू  लिपि में भू या भो अक्षर एक ही जैसा लिखा जाता है। इस कारण भूपाल को भोपाल पढ़ा जाने लगा। तब से यह प्रचलन में आ गया। उनके बाद 1723 से रियासत का दौर शुरू होकर 1949 तक रहा।
मैंने चिलचिलाती गर्मी, कड़कड़ाती सर्दी और मूसलाधार बारिश को देखा है। सावन की झड़ी में मेरा हुस्न निखरा है। मैंने तख्त से कई सूरमाओं को उतरते, सोने-चांदी की मीनारों को रोते,  देखा है। मेरे अंदर कई अफसाने और फसाने है। कई राज को समेटा हूं। कई दिलकश मंजर मेरी निगाहों में है।
गैस त्रासदी का चश्मदीद हूं। त्रासदी का खौफनाक मंजर देखा है। उस वक्त हजारों लाशों को देखकर मैं रोया था। मुझे याद है, मरघट का हाहाकार, गलियों में लाशों का अंबार,  चौतरफा विलाप। याद करके सहमता हूं। कांपता हूं। ऐसा ही फिर एक दौर कोरोना काल में देखा। यह दो वाकये मेरे दिल पर टीस की तरह है। आप भी कहेंगे, मैंने कौन सा फलसफा खोल लिया। आगे बढ़ने से पहले मेरा एक दर्द भी जान लें। दोबार देश के स्वच्छ शहरों में दूसरे नंबर का तमगा मिलने के बाद यह खुशी मुझे फिर नहीं मिली। इसका मुझे मलाल है। मेरा सवाल है कि मेरे दामन में रहकर मुझे क्यों गंदा करते हो? तुमको और मुझको यही रहना हैं। वादा करो कि शहर को स्वच्छ रखोगे।
अब यह भी जान लीजिए , मेरे उत्तर में गुना जिला, उत्तर-पूरब में विदिशा जिला, पूरब व दक्षिण-पूर्व में रायसेन जिला, दक्षिण व दक्षिण-पश्चिम में सीहोर जिला तथा उत्तर-पश्चिम में राजगढ़ जिला है। मध्य प्रदेश गठन के उपरांत राजधानी बनने का गौरव मुझे (1 नवंबर 1956) डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा के प्रयासों से मिला तो 2 अक्टूबर 1972 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल ने मुझे जिला मुख्यालय बनाया।
प्रसंगवश एक बात कहूं, ड्रोन से अगर आप मेरी तस्वीर लेंगे तो घोड़े की नाल जैसी मेरी आकृति नजर आएगी। इसकी वजह मेरे अंदर खड़ी पहाड़ियां हैं।
अब बात मेरे शारीरिक दायरे की तो जिले के रूप में मेरा क्षेत्रफल 2,772 वर्ग किमी है। आबादी अघोषित रूप से 27 लाख है। थोड़ा फ्लैश बैक में चले तो रियासत काल में महिला शासकों (1819 से लेकर 1926)  ने हमेशा मेरी फिक्र की। यही वह दौर था, जब मातृसत्ता की शुरुआत होने से नवाब बेगमों ने मेरे हुस्न को निखारा। मुझे मेहविश (उज्जवल) बनाया। दिलकश अंदाज में संवारा। हरियाली की चुनरी से मेरा श्रृंगार किया। यह सभी समाज सुधारक और प्रगतिशील भी रही।
मैं तब ज्यादा खुश होता हूं, जब मेरी तारीफ होती है। मेरा मान-अभिमान पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के शब्दों से बढ़ा था। उन्होंने भारत भवन के उद्घाटन अवसर पर कहा था कि अब भोपाल कलाओं का घर बन चुका है। यह बहुत सुंदर है। इसे और सुंदर बनाए जाने की जरूरत है। यूं तो कई महिला हुक्मरां मैंने देखे। लेकिन राज्यपाल के रूप में सरला ग्रेवाल जैसा कोई मुझे नजर नहीं आया। सरोवर हमारी धरोहर नाम से उनकी चलाई गई मुहिम से मेरे शरीर में मौजूद बड़े तालाब को नया जीवन मिला था। मेरे इर्द-गिर्द मौजूद धरोहरों का संरक्षण भी उनके कार्यकाल में हुआ था।
हां मैं आभारी हूं, बाबूलाल गौरजी का। उन्होंने स्थानीय प्रशासन मंत्री के रूप में अतिक्रमण विरोधी मुहिम चलाकर मुझे व्यवस्थित किया था। इसके पहले अगर मैं पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह का जिक्र न करूं तो बात अधूरी रहेगी। मेरे अंदर राष्ट्रीय शिक्षण संस्थान, न्यायिक शिक्षण संस्थान, राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्व विद्यालय, वन प्रबंध संस्थान, होटल प्रबंध संस्थान जैसे कई उच्च संस्थानों को जगह देकर देश-दुनिया में मेरा मान बढ़ाया। मुझे गर्व है कि भोपाल में अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिक्षण संस्थान है।
हां, मेरा सौंदर्य को निखारने और शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर को व्यवस्थित बनाने पहला मास्टर प्लान वर्ष 1975 में लाया गया। लेकिन अफसोस। इसकी अधिकांश सिफारिशों पर अमल नहीं हो सका। इस दौरान तत्कालीन सीएम श्यामाचरण शुक्ल ने एक सपना देखा था। वह बाणगंगा इलाके से भदभदा तक जलमार्ग बनाना चाहते थे। यह हकीकत है। गप्प नहीं। बिल्कुल इटली के वेनिस शहर की तरह।  उनका ड्रीम पूरा हो पाता तो मुझे सैलानियों के बीच वेनिस की तरह पहचान मिलती।
मेरी जमीं – मेरे फ़ख़्र
मेरे आंचल में हैं बड़ी झील, छोटी झील – जो सिर्फ़ पानी का ज़रिया नहीं, मेरी रूह का अक्स हैं। वन विहार, मनुआ भान की टेकरी, शौकत महल, गौहर महल, सदर मंज़िल, केरवा और कलियासोत – ये सब मेरी शान हैं। मनुआ भान की टेकरी, बिड़ला मंदिर, गुफा मंदिर, ईदगाह गुरुद्वारा, ताज-उल-मसाजिद, ढाई सीढ़ी मस्जिद, मोती मस्जिद, जामा मस्जिद जैसे इबादतगाहें मेरी रूह की पाकीज़गी का सुबूत हैं।
भारत भवन, राज्य संग्रहालय, जनजातीय संग्रहालय – ये मेरी रचनात्मकता और सांस्कृतिक चेतना के मरकज़ हैं। मेरी सरज़मीं पर भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स (भेल) का कारखाना है, इसरो की मास्टर कंट्रोल फैसिलिटी भी है।
आपके जानने की एक बात
रियासत काल में पहले दीवान बजे राम से लेकर आखिरी दीवान (प्रधानमंत्री) सर अवध नारायण बिसारिया तक सब हिन्दू थे। यह एक रिवायत रही।  इसका उद्देश्य सामाजिक सौहार्द्र को बनाए रखना था। 1721 में दोस्त मोहम्मद खां ने अपनी पत्नी ‘फ़तेह बीबी’ की याद में फ़तेहगढ़ का क़िला बनवाया । कई सालों तक शहर इसी किले के अंदर सिमटा रहा  था।
अब बात जुबान की गोंडी भाषा के मिश्रण के रूप में यहां की स्थानीय भाषा है। इसमें गुलाबी उर्दू, अवधी, ब्रज और भोजपुरी का भी तड़का है। इसे भोपाली जुबान भी कहते हैं। शहर में कई लोग आपको बर्रू कट भोपाली के रूप में अपना परिचय देते हुए मिल जाएंगे। दरअसल शहर के कई हिस्सों में लगी खास किस्म की घास को बर्रू कहते थे, इससे बनने वाली कलम से आज भी कायस्थ समाज कलम दवात की पूजा करते हैं।  इस घास को काटकर जिन्होंने अपने-अपने आशियाने बनाए वह बरर्रू कट भोपाली कहलाए।
अब मैं बदलते वक्त के साथ ‘महानगर’  बन गया हूं। अपने शरीर पर गगन को छूती इमारतों को पाता हूं। चौड़ी सड़कों को देकर खुश होता हूं। इन पर फर्राटे से दौड़ती कारें और चकाचौंध रोशनी अब मेरी जीवंतता की पहचान है। मुझे एम्स, बंसल, सेज-अपोलो, हमीदिया, बीएमएचआरसी के कारण मेडिकल हब एवं चोटी के शिक्षण, आईटी संस्थान होने से एजुकेशन हब के रूप में पहचाना जाने लगा है। इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम किए जाने से अब मुझे मेट्रो चलने का इंतजार है। अंतरराष्ट्रीय स्तर का एयरपोर्ट बनने से मेरा मान बढ़ा है। मुझ तक पहुंच के लिए आठ सड़क सीमा मार्ग डेवलप हुए हैं।
मुझे 1 जून को अत्यंत आत्मीयता से गौरव दिवस के रूप में याद किया जाएगा। इसके लिए शासन-प्रशासन का अग्रिम में आभार। लेकिन सच कहूं, मुझे तमगों, तारीफों की चाहत नहीं। मेरी खुशी तो इसी में है कि मेरी गलियों, सड़कों, बस्तियों में हमेशा बच्चे खिलखिलाते रहे, मेरे आंचल में हरियाली रहे और फिजा में इंसानियत की महक बसी रहे। हुजूर, मैं शहर नहीं, एहसास हूं। मैं तहज़ीब का वो गुलशन हूं, जहां हर फूल में मोहब्बत की ख़ुशबू है,  तहज़ीब की रूह हूं। मैं सिर्फ और सिर्फ मोहब्बत का पैग़ाम हूं। सभी को मेरी शुभकामनाएं।
आपका अपना भोपाल।
साभार

Exit mobile version