Bhopal : 1908 की पहली बल्ब की जगमगाहट से 24×7 सप्लाई वाले आधुनिक शहर तक… बिजली व्यवस्था के विकास ने बदल दी भोपाल की रातों की पहचान

अलीम बजमी

भोपाल। एक सदी पहले तक भोपाल में बिजली नहीं थी और घरों से लेकर महलों तक रोशनी का साधन लालटेन और पेट्रोमैक्स लैंप ही थे। शहर की सड़कों पर लगे लैंप पोस्टों में केरोसिन डालकर रोशनी की व्यवस्था की जाती थी। त्योहारों, मांगलिक और सामाजिक आयोजनों में दिन का समय अधिक उपयुक्त माना जाता था, क्योंकि रात में कृत्रिम प्रकाश सीमित होता था। मजलिस-ए-इंतजामिया (भोपाल म्युनिस्पिल बोर्ड) द्वारा चार कर्मचारियों (पद नाम-लाइट निगरां) को साइकिल, सीढ़ी और तेल की कुप्पी दी जाती थी ताकि वे रोज़ इलाके के लैंप पोस्टों में तेल भर सकें। उस समय हमीदिया रोड सबसे ज्यादा रोशन सड़क मानी जाती थी, उसके बाद तीन मोहरे–रायल मार्केट और पुलपुख्ता का क्षेत्र आता था।
1908 में पहली बार बिजली का आगमन
बुजुर्गों से सुना है कि नवाब सुल्तान जहां बेगम के दौर में 1908 में भोपाल में पहली बार बिजली आई। कसरे-ए-सुल्तानी को रोशन करने के लिए छोटा सा पावर हाउस बनाया गया था, जिसकी बिजली केवल महल तक सीमित थी। बाद में इसकी क्षमता बढ़ने पर चुनिंदा सरकारी इमारतों, कोठियों और बंगलों में भी बिजली देने की शुरुआत हुई। यह दौर भोपाल के लिए बिजली व्यवस्था का पहला अहम मोड़ था, जिसने शहर की रातों में नई चमक भर दी। ये भी याद रखने योग्य है कि भोपाल से पहले ग्वालियर शहर में 1905 में बिजली आ चुकी थीं। इन दोनों शहरों से पहले कोलकाता और मुंबई 1883 में बिजली से रोशन हो चुका था।
चांदबड़ पावर हाउस क्यों बना
बिजली उत्पादन के लिए पहला बड़ा पावर हाउस रेलवे स्टेशन के पास चांदबड़ में स्थापित किया गया। यह इलाका इसलिए चुना गया क्योंकि यहां रेलवे से कोयला लाना आसान था और यह क्षेत्र आबादी से दूर था, जिससे सुरक्षा और विस्तार में सहूलियत मिलती थी। चांदबड़ उस समय “बैरून भोपाल” यानी शहर पनाह ( फतेहगढ़ किले की सीमा दीवार) के बाहर का हिस्सा माना जाता था।
1918 में सरकारी उपक्रम का रूप
नवाब सुल्तान जहां बेगम के दौर में 1918 में  इस पावर हाउस का विस्तार कर इसे सरकारी उपक्रम बना दिया गया, हालांकि कुछ समय बाद इसकी कार्यप्रणाली संतोषजनक न होने पर इसे अर्ध-वाणिज्यिक संस्था का रूप दिया गया। उस समय शहर में बिजली केवल शाम से मध्यरात्रि तक दी जाती थी और रात 12 बजे के बाद सप्लाई बंद कर दी जाती थी। इसका बड़ा कारण था कोयले की सीमित उपलब्धता और उत्पादन क्षमता कम होना था। उस दौर में बिजली गुल होने से महल और बड़ी कोठियां भी अछूती नहीं रहती थीं।
1924: 24 घंटे बिजली की शुरुआत
1924 में स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए बड़ा फैसला लिया गया और 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराने की व्यवस्था बना दी गई। 1923 तक पावर हाउस में 200 किलोवाट क्षमता के दो सेट थे, जिनसे 400 से 4600 यूनिट की दैनिक मांग पूरी की जाती थी। यह वह दौर था, जब शहर करवट ले रहा था। औद्योगिक और शहरी विकास की गति तेज होने पर बिजली पर निर्भरता बढ़ने के साथ उत्पादन क्षमता को लगातार बढ़ाया जाने लगा।
1926–1928 पावर सिस्टम को बढ़ाया गया
बढ़ती मांग के कारण 1926 में एक और 200 किलोवाट का सेट लगाया गया और 1927–28 में 500 किलोवाट का एक अन्य संयंत्र स्थापित किया गया। इसी अवधि में भोपाल का पहला नया उपकेंद्र अलीगंज (जुमेराती) में बनाया गया। यह रियासतकाल में पहला सब स्टेशन था। नवाबी काल में कपड़ा मिल, पुट्ठा मिल और माचिस फैक्टरी जैसे औद्योगिक कारखानों ने अपनी स्वयं की बिजली व्यवस्था कर रखी थी, हालांकि रियासत की ओर से भी उन्हें सप्लाई दी जाती थी।
1950: बिजली इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने की प्लानिंग 
आजादी मिलने के तीन साल बाद 1950 में भोपाल विद्युत गृह की कुल क्षमता 1100 किलोवाट थी और शहर में बिजली उपभोक्ताओं की संख्या 3577 तक पहुंच गई थी। उस समय 0.950 मिलियन किलोवाट घंटे की निम्न और मध्यम वोल्टेज बिजली शहर के औद्योगिक क्षेत्र को प्रदान की जाती थी। यह समय बिजली व्यवस्था के संस्थागत विकास का प्रारंभिक दौर था। इसी काल खंड में भोपाल में शहरी और औद्योगिक विस्तार के नजरिये से बिजली का इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने की बड़ी प्लानिंग हुई।
राजधानी बनने के बाद बढ़ाई गई बिजली क्षमता
एक नवंबर को मध्यप्रदेश का गठन और भोपाल के राजधानी
बनने के बाद बिजली उत्पादन में निरंतर बढ़ोतरी हुई। 1957–58 में स्थापित क्षमता बढ़कर 6100 किलोवाट हो गई और उपभोक्ता लगभग 9000 तक पहुंच गए। बढ़ती मांग और बीएचईएल के आने पर चंबल हाइडल, गांधी सागर, अमरकंटक और सतपुड़ा थर्मल विद्युत केंद्रों से बिजली लेने का निर्णय लिया गया। कालांतर में भोपाल विद्युत केंद्र की क्षमता 7500 किलोवाट तक बढ़ी और 1967 में इसे उत्पादन केंद्र से बदलकर वितरण केंद्र बना दिया गया।
आज का भोपाल: भरपूर और स्थिर बिजली वाला शहर
जहां कभी रोशनी की व्यवस्था के लिए लालटेन और केरोसिन लैंप पोस्टों पर निर्भर रहना पड़ता था, आज वही भोपाल 24×7 बिजली सप्लाई वाला आधुनिक शहर है।  घरेलू उपभोक्ता से लेकर बड़े उद्योगों तक सभी को सुचारू बिजली उपलब्ध है।  भोपाल में बिजली की ट्रांसफार्मेशन कैपेसिटी में भी इजाफा हो गया। बिजली कंपनी के अधिकारियों के मुताबिक भोपाल में आम दिनों में रोज बिजली की डिमांड 375 से 400 मेगावॉट तक रहती है। गर्मी के सीजन में अप्रैल से जून में यह बढ़कर 550 मेगावॉट तक पहुंच जाती है।एक सदी का यह सफर न केवल तकनीकी प्रगति की कहानी है, बल्कि शहर की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक यात्रा का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है।

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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