Bhopal : दुष्यंत कुमार के 50 वें पुण्यतिथि वर्ष पर कविता पाठ..
दुष्यन्त की कविता की विशेषता है व्याख्या सापेक्ष होना: राजेश जोशी

भोपाल। दुष्यन्त कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय के राज सदन में दुष्यंत कुमार के 50 वें पुण्यतिथि वर्ष के अवसर पर मासिक आयोजन के तहत दुष्यंत की कविताओं का पाठ युवा रचनाकारों, कलाकारों ने किया। रचना पाठ के पश्चात दुष्यंत के समकालीन राजेश जोशी एवं बलराम गुमास्ता ने दुष्यन्त के कवि कर्म पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर राजेश जोशी ने कहा बहुत पहले कवि नामक एक पत्रिका निकलती थी जिसमें एक कवि और उस पर एक साहित्यकार की टिप्पणियां प्रकाशित की जाती थी ।इसी पत्रिका में दुष्यंत की कविताएं छपी थी जिस पर केदारनाथ सिंह जी की टिप्पणी प्रकाशित हुई थी। इस टिप्पणी में केदारनाथ जी ने कहा था कि दुष्यंत की कविताएं सबसे कम व्याख्या की मांग करती है ।उनकी कविताएं इतनी सीधी सरल, सहज होती है कि उन्हें किसी तरह की व्याख्या की आवश्यकता नहीं होती है ।दूसरा उनके कथ्य में उनका अपनापन अधिक मुखर होता है । कवि की प्रतिबद्धताएं क्या है यह भी उनकी कविताओं से परिलक्षित होता है। दुष्यंत की कविताएं दूसरे सप्तक के बाद की कविताएं हैं और वे कलात्मक उपलब्धि के साथ सामने आती है ।
दुष्यन्त की कविताएं अंतत: मानवीय बैचेनी तक पहुंचती है: बलराम गुमास्ता
इस अवसर पर बलराम गुमास्ता ने कहा कि दुष्यंत की कविताएं मानवीय बेचैनी का एक रूप है और उनकी सारी समस्याएं और बेचैनी कविता के रूप में सामने आती हैं ।दुष्यंत की कविताएं छायावाद के बाद की कविताएं हैं और उनकी कविताओं में सहजता का राग है ।ये कविताएं भावुकता प्रधान है और जीवन के अनुभव से उपजी हैं ।
युवा रचनाकारों ने पढ़ी कविताएं
इस अवसर पर युवा रचनाकारों में ईशान सक्सेना ने मेरी कुंठा और एक आशीर्वाद, शिवाजी राय ने प्रेम गीत, शांतनु सिंह ने समय और सत्य बतलाना, मुदित श्रीवास्तव ने इस मोड़ से तुम मुड़ गई फिर राह सूनी हो गई और फिर आऊंगा, अंशिका कसाना ने प्रेरणा के नाम और विदा के बाद प्रतीक्षा, मंशा मिश्रा ने गीत का जन्म और आवाजों के घेरे, वैशाली थापा ने ईश्वर को सूली और कैद परिंदे का बयान, राहुल शर्मा ने गौतम बुद्ध से और खुशी वर्नबाल ने ऐसा क्यों और आग चलती रहे कविताओं का पाठ किया । इस अवसर पर संग्रहालय के संयुक्त सचिव सुरेश पटवा ने बीज वक्तव्य दिया। कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन संग्रहालय की सचिव करुणा राजुरकर ने दिया एवं संचालन विशाखा राजुरकर ने किया।
