भारत सरकार एथनॉल के आयात पर लगे प्रतिबंध को हटाने पर विचार कर रही है। इस संभावित नीतिगत बदलाव के पीछे मुख्य कारण संयुक्त राज्य अमेरिका का बढ़ता हुआ दबाव बताया जा रहा है। यह घटनाक्रम भारत की घरेलू एथनॉल उत्पादन नीति और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधों के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ रखता है।
भारत ने मुख्य रूप से घरेलू एथनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने और आत्मनिर्भरता हासिल करने के उद्देश्य से एथनॉल के आयात पर प्रतिबंध लगा रखा है। सरकार का जोर गन्ने और अन्य कृषि उत्पादों से एथनॉल उत्पादन को प्रोत्साहित करने पर रहा है, जिसका उपयोग पेट्रोल के साथ मिश्रण करके जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम किया जा सके। यह नीति किसानों के लिए आय का एक अतिरिक्त स्रोत भी प्रदान करती है।
अमेरिका का बढ़ता दबाव:
हाल के महीनों में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत सरकार पर एथनॉल आयात पर लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए दबाव बढ़ा दिया है। अमेरिका दुनिया के सबसे बड़े एथनॉल उत्पादकों में से एक है और वह भारत को एक बड़े बाजार के रूप में देखता है। अमेरिकी अधिकारियों ने विभिन्न द्विपक्षीय वार्ताओं और व्यापारिक मंचों पर इस मुद्दे को उठाया है, तर्क देते हुए कि भारत का प्रतिबंध मुक्त व्यापार सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है और अमेरिकी निर्यात के लिए बाधा उत्पन्न करता है।
संभावित नीतिगत बदलाव के कारण:
हालांकि भारत सरकार ने अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, निम्नलिखित कारणों से प्रतिबंध हटाने पर विचार किया जा रहा है:
अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक दबाव: अमेरिका जैसे महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार के लगातार दबाव को नजरअंदाज करना भारत के लिए दीर्घकालिक व्यापारिक संबंधों को प्रभावित कर सकता है।
विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियम: कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का एथनॉल आयात प्रतिबंध WTO के नियमों के तहत चुनौती दी जा सकती है।
घरेलू उत्पादन की सीमाएं: भारत में एथनॉल का घरेलू उत्पादन अभी भी मांग को पूरी तरह से पूरा करने में सक्षम नहीं है, खासकर जब सरकार ने पेट्रोल में एथनॉल मिश्रण के लक्ष्य को बढ़ाने पर जोर दिया है।
भू-राजनीतिक कारक: कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका के साथ समग्र रणनीतिक संबंधों को बनाए रखने के लिए भारत कुछ व्यापारिक रियायतें दे सकता है।
संभावित प्रभाव:
यदि भारत सरकार एथनॉल आयात पर प्रतिबंध हटाती है, तो इसके कई संभावित प्रभाव हो सकते हैं:
अमेरिकी एथनॉल के लिए बाजार: अमेरिकी एथनॉल उत्पादकों के लिए भारत एक नया और बड़ा बाजार खुल जाएगा, जिससे उनके निर्यात में वृद्धि हो सकती है।
घरेलू एथनॉल उद्योग पर प्रभाव: भारतीय एथनॉल उत्पादकों को अमेरिकी प्रतिस्पर्धियों से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उनकी लाभप्रदता प्रभावित हो सकती है।
किसानों पर असर: गन्ने और अन्य एथनॉल उत्पादक फसलों की मांग और कीमतों पर असर पड़ सकता है, जिससे किसानों की आय प्रभावित हो सकती है।
पेट्रोल की कीमतें: एथनॉल के आयात से पेट्रोल के साथ मिश्रण की लागत कम हो सकती है, जिससे उपभोक्ताओं के लिए पेट्रोल की कीमतें कुछ हद तक कम हो सकती हैं।
पर्यावरण: एथनॉल को एक हरित ईंधन माना जाता है, इसलिए आयात से देश में एथनॉल की उपलब्धता बढ़ने से पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
आगे की राह:
भारत अमेरिका के एथनॉल आयात पर प्रतिबंध हटाने के अनुरोध की समीक्षा कर रह है। भारत दंडात्मक शुल्कों से बचने के लिए अमेरिका से व्यापक व्यापार समझौते पर विचार कर रहा है।
अभी भारत ईंधन के लिए एथनॉल के आयात की अनुमति नहीं देता है और इसके गैर ईंधन उपयोग के आयात पर भारी भरकम शुल्क लगाता है।अमेरिका बीते कई सप्ताहों से एथनॉल के आयात को खोलने के लिए लॉबिंग कर रहा है। हालांकि इस अनुरोध पर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए अन्यथा घरेलू स्तर पर एथनॉल उत्पादन में सभी निवेश सवालों के घेरे में आ जाएंगे।
रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी वार्ताकार दक्षिण एशिया के इस देश से गैसोलीन में जैवईंधन के आयात की अनुमति चाहते हैं। यह अनुमति घरेलू आपूर्ति को बढ़ावा देने और गैर ईंधन के लिए विदेश से एथनॉल खरीद को बढ़ावा देने के लिए हालिया नियमों में बदलाव होगा। अमेरिका से एथनॉल आयात खोलने की लॉबिंग उस दौर में हो रही है, जब लगातार दूसरे वर्ष अनाज की तुलना में गन्ने से एथनॉल उत्पादन में गिरावट आई है। एथनॉल आपूर्ति वर्ष 24-25 (नवंबर से अक्टूबर) मार्च तक तेल विपणन कंपनियां ने 9.96 अरब लीटर एथनॉल आपूर्ति आबंटित की है। इसमें से 66 प्रतिशत एथनॉल की आपूर्ति अनाज से होगी जबकि शेष गन्ने से होगी। कुछ महीनों पहले तक इन दोनों ही खाद्य उत्पादों से बराबर मात्रा में एथनॉल की मात्रा की आपूर्ति होती थी।
भारत सरकार को एथनॉल आयात पर कोई भी निर्णय लेने से पहले घरेलू उद्योग, किसानों और अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक हितों को ध्यान में रखते हुए सावधानीपूर्वक विचार करना होगा। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार अमेरिका के दबाव और घरेलू हितों के बीच किस प्रकार संतुलन बनाती है। आने वाले हफ्तों और महीनों में इस मुद्दे पर और अधिक स्पष्टता आने की उम्मीद है। यह संभावित नीतिगत बदलाव भारत की ऊर्जा सुरक्षा और कृषि अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।