MP : करोड़ों का बारदाना खा गए अफसर, 8 साल तक चला घोटाला, जांच के घेरे में सहकारिता विभाग 143 प्रशासक और निरीक्षक

भोपाल। मध्य प्रदेश की सहकारी संस्थाओं में भ्रष्टाचार किस कदर फैला हुआ है, इसका उदाहरण ग्वालियर में सामने आया है। यहां जिला सहकारी केंद्रीय बैंक (DCCB) और प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों (PACS) के अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से 6 करोड़ रुपए से अधिक के ‘बारदाना’ (जूट और प्लास्टिक की बोरियां) घोटाले को अंजाम दिया गया।

यह घोटाला 2016 से 2023 तक, यानी भाजपा की शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस की कमलनाथ, दोनों सरकारों के कार्यकाल में बेरोकटोक चलता रहा। इस संगठित लूट में 29 प्रशासक-समिति प्रबंधक और 143 सोसायटियों के इंस्पेक्टर सीधे तौर पर शामिल थे। सालों तक ठंडे बस्ते में पड़ी शिकायतों के बाद अब इस घोटाले की फाइल एक बार फिर खुली है।

सहकारिता विभाग ने उच्चस्तरीय जांच कमेटी का गठन किया है, जो पिछले तीन महीने से इस घोटाले की कड़ियां जोड़ने में जुटी है। सहकारिता विभाग की प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि यह घोटाला सुनियोजित तरीके से तीन अलग-अलग स्तरों पर किया गया…

PDS बारदाने की सीधी बिक्री, 2.62 करोड़ रुपए की हेराफेरी
ग्वालियर की 72 सहकारी समितियों से जुड़े 72 कर्मचारियों और 10 प्रशासकों पर आरोप है कि उन्होंने PDS दुकानों से लौटी बोरियों को बेचा और उससे मिली 2.62 करोड़ रुपए की राशि को समिति के खाते में जमा करने के बजाय उसका निजी तौर पर इस्तेमाल किया। यह हेराफेरी सीधे तौर पर सेल्समैनों और समिति प्रबंधकों की मिलीभगत से हुई।

नागरिक आपूर्ति निगम को नहीं लौटाया बारदाना, 2.89 करोड़ खा गए
44 अन्य सहकारी समितियों ने एक कदम आगे बढ़कर नागरिक आपूर्ति निगम द्वारा PDS के लिए भेजी गई बोरियों को लौटाया ही नहीं। पिछले 5 साल में इन समितियों ने 2.89 करोड़ रुपए मूल्य की बोरियां खुले बाजार में बेच दीं और निगम को कागजों पर हिसाब-किताब में उलझाकर गुमराह करते रहे।

फसल खरीदी की बोरियों की हेराफेरी, 89.39 लाख जेब में
27 सहकारी समितियों ने गेहूं, धान और सरसों जैसी फसलों की सरकारी खरीदी के लिए मार्कफेड और अन्य एजेंसियों से मिली बोरियों में गड़बड़ी की। 6 साल की अवधि में इन समितियों ने 89.39 लाख रुपए की बोरियां वापस नहीं कीं और उन्हें बेचकर रकम अपनी जेब में डाल ली।

पहले क्यों दबी रही घोटाले की फाइल?
सूत्रों के अनुसार, इस घोटाले की शिकायतें स्थानीय स्तर पर कलेक्टर और सहकारिता विभाग के अधिकारियों से लगातार की जा रही थीं, लेकिन हर बार इन्हें नजरअंदाज कर दिया गया। सहकारी बैंकों की शीर्ष संस्था अपेक्स बैंक प्रशासन से भी शिकायत की गई, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

मामले में हरकत तब शुरू हुई, जब इसी साल मार्च में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने वन विभाग के अपर मुख्य सचिव अशोक बर्णवाल को सहकारिता विभाग का अतिरिक्त प्रभार सौंपा। बर्णवाल जब ग्वालियर के दौरे पर गए, तो उनसे पूर्व मंत्री और ग्वालियर को-ऑपरेटिव बैंक के पूर्व अध्यक्ष भगवान सिंह यादव ने मुलाकात की। यादव ने उन्हें लिखित में दस्तावेजों के साथ इस घोटाले की जानकारी दी।

मुख्य सचिव के हस्तक्षेप के बाद जांच ने पकड़ी रफ्तार
मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि निलंबन की कार्रवाई के बावजूद जांच की गति धीमी थी। इसके बाद इस घोटाले की शिकायत सीधे मुख्य सचिव अनुराग जैन को भेजी गई। मुख्य सचिव ने मामले की गंभीरता को समझते हुए इसे तत्काल संज्ञान में लिया।
इसके बाद सहकारिता विभाग के अपर मुख्य सचिव अशोक बर्णवाल ने मई 2025 में इस शिकायत को टीएल (समय-सीमा) सूची में डाल दिया, जिसका अर्थ था कि अब इस पर निश्चित समय के भीतर कार्रवाई करनी होगी। यहीं से जांच ने असली रफ्तार पकड़ी। अब पिछले तीन महीनों से रिकॉर्ड खंगाले जा रहे हैं।

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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