MP : छतरपुर PWD-भवन बेचने के मामले में SDO समेत 3 निलंबित, नगरपालिका को नोटिस भेजा

छतरपुर। छतरपुर के चर्चित लोक निर्माण विभाग की जमीन बेचने के मामले में विभाग के चीफ इंजीनियर सागर संभाग ने छतरपुर में पदस्थ 3 अधिकारियों- कर्मचारियों को लापरवाही का दोषी पाते हुए सस्पेंड कर दिया है। इसमें प्रभारी एसडीओ कमलेश मिश्रा, सहायक ग्रेड-3 विजय कुमार खरे और कर्मचारी राजाराम कुशवाहा शामिल हैं।
एडीएम मिलिंद नागदेवे ने बताया कि इसी मामले में नियमों का पालन न करने और रजिस्टर में ओवरराइटिंग पाए जाने पर जिला प्रशासन ने नगर पालिका को भी नोटिस जारी किया है।
अफसरों की लापरवाही से विभाग की जमीन बिकी
यह मामला हाईकोर्ट के प्रकरण एफ.ए./06/2005 से जुड़ा है। कोर्ट ने 4 अक्टूबर 2024 को आदेश दिया था। इन अधिकारियों ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। उनकी लापरवाही से विभाग की कीमती जमीन बिक गई। इसी वजह से विभाग ने इसे गंभीर गलती मानते हुए कार्रवाई की है। निलंबन के बाद कमलेश मिश्रा का मुख्यालय पन्ना पीडब्ल्यूडी कार्यालय और विजय कुमार खरे का मुख्यालय नौगांव कार्यालय है। दोनों को नियमों के अनुसार जीवन निर्वाह भत्ता मिलेगा।
वहीं, कर्मचारी राजाराम कुशवाहा ने भी कोर्ट के आदेश के बाद आगे की कार्रवाई का प्रस्ताव वरिष्ठ अधिकारियों को नहीं भेजा था। इस कारण उनके खिलाफ भी विभागीय जांच के आदेश दिए गए हैं।
अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रस्ताव भोपाल भेजा
सागर संभाग के चीफ इंजीनियर ने इस मामले में तत्कालीन प्रभारी कार्यपालन यंत्री (इंचार्ज एग्जीक्यूटिव इंजीनियर) आरएस शुक्ला (31 अगस्त 2025 को रिटायर हुए) और कमलेश मिश्रा के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रस्ताव चीफ इंजीनियर भोपाल को भेजा है।
ये है पूरा मामला…
कोतवाली थाना के पास स्थित लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) की करोड़ों की सरकारी जमीन निजी लोगों के नाम पर रजिस्ट्री होने का मामला सामने आया। यह संपत्ति शक्ति मेडिकल स्टोर के पास हाउस ऑफ दफ्तरी वाला नाम से दर्ज है। करीब 4000 वर्ग फीट क्षेत्र की इस जमीन की कीमत लगभग 9 करोड़ रुपये बताई जा रही है।
यह रजिस्ट्री धीरेंद्र गौर और दुर्गेश पटेल के नाम 13 जून 2024 को 84 लाख 54 हजार रुपये में की गई। बताया जा रहा है कि यह काम फर्जी दस्तावेजों और गलत कोर्ट डिक्री के आधार पर हुआ। धीरेंद्र गौर, बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री के दिल्ली से वृंदावन यात्रा प्रभारी बताए जा रहे हैं।मामला सामने आने पर कलेक्टर पार्थ जैसवाल ने पीडब्ल्यूडी के कार्यपालन यंत्री आशीष भारती को जांच सौंपी और रजिस्ट्री लेखक रघुनंदन पाठक का लाइसेंस निलंबित कर दिया।
50 साल पुराना विवाद जमीन का विवाद 1974 से चल रहा है। पहले यह भवन राजशाही संपत्ति थी, जिसे बाद में पीडब्ल्यूडी के अधीन किया गया। लेकिन कुछ लोगों ने फर्जी कागजात बनाकर निजी स्वामित्व का दावा किया। 2004 में कोर्ट ने विभाग के पक्ष में फैसला दिया था, पर 2005 में हाईकोर्ट से स्टे मिल गया। फिर नवंबर 2024 में कथित तौर पर गलत डिक्री निकलवाकर जून 2025 में रजिस्ट्री कर दी गई।