उमा भारती के तरकश में कितने तीर? अब किसकी मुश्किल बढ़ाएंगी साध्वी?

भोपाल : उमा भारती करीब बीस साल बाद फिर उसी बेबाकी से सुनाई दी हैं, आर पार के उन्हीं तेवरों में जो दो दशक से ठंडे पड़े हुए थे. निशाने पर कौन आया और व्यापम का जिन्न उमा ने क्यों जगाया? उसके आगे सवाल ये कि अब उमा भारती के अचानक हुए इस बेबाक अंदाज़ का सबब क्या है? राजनीति से किनारे कर दी गई साध्वी के ये तेवर क्या अब ऐसे ही बने रहेंगे?

2006 के बाद से लगातार एक सुर आवाज में चल रही बीजेपी सरकार और संगठन के शांत सरोवर में उमा के बयान क्या हलचल मचाएंगे. क्या ये आरोप दिल्ली में गौर देकर सुने जाएंगे? चुनाव के चार साल पहले उमा का ये दांव किसी रणनीति के तहत है या जज्बाती उमा फिर जज्बात में मन की बात मीडिया से कह गईं, इसे लेकर ऐसे तमाम कयास लगाए जा रहे हैं.

दो दशक बाद फिर बदले उमा भारती के तेवर

गौर करें तो बीते दो दशक में उमा भारती की राजनीति का अंदाज बदल गया था. चूंकि फायर ब्रांड हैं, तो साल में दो चार के औसत से विवादित या बेबाक बयान सुनाई पड़ भी जाएं, लेकिन उमा भारती ने उन तेवरों से किनारा कर लिया था, जिनके लिए वे पहचानी जाती रही हैं. छिटपुट बयानों को छोड़ दीजिए तो पूरे बीस साल बाद उमा उन्हीं तेवरों में वापसी करती दिखाई दे रही हैं. 2005 में जिस तरह अपने साथ हुई नाइंसाफी के खिलाफ वे बोलीं थी, अपने परिवार को मिली प्रताड़ना के साथ उन्होंने दो सरकारों के कार्यकाल का जिक्र किया जिसमें उनकी ही पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यंत्री शिवराज सिंह चौहान का कार्यकाल भी था.

क्या हैं उम भारती के बदल अंदाज के मायने?

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भटनागर कहते हैं, ” उमा भारती हमेशा से ही अनप्रडिक्टेबल रही हैं. लेकिन बीते लंबे समय से कुछ बयानों को छोड़ दें तो उन्होने अपने मूल स्वभाव से किनारा कर लिया था. पार्टी में फिलहाल उनकी भूमिका आर्शीवाद देने वाले नेताओं तक सीमित रह गई जबकि तजुर्बे, लोकप्रियता और एज क्राइटेरिया से देखा जाए तो उमा भारती अब भी बीजेपी की एक प्रोमिसिंग लीडर हैं. क्या ये बयान इस बात का संकेत हैं कि उमा बता रही हैं कि वे भी हैं? क्या उमा अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही हैं या राष्ट्रीय चुनाव के दरमियान उनके बयान कोई सियासी दांव हैं? क्या शिवराज सिंह चौहान से उनकी पुरानी सियासी रंजिश अब फिर सतह पर आ रही है? सवाल ये है कि अगर मूल स्वभाव में लौट रही हैं उमा तो इन बेबाक बयानों के साथ मध्यप्रदेश से लेकर दिल्ली तक पार्टी में कहां कितनी मुश्किल बढ़ाएंगी?”

उमा के वो बयान जो बवाल करते रहे

उमा भारती कितनी ही अपने स्वभाव के विपरीत जाएं लेकिन उनके बयानों में बेबाकी आ ही जाती है. वे एक ना एक ऐसा बयान दे देती हैं जो ये बता देता है कि इसलिए वे फायर ब्रांड कहीं जाती हैं. उमा भारती ने बीते वर्षों में जो विवादित बयान दिए उसमें उन्होंने भगवान राम और हनुमान को लेकर कह दिया था कि वे बीजेपी के कार्यकर्ता नहीं है.

इसी तरह से उनका एक वीडियो भी वायरल हुआ था, जिसमें वे लोधी समुदाय को ये कहती हुई सुनाई पड़ी थीं कि ये जिसे चाहें वोट दें स्वतंत्र हैं. मैंने कभी नहीं कहा कि केवल बीजेपी को वोट दें. फिर इस बात को उन्होंने बड़ी बेबाकी से अपने मन की बात जैसे मीडिया में कह दी. खुलकर कहा कि कैसे वे अपनी ही पार्टी की सरकार में प्रताड़ित हुईं, कैसे उनके परिवार को इस प्रताड़ना का हिस्सा बनना पड़ा. नाम नहीं लिया लेकिन निश्चित कार्यकाल का हवाला देकर उन्होंने अपने सबसे बड़े राजनीतिक विरोधी भी निशाने पर ले लिए.

मध्यप्रदेश उमा भारती का हरा ज़ख्म है

2003 में मध्यप्रदेश में बीजेपी उमा भारती के चेहरे पर ही सत्ता में आई थी. लेकिन जिसकी उमा भारती हकदार थीं, वो उन्हें बहुत लंबे समय तक नहीं मिल पाया. कर्नाटक के हुबली में हुए एक मामले में गैर जमानती वारंट होने से पूरी कहानी पलट गई और उमा को कुर्सी छोड़नी पड़ी. इस यकीन पर कि वापिस आकर कुर्सी संभालेंगी. बाबूलाल गौर इस कुर्सी पर बैठे लेकिन जब उमा वापिस आईं तब तक कहानी पूरी तरह पलट चुकी थी. तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के खिलाफ भी पार्टी में नाराजगी बढ़ी लेकिन उन्हें पद से हटाने के बाद मौका शिवराज सिंह चौहान को दिया गया.

उमा भारती समर्थक विधायकों ने इसके बाद बगावत कर दी. एक दर्जन से ज्यादा विधायकों को नोटिस जारी हुए. उमा भारती को भी पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते पार्टी से बाहर किया गया.

राम रोटी यात्रा से लेकर जनशक्ति पार्टी के गठन तक उमा ने हार नही मानी. फिर बीजेपी में वापिसी भी की और केन्द्रीय मंत्री के पद तक भी गईं. और शांत रहकर अपनी बारी का सब्र के साथ इंतजार भी किया. लेकिन अब उमा के बयानों छटपटाहट नजर आ रही है. हाल ही में मीडिया से मुखातिब उमा भारती ने एक शेर के जरिए अपनी बयानी की थी और कहा था, ” एहसास दिला दो कि मैं जिंदा हूं अभी”

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