Editorial
हरियाली लीलती परियोजनाएं.. फर्जी प्रतिपूर्ति…

संजय सक्सेना
शहरीकरण ने सीधे-सीधे जंगलों को बर्बाद किया है, इसमें कोई दो मत नहीं है, लेकिन जिस तरह से हरियाली के नाम पर फर्जीवाड़ा हो रहा है, वह ज्यादा खतरनाक है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल भी इससे अछूूता नहीं है। यहां की हरियाली तमाम परियोजनाओं की भेंट चढ़ाई जा रही है और कागजों पर प्रतिपूर्ति के नाम पर करोड़ों का भ्रष्टाचार किया जा रहा है। शहर में एलर्जी और श्वास संबंधी बीमारियों का बढ़ता आंकड़ा इसकी गवाही दे रहा है।
आज ही खबर पढ़ी कि भोपाल में पिछले एक दशक में जिस गति से कंक्रीट का जंगल बढ़ा है, उसी अनुपात में प्राकृतिक जंगल सिमटा है। भोपाल का टीटी नगर हो या अयोध्या बायपास, और अब बैरसिया रोड, ये कोई नए मामले नहीं हैं, यह एक खतरनाक पैटर्न का हिस्सा है। पर्यावरण विशेषज्ञों और ग्लोबल अर्थ सोसाइटी यानि जीएसईईडी की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भोपाल जिले में 2014-2024 के बीच 10 सालों के दौरान विभिन्न विकास परियोजनाओं के नाम पर लगभग 5 लाख पेड़ काटे गए हैं। इनमें बीआरटीएस, मेट्रो, स्मार्ट सिटी, कोलार सिक्स लेन और रेलवे प्रोजेक्ट शामिल हैं।
एक शोध के अनुसार, भोपाल ने पिछले 10 सालों में अपनी 26 प्रतिशत हरियाली खो दी है। 2009 में जहां हरित क्षेत्र 35 प्रतिशत था, वह 2019 तक गिरकर महज 9 प्रतिशत रह गया था। वहीं प्रशासन का दावा है कि काटे गए पेड़ों के बदले कंपेंसेटरी अफोरेस्टेशन यानि प्रतिपूरक वनीकरण के अंतर्गत लाखों पौधे लगाए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि इनमें से 70 प्रतिशत तक पौधे देखरेख के अभाव में मर जाते हैं।
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में पेड़ कटाई को लेकर हल्ला मचने पर साल 2017-18 में 125 पेड़ वाल्मी पहाड़ी पर शिफ्ट किए गए। कुछ ही दिनों में यह पेड़ ऐसे ठूंठ बन कर रह गए और अब सुरक्षा दीवार बना दिए जाने के कारण यहां पहुंचना असंभव हो गया है। इनमें से एक भी पेड़ जीवित नहीं बचा। जबकि इस परियोजना में हजारों पुराने और हरे-भरे पेड़ काटे गए थे। प्रशासन ने तो इनकी सही संख्या तक नहीं बताई।
कहां एक वयस्क पेड़ को काटने के बदले 10 पौधे लगाने का नियम बताया जाता है, लेकिन भोपाल की बात करें तो यहां एक के बदले दो पौधे भी नहीं लगाए जाते। और उनमें भी वृक्ष के पौधे नहीं होते। या तो झाड़ होते हैं, या फिर ऐसे पौधे जो दिखते हरे हैं, लेकिन जमीन को भी बंजर कर देते हैं और पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद नहीं होते। हाल में स्मार्ट सिटी में लगाए गए एक प्रजाति के पौधे पर सवाल उठाए गए थे। ये पौधे दुनिया भर में प्रतिबंधित हो रहे हैं, यहां भोपाल में लगा दिए गए।
भोपाल में विभिन्न परियोजनाओं के बदले 20 लाख पौधे लगाए जाने की जो बात कही जा रही है, पर उनकी सर्वाइवल रिपोर्ट यानि जीवित रहने की कोई रिपोर्ट प्रशासन के पास नहीं है।
हालांकि अभी अयोध्या बायपास 10 लेन प्रोजेक्ट में 7851 पेड़ों की कटाई का विरोध तेज होने पर एनजीटी ने उनकी कटाई पर रोक लगा दी है, लेकिन बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी। आज नहीं तो कल, इन पेड़ों की बलि ले ली जाएगी। भोपाल के दर्जनों इलाकों में गुपचुप पेड़ काट दिए जाते हैं और फिर उनकी शिकायतों को भी दबा दिया जाता है। शहर का प्रोफेसर कॉलेनी रीडेंसिफिकेशन प्रोजेक्ट भी विरोध के कारण रुका है। तुलसी नगर-शिवाजी नगर की 29000 पेड़ों की हरियाली दो बार बची। 2016 में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट टीटी नगर शिफ्ट हुआ। 2024 का रीडेंसिफिकेशन प्रोजेक्ट भी निरस्त हो गया। 2019 में विधायक विश्रामगृह प्रोजेक्ट के तहत 5600 पेड़ कटना थे, जिसमें 1000 पेड़ काटने के बाद प्रोजेक्ट वापस ले लिया गया। पर इनके बदले कहीं पौधे तक नहीं लगाए गए।
अब नई खबर आ रही है कि बैरसिया रोड की ग्राम पंचायत ईटखेड़ी के ग्राम में भी पेड़ों को उजाडऩे की तैयारी शुरू हो गई है। भोपाल से करीब 15 किमी दूर स्थित लगभग 17 एकड़ सरकारी भूमि पर खनन की अनुमति दे दी गई है, जबकि यहां 6 हजार से अधिक पेड़ हैं। प्रशासनिक रिपोर्ट में दर्ज है कि सागौन, नीम और शीशम के पेड़ लगे हैं। इसके बावजूद इन तथ्यों को नजरअंदाज कर अनुमति जारी कर दी गई। खास यह है कि इस भूमि पर खनन की अनुमति पहले कई बार निरस्त की जा चुकी थी।
्रयहां दुखद पहलू यह है कि भोपाल की पहचान झीलों और पहाडिय़ों के साथ भरपूर हरियाली से होती आई है। पहाडिय़ों पर या तो सरकारी इमारतें तान दी गईं, या लोगों ने कब्जे करके भवन बना लिए। आज सब वैध हो गए। पहाडिय़ों की सुंदरता को तो खा ही गए, अब जंगलों की कटाई चल रही है। शहर में एक और साजिश होती है। जहां पेड़ काटने की अनुमति नहीं मिलती, वहां पेड़ों की जड़ों में कुछ ऐसे पदार्थ डाल दिए जाते हैं, जिससे पेड़ सूखने लगता है। कई जगह तो एक तरफ खोद कर पेड़ को झुकाया जाता है, धीरे-धीरे उसे कटवा दिया जाता है।
हाल ही में आई कई रिपोर्ट इस घटती हरियाली, बढ़ते कंक्रीट के जंगल और वाहनों के धुंए से होने वाले प्रदूषण और धूल के कारण एलर्जी, अस्थमा और तमाम श्वास रोगों में तेज गति से वृद्धि को प्रमाणित कर रही हैं। लेकिन हम सुधरने को तैयार नहीं। शहर के नागरिकों की जागरूकता अभी बहुत कम है, सरकारों से बहुत उम्मीद नहीं की जा सकती।

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