Dhankhad एक नहीं दो महाभियोग नोटिस स्वीकार करने वाले थे! विपक्ष का दावा, एक से शाम पांच बजे तक कैसे बदली स्थिति…?

जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से अचानक इस्तीफे के बाद राजनीतिक विवाद छिड़ गया है. विपक्ष इस कदम को बिजनेस एडवाइजरी कमिटी (BAC) की महत्वपूर्ण बैठक में प्रमुख मंत्रियों- जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू की अनुपस्थिति से जोड़ रहा है. लेकिन तात्कालिक कारण राज्यसभा में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने की नोटिस नजर आ रहा है।

बतौर सभापति धनखड़ ने उस प्रस्ताव को स्वीकार किया था जिसमें विपक्ष के 63 सदस्यों के हस्ताक्षर थे। सरकार के फ्लोर लीडर्स को इसकी जानकारी नहीं थी। इतना ही नहीं धनखड़ की कोशिश की थी कि महाभियोग का यह मामला पहले राज्यसभा में ही चले जो स्पष्ट तौर पर विपक्ष के खाते में जाता क्योंकि उनका प्रस्ताव ही स्वीकार किया गया था।
जस्टिस वर्मा ही रहे इस्तीफा देने की मुख्य वजह?
इसके बाद कुछ घटनाएं ऐसी घटीं जिससे धनखड़ शायद क्षुब्ध थे और उन्होंने इस्तीफे का फैसला ले लिया। और शाम छह बजे तक सरकार को अपने इस फैसले से अवगत भी करा दिया था तथा रात 9.25 पर इसे सार्वजनिक भी कर दिया। मंगलवार को भी दिनभर धनखड़ के इस्तीफे को लेकर अटकलें चलती रहीं। यह बात लगभग तय हो चुका है कि एक कारण जस्टिस वर्मा ही थे।
सरकार की ओर से पहले ही घोषणा की जा चुकी थी कि भ्रष्टाचार के आरोपी जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी है। सरकार की योजना थी कि इसे पहले लोकसभा से पारित किया जाए फिर राज्यसभा जाए।

धनखड़ ने वर्मा के खिलाफ महाभियोग का नोटिस मिलने का किया एलान
लोकसभा में महाभियोग के नोटिस में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और भाजपा के रविशंकर प्रसाद व अनुराग ठाकुर के साथ-साथ सत्तापक्ष और विपक्ष के 145 सांसदों के हस्ताक्षर से साफ है कि सरकार इस मुद्दे पर सर्वसम्मति बनाने में काफी हद तक सफल रही है। वहीं, राज्यसभा में लगभग 3.30 बजे धनखड़ ने 63 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ महाभियोग का नोटिस मिलने और इसकी प्रक्रिया शुरू करने का एलान कर दिया।

जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ भी महाभियोग..?

गौरतलब है कि धनखड़ जस्टिस वर्मा के मुद्दे पर काफी मुखर रहे हैं और वह चाहते थे कि यह मामला राज्यसभा से ही शुरू हो। हालांकि इसमें एक खतरा था।
दरअसल विपक्ष की ओर से राज्यसभा में ही 50 से ज्यादा विपक्षी सदस्यों ने जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ भी महाभियोग का नोटिस दिया हुआ है। ऐसे में वह मामला भी उठ सकता था।

जस्टिस यादव के मुद्दे पर सरकार घेरना चाहती थी’
जस्टिस यादव विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में जाकर जो प्रो हिंदुत्व बयान दिए थे उसके विरोध में विपक्ष ने पहले से ही महाभियोग का प्रस्ताव राज्यसभा में दिया हुआ है. जहां जस्टिस वर्मा के बहाने विपक्ष जस्टिस यादव के मुद्दे पर सरकार घेरना चाहती थी. राज्यसभा में विपक्षी दलों के नामी गिरामी वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी सरीखे सांसद जस्टिस यादव के खिलाफ मामला उठाना चाहते थे, जिससे केंद्र सरकार बचना चाहती थी.
खबर ये भी है कि धनखड़ बीजेपी नेतृत्व से कुछ समय से असंतुष्ट थे. सोमवार को उन्होंने राज्यसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक बुलाई, लेकिन न तो बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा पहुंचे, और न ही केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू. धनखड़ इससे खासे दुखी और नाराज बताए गए. हालांकि जेपी नड्डा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इसकी जानकारी उपराष्ट्रपति कार्यालय को दे दी गई थी.

कई टिप्पणियों को गैर-जरूरी और अति-आक्रामक माना गया
सूत्रों के मुताबिक बीते कुछ महीनों से उपराष्ट्रपति धनखड़ के रवैये से सरकार असहज थी. धनखड़ द्वारा जजों और न्यायपालिका पर की गई कई टिप्पणियों को गैर-जरूरी और अति-आक्रामक माना गया. विपक्ष के प्रति अचानक ‘नरमी’ और उनके सुझावों को महत्व देने का रुझान. सदन की कार्यवाही में चेयर की भूमिका निभाते हुए धनखड़ की अतिसक्रियता, बिना सलाह के फैसले लेना, ये सब सरकार को खटकने लगे थे.

सिर्फ संवैधानिक नहीं, राजनीतिक चुनौती भी है
धनखड़ ने ऐसे समय पर इस्तीफा दिया है, जब मानसून सत्र के दूसरे हफ्ते में सत्ता और विपक्ष के बीच टकराव बढ़ने की संभावना है. ऐसे में उपराष्ट्रपति का जाना सरकार के लिए सिर्फ संवैधानिक नहीं, राजनीतिक चुनौती भी है. धनखड़ का इस्तीफा सिर्फ व्यक्तिगत कारणों का नतीजा नहीं लगता. यह सत्ता के भीतर मतभेद, असहमति और असंतुलन की ओर भी इशारा करता है. अब सबकी निगाह इस पर है कि एनडीए अगला उपराष्ट्रपति किसे बनाता है. क्या वह एक भरोसेमंद पार्टी लाइन चेहरा होगा, या फिर कोई ऐसा व्यक्ति जो विपक्ष को भी साध सके?

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