प्रभारी सीएमओ के भरोसे शहर सरकारें, मप्र में स्थाई सीएमओ का टोटा

भोपाल । नगर विकास की जिम्मेदारी मुख्य नगरपालिका अधिकारी यानी सीएमओ पर रहती है। लेकिन विडंबना यह है कि मप्र में स्थाई सीएमओ का टोटा है। स्थाई सीएमओ नहीं होने से जहां प्रभारी मुख्य नगरपालिका अधिकारी कामकाज संभाल रहे हैं, वहीं कई जगह तो दागदारों को ही सीएमओ बनाने की मजबूरी है। हालांकि दागदारों को सीएमओ बनाने पर सवाल भी उठ रहे हैं, लेकिन सरकार के सामने ऐसा करने की मजबूरी भी है।
मप्र में नगर विकास की जिम्मेदारी संभालने के लिए मुख्य नगरपालिका अधिकारी का टोटा होने का असर यह देखने को मिल रहा है कि स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने अपने पसंद के नगर पालिका/नगर पंचायत कर्मियों को सीएमओ का चार्ज दिलवा रखा है। खासबात यह है कि राजनीतिक दवाब के चलते लिपिक, स्वास्थ्य व राजस्व निरीक्षक, अकाउंटेंट सहित तृतीय श्रेणी के कर्मचारी प्रभारी सीएमओ बने हुए हैं। इसका सीधा असर विकास कार्यों पर पड़ रहा है। ऐसी कई नगर पालिका और नगर परिषद हैं, जहां प्रभारी सीएमओ अध्यक्ष के प्रभार में फैसले लेते हैं। सीएमओ की इस कमी का राजनीतिक और प्रशासनिक पकड़ रखने वाले कर्मचारी खूब फायदा उठा रहे हैं। यानी कई निकायों में तो ऐसे कर्मचारियों को प्रभारी सीएमओ बना दिया गया है, जिनके ऊपर पूर्व में भी प्रभारी रहते हुए वित्तीय अनियमितता, पद के दुरुपयोग अथवा लापरवाही के आरोप लग चुके हैं।


दागियों को बना दिया प्रभारी सीएमओ
प्रदेश में 413 नगरीय निकायों में से सिर्फ 129 में स्थायी मुख्य नगर पालिका अधिकारी हैं। जबकि 173 निकायों में प्रभारी सीएमओ कुर्सी पर काबिज हैं। इनमें भी कई निकायों में तो ऐसे भी कर्मचारियों को प्रभारी बना दिया गया हैं, जिन पर भ्रष्टाचार के केस दर्ज हैं। बता दें कि प्रदेश में सीएमओ के कुल 458 पद हैं, जिसमें 187 सीधी भर्ती और 271 पदोन्नति के हैं। पिछले करीब 9 साल से पदोन्नति की कार्रवाई न होने से 70 प्रतिशत सीएमओ के पद रिक्त हो गए हैं। स्थाई सीएमओ के कारण दागियों को सीएमओ बनाया गया है। जैसे भिंड नपा में 3.40 करोड़ रु. के गबन में आरोपी को अब गोहद का प्रभार है। दरअसल, 2019 से जून 2022 तक प्रभारी रहे सुरेंद्र शर्मा के कार्यकाल में भवन संनिर्माण मंडल और संबल योजना में करीब 3.40 करोड़ रुपए का घोटाला सामने आया। अक्टूबर 2024 में वर्तमान सीएमओ यशवंत वर्मा की शिकायत पर उनके समेत छह लोगों पर एफआईआर दर्ज हुई। इसके बावजूद 6 फरवरी 2025 को शर्मा को फिर से गोहद नगरपालिका का प्रभारी सीएमओ बना दिया गया। वहीं भ्रष्टाचार के मामले में ईओडब्ल्यू के आरोपी पर अब दो निकायों का प्रभार है। दरअसल, 2020 से 2022 तक नगर परिषद कैलारस के स्टोर में हुई खरीदी की सामग्री के बिलों एवं भुगतान वाउचरों की जांच में 180 भुगतान वाउचर संदिग्ध पाए गए, जिससे एक करोड़ 41 लाख फर्जी भुगतान हुआ। इस मामले में ईओडब्ल्यू ने कैलारस के तत्कालीन पांच सीएमओ, दो लेखापाल, स्टोर कीपर समेत संतोष सिहारे को भी आरोपी बनाया है, जो अभी भिंड जिले की फूप और रौन नगर परिषद में सीएमओ का प्रभार संभाले हुए हैं। वहीं शिवपुरी नगर पालिका परिषद के राजस्व निरीक्षक सौरभ गौड़ काफी समय से नगर परिषद बदरवास के सीएमओ का प्रभार संभालेहुए हैं। शासन ने उनकी सेवा समाप्त की तो वे न्यायालय से चले गए। स्थगन आदेश ले आए। बदरवास के प्रभारी सीएमओ रहते हुए 2019 में गौड़ पर कॉलोनाइजर को लाभ पहुंचाने के आरोप लगे। मामला विधानसभा में उठा तो उनके विरुद्ध दो वेतनवृद्धी भी रोकने की कार्रवाई की गई। वहीं जिसे नरसिंहपुर में घपले के आरोप में हटाया, अब वह रामपुर बघेलान में सीएमओ हैं। दरअसल, सतना जिले की रामपुर बघेलान के प्रभारी सीएमओ अरुण श्रीवास्तव को हाल ही में ये जिम्मेदारी मिली है। 2022-23 में नरसिंहपुर जिले की चीचली नगर परिषद के प्रभारी सीएमओ थे। तब उन पर आरोप लगा कि उन्होंने बाजार मूल्य से अधिक दर पर ट्रेक्टर और हाइड्रोलिक ट्रॉली 11.95 लाख रुपए में खरीदी। जांच में साबित हुआ कि ट्रेक्टर और हाइड्रोलिक ट्रॉली की कीमत 8.41 लाख रुपए जीएसटी सहित थी। नगरीय विकास एवं आवास विभाग के आयुक्त  संकेत भौंडवे का कहना है कि सीएमओ की कमी है, इसलिए कई जगह चार्ज देकर किसी तरह से काम चला रहे हैं। यदि किसी पर प्रभारी रहते वित्तीय अनियमितता, पद के दुरुपयोग और लापरवाही जैसे आरोप लग चुके हैं, उन्हें फिर किसी दूसरी जगह प्रभार दिया गया है तो यह गलत है। परीक्षण कराकर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।  


बड़े प्रोजेक्ट पर पड़ रहा असर
राज्य सरकार ने वॉटर सप्लाई, सीवरेज, स्वच्छ भारत मिशन के साथ ही एक लाख की आबादी वाले निकायों के लिए अमृत योजना और हाउसिंग फॉर ऑल जैसे प्रोजेक्ट मंजूर किए हैं। ऐसे में निकायों में प्रभारी सीएमओ होने से इन प्रोजेक्ट्स की मॉनीटरिंग नहीं हो पा रही हैं। लेकिन स्थाई सीएमओ की पदस्थापना होने से विकास कार्यों तेजी से हो सकेंगे। तृतीय व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों पर कार्रवाई करने का अधिकार सीएमओ के पास होता है, जबकि स्वास्थ्य निरीक्षक, राजस्व निरीक्षक, मुख्य लिपिक, लेखापाल व उप यंत्री पर कार्रवाई करने का अधिकार संचालक को होता है। लेकिन स्थिति यह है कि कुछ नगर पालिकाओं व नगर पंचायतों में तो तृतीय श्रेणी कर्मचारी या दैनिक वेतन भोगी तक प्रभारी सीएमओ बनाए गए हैं। ऐसे कर्मचारियों को राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है। इसलिए संचालक, प्रभारी सीएमओ के खिलाफ कार्रवाई करने से बचते हैं।


2020 में यह दिया गया था निर्देश
गौरतलब है कि 2020 में नगरीय निकायों में क्लर्क और स्वच्छता निरीक्षकों को मुख्य नगर पालिका अधिकारी-सीएमओ नहीं बनाया जाएगा। यह निर्देश सरकार ने जारी कर दिए थे और इन पदों पर उसी संवर्ग के अधिकारी पदस्थ होंगे। इसी के चलते सरकार ने क्लर्क और स्वच्छता निरीक्षकों से 50 निकायों का प्रभार वापस ले लिया था। सीएमओ के पद पर उसी संवर्ग के अधिकारियों की नियुक्ति के आदेश दिए थे, लेकिन फिर दो साल बाद वापस प्रभारी सीएमओ के भरोसे नगरपरिषद चल रही है।

Exit mobile version