Bhopal : भोपाल के टिंबर मार्केट  में फिर लगी आग, 2160 टन लकड़ियों के बीच बारूद के ढेर

भोपाल. शनिवार सुबह भोपाल डेकोरेटर शोरूम, आरा मशीन में आग लगी। करीब 1 करोड़ रुपए का नुकसान सामने आया है। इससे पहले 9 नवंबर को भी आग लगी थी। तब भी इतना ही नुकसान सामने आया था। यानी, 48 दिन में करीब साढ़े 3 करोड़ रुपए की लकड़ी और मशीनें जल गईं। टिंबर मार्केट के पिछले हिस्से से रेलवे ट्रैक भी गुजरा है। आग की वजह से ट्रेनों को सावधानी से गुजारा गया।

शहर के टिंबर मार्केट में हजारों टन लकड़ियों के बीच थिनर और केमिकल रखा हुआ है, जो किसी ‘बारूद’ के ढेर जैसा है। एक्सपर्ट की माने तो थिनर या केमिकल इतना ज्वलनशील होता है कि पानी डालने के बाद भी नहीं बुझता। यही कारण है कि टिंबर मार्केट में 48 दिन में 2 बड़ी आग लगी। जिससे सबकुछ तबाह हो गया। बावजूद जिम्मेदारों ने कोई सीख नहीं ली। वे आरा मशीनों की शिफ्टिंग के लिए 48 कदम भी नहीं चलें।

टिंबर मार्केट में कुल 108 आरा मशीनें हैं। यदि एक आरा मशीन में औसत 20 टन लकड़ी भी है तो 2160 टन यानी, 2 लाख 16 हजार क्विंटल लकड़ी यहां रखी हुई है। गनीमत रही कि कुछ दिनों के अंतर में आरा मशीनों में आग लगी और ज्यादा फैली नहीं, वर्ना बड़ा हादसा हो जाए। यही पर रहवासी इलाका, पेट्रोल पंप, दुकानें और रेलवे ट्रैक भी गुजरा है। यहाँ बड़ी मात्रा में थिनर रखा होता है, जो बारूद के ढेर का काम करता है।

ढाई महीने में शिफ्ट करेंगे
टिंबर मार्केट में आग और आरा मशीनों की शिफ्टिंग को लेकर कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने कहा कि आरा मशीनों की शिफ्टिंग की कवायद चल रही है। अगले दो से ढाई महीने में आरा मशीनें शिफ्ट कर देंगे। इसे लेकर रिव्यू भी करेंगे।

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48 साल बाद शिफ्टिंग तय… पर डेवलपमेंट कछुआ चाल से
यह टिंबर मार्केट करीब 48 साल पुराना है। धीरे-धीरे इस मार्केट के आसपास रहवासी इलाके बस गए। आरा मशीनों में हर साल आग की बड़ी घटनाओं को देखते हुए मेट्रो के बहाने इन्हें करीब 30 किलोमीटर दूर परवलिया के छोटा रातीबड़ में शिफ्ट करने का प्रोजेक्ट बना।
इससे पहले आरा मशीनों को शिफ्ट करने के लिए करीब 50 बार प्रशासन स्तर पर चर्चाएं हो चुकी थीं। 8 लोकेशन देखी गईं। लंबी जद्दोजहद के बाद छोटा रातीबड़ में 18 एकड़ जमीन अलॉट की गई। यहां पर पानी, सड़क और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं देने के लिए मेट्रो कॉरपोरेशन ने साढ़े 5 करोड़ रुपए भी दे दिए। शुरुआती कुछ महीनों तक तो टेंडर की प्रक्रिया के बीच ही फाइल दौड़ती रही। जब काम की शुरुआत हुई तो वह कछुए की चाल जैसा चल रहा है। जब तक पूरी तरह से काम नहीं हो जाता, तब तक शहर के बीच में बड़ा खतरा बरकरार रहेगा।

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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