केजरीवाल से पहले BJP नेता ने शुरू की थी CM शपथ की नई परंपरा, जानिए पूरा सच

दिल्ली में बड़ी जीत हासिल करने के 11 दिन बाद भी भारतीय जनता पार्टी (BJP) अब तक अपने नए मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान नहीं कर सकी है, हालांकि शपथ ग्रहण को लेकर तैयारी जोरों से चल रही है. राजधानी के ऐतिहासिक रामलीला मैदान पर यह शपथ ग्रहण समारोह कल गुरुवार को होगा. इसी रामलीला मैदान पर अरविंद केजरीवाल भी मुख्यमंत्री पद की शपथ लिया करते थे. यहां चौथी बार शपथ ग्रहण का आयोजन होने जा रहा है.अमूमन मुख्यमंत्री पद का शपथ राज निवास में हुआ करता था. लेकिन अरविंद केजरीवाल ने दिसंबर 2013 में पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए राज निवास की जगह रामलीला मैदान का चयन किया. इसी मैदान पर आंदोलन कर उन्होंने कामयाबी का स्वाद चखा और राजनीतिक स्तर पर बड़ी पहचान दिलाई. उन्होंने लगातार 3 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ इसी मैदान पर ली, लेकिन पिछले साल उनके इस्तीफे के बाद आतिशी जब आम आदमी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री के लिए चुनी गईं तो उन्होंने 21 सितंबर 2024 को राज निवास में ही सादे समारोह में शपथ ली.

रामलीला मैदान से पहले छत्रसाल स्टेडियम

लेकिन राज निवास के बाहर शपथ लेने की शुरुआत केजरीवाल ने नहीं की थी, बल्कि इस परंपरा की शुरुआत भी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के एक नेता ने की थी. बीजेपी की ओर से चयनित इस नेता ने शपथ के लिए रामलीला मैदान नहीं चुना बल्कि छत्रसाल स्टेडियम में बड़े आयोजन में शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन कराया गया था. राज निवास दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) का आधिकारिक निवास और ऑफिस है.

यह प्रसिद्ध छत्रसाल स्टेडियम उत्तरी दिल्ली में स्थित एक स्पोर्ट्स स्टेडियम है. पहलवानों के लिए यह स्टेडियम बेहद मशहूर है, यहीं से ओलंपिक पदक विजेता योगेश्वर दत्त और सुशील कुमार के अलावा रवि कुमार दहिया, बजरंग पुनिया, अमित कुमार दहिया और अमन सेहरावत जैसे कुश्ती के बड़े खिलाड़ी हुए जिन्होंने ओलंपिक, राष्ट्रमंडल गेम्स, एशियाड और कई वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक जीते हैं.

खुराना के बाद साहिब सिंह को कमान

साल 1993 में पहली बार विधानसभा चुनाव होने के बाद दिल्ली में पहली सरकार बीजेपी की बनी. मदन लाल खुराना ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. लेकिन करीब 2 साल पद पर रहने के दौरान उनका नाम जैन हवाला कांड में आ गया और लाल कृष्ण आडवाणी की सलाह पर उन्होंने भी 1996 की शुरुआत में पद से इस्तीफा दे दिया.

उनके बाद बीजेपी नए मुख्यमंत्री की तलाश में जुट गई. काफी सलाह मशविरा के बाद साहिब सिंह वर्मा का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए तय किया गया. लेकिन मदन लाल खुराना जाट नेता साहिब सिंह के नाम पर राजी नहीं थे. मुख्यमंत्री के चयन के लिए 23 फरवरी 1996 को दिल्ली में पार्टी के विधायक दल की बैठक हुई. बैठक में साहिब सिंह के पक्ष में 31 विधायकों ने अपनी सहमति दी. साहिब सिंह का विरोध करने वाले मदन लाल खुराना को संतुष्ट करने की कोशिश में पार्टी ने सीएम की कुर्सी छोड़ने के बदले में दिल्ली बीजेपी विधायक दल का प्रमुख बना दिया.

अपना प्रभाव दिखाने के लिए बाहर लिया शपथ

मुख्यमंत्री के रूप में साहिब सिंह वर्मा के नाम पर मुहर लगने के बाद शपथ की तैयारी शुरू की गई. उन्होंने राज निवास में शपथ लेने की जगह किसी खुले स्थान पर शपथ लेने का फैसला लिया.

वजह साफ था कि साहिब सिंह ने अपने विरोधियों को अपनी स्थिति दिखाने के लिए प्रतिष्ठित छत्रसाल स्टेडियम का चयन किया. सीएम चुने जाने के 3 दिन बाद 26 फरवरी 1996 को उन्होंने छत्रसाल में शपथ लिया. शपथ ग्रहण समारोह में बड़ी संख्या में लोग पहुंचे. मैदान में किसानों का हुजूम मौजूद था. इस भव्य शपथ ग्रहण के जरिए साहिब सिंह वर्मा ने बतौर मुख्यमंत्री अपनी शुरुआती स्थिति मजबूत कर ली थी. हालांकि सरकार में शामिल कई मंत्री उनका समर्थन नहीं करते थे.

साहिब सिंह भी पूरा नहीं कर सके कार्यकाल

हालांकि उनके 2 साल से भी अधिक के कार्यकाल में मिलावटी तेल से फैली ड्रॉप्सी महामारी और कई लोगों की मौत, फिर चुनावी साल में दशहरा-दिवाली के बीच प्याज के दाम में भारी बढ़ोतरी ने विवादों में बनाए रखा. तब प्याज की कीमत 60 से 80 रुपये किलो तक पहुंच गई थी.

बढ़ती प्याज की कीमतों और सरकार के खिलाफ बढ़ती नाराजगी के बीच बीजेपी ने फिर से मुख्यमंत्री बदलने का फैसला लिया और केंद्र से बुलाकर सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री का पद दिया गया. साहिब सिंह 2 साल 228 दिन ही मुख्यमंत्री रह सके. उनका कार्यकाल 26 फरवरी 1996 से लेकर 12 अक्टूबर 1998 के बीच रहा था. खुराना की तरह साहिब सिंह भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. बीजेपी ने दिल्ली में अपने पहले कार्यकाल में 3 मुख्यमंत्री बनाए थे.

Exit mobile version