सीहोर। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे समय में जब सरकार ने मछली पालन को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं, नर्मदा नदी और उसकी सहायक नदियों में मात्र दो दशकों में मछलियों की 80 प्रजातियां खत्म हो गई हैं।
रेत का अत्यधिक खनन ही इतने बड़े नुकसान का कारण है। उनके अनुसार, मछलियों की 140 प्रजातियाँ उपलब्ध थीं, लेकिन अब केवल 60 ही उपलब्ध हैं। लेकिन इनमें से भी कई प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।
सभी मछलियों में सबसे महत्वपूर्ण, मप्र की राज्य मछली महशीर, जिसे नर्मदा टाइगर भी कहा जाता है, विलुप्त होने के कगार पर है।नर्मदा नदी में कभी बड़ी मात्रा में उपलब्ध रहने वाली कई अन्य मछलियाँ लगभग लुप्त हो चुकी हैं। ऐसा तब हुआ है जब सरकार ने मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं। विलुप्त हो रही मछलियों की प्रजातियों में महाशीर, कलोट (कतला), पटोला, देशी मंगूर, सिंघारा और सुजा शामिल हैं।
सूत्रों के अनुसार, महाशीर प्राकृतिक वातावरण में प्रजनन करती है। महाशीर नर्मदा नदी के छीपानेर, नीलकंठ, शीलकंठ, बाबरी घाट, टिकाली और निमावर घाटों में उपलब्ध थी, लेकिन अत्यधिक रेत खनन के कारण महाशीर विलुप्त हो गई है, क्योंकि उन्हें बढ़ने के लिए प्राकृतिक वातावरण नहीं मिल पाया है। सरकार ने मछली की इस किस्म को बचाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
सोने की तरह चमकने वाली महसीर नर्मदा नदी की शान है। इसके आकार और खूबसूरती के कारण इसे राज्य मछली का दर्जा दिया गया था, लेकिन सरकार इस मछली को संरक्षित करने में विफल रही।
कभी नर्मदा में राज्य मछली ‘महाशीर’ की भरमार होती थी। अब महाशीर की संख्या नर्मदा में 30 प्रतिशत से भी कम हो गई है। इसकी वजह नर्मदा में बदस्तूर बढ़ता प्रदूषण है। महाशीर को टाइगर ऑफ फ्रेश रिवर भी कहा जाता है। स्वच्छ प्रभावित जल में जीवित रहने और प्रजनन करने वाली महाशीर की आबादी नर्मदा में सन् 1950 में कुल मछलियों की 30 प्रतिशत थी जो अब घटकर मात्र 2 प्रतिशत रह गई है। राज्य शासन ने इसे विलुप्त होने से बचाने के लिए ही 26 सितम्बर 2011 को राज्य मछली का दर्जा दिया है। प्रदेश में मछलियों की 215 प्रजातियां हैं। इनमें से 17 पर विलुप्ति का खतरा है। नर्मदा नदी के कुछ हिस्सों में प्रवाहित जल-धाराओं के कारण महाशीर बची है। कुछ हिस्सों में कृत्रिम जल धाराओं से नदी के पानी को प्रवाहित कर महाशीर के संरक्षण पर भी काम चल रहा है।