क्या द्रविड़ बनाम सनातन का फिर बन रहा है मुद्दा….?
क्या स्टालिन के बेटे उदयनिधि का बयान आकस्मिक था? या एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा? अचानक ही तो सनातन धर्म को लेकर उसका वक्तव्य नही आया। सही है। ये पहली बार नहीं है जब दक्षिण भारत से इस तरह का बयान आया हो। ऐसा लगता है, सनातन बनाम द्रविड़ की जंग एक एक बार फिर छेड़ी जा रही है। कुछ इतिहास के पन्ने पलटते हैं।
दिसंबर 2016 को तमिलनाडु की सीएम रहीं जे. जयललिता अपनी अंतिम यात्रा की ओर थीं. भारत के दक्षिणी राज्य की सबसे सशक्त महिला की अंत्येष्टि पर देश ही नहीं विदेशियों तक की निगाहें इस ओर थीं. अंत्येष्टि की प्रक्रिया शुरू हुई तो गमगीन आंखों में आंसुओं के अलावा प्रश्नवाचक चिह्न भी तैरने लगे. सवाल था कि हिंदू नाम वाली सीएम को आखिर दफनाया क्यों जा रहा है? दरअसल, जे. जयललिता की जब अंत्येष्टि हुई तो उन्हें दफनाया गया और फिर उनकी समाधि बना दी गई.
ठीक इसी तरह साल 2018 में जयललिता के सबसे बड़े राजनीतिक विरोधी रहे एम. करुणानिधि के निधन के बाद उनका भी दाह संस्कार नहीं किया गया, बल्कि उन्हें भी दफनाया गया था. आखिर क्यों?
इस क्यों का जवाब है जयललिता और करुणानिधि दोनों का ही द्रविड़ मूवमेंट से जुड़ा होना. द्रविड़ आंदोलन हिंदू धर्म की किसी ब्राह्मणवादी परंपरा और संस्कृति या रिवाज को नहीं मानता है. जे जयललिता एक द्रविड़ पार्टी की प्रमुख थीं, जिसकी नींव ब्राह्मणवाद के विरोध के लिए पड़ी थी. ब्राह्मणवाद के इस विरोध के प्रतीक के तौर पर द्रविड़ आंदोलन से जुड़े लोग दाह संस्कार के बजाय दफनाने की रीति अपनाते हैं।
द्रविड़ परंपरा का सनातन से है विरोध
द्रविड़ आंदोलन की ये रीति यहां यह बताने के लिए काफी है कि सनातन परंपरा से उनका किस हद तक विरोध रहा है. आज के मौजूदा दौर में जब उदयनिधि स्टालिन ने ये बयान दिया है कि .‘हमें सनातन को भी मिटाना है…’ इसके बाद से राजनीतिक हलके में बड़ा बवाल खड़ा हो गया है और एक बार फिर द्रविड़ और सनातनियों का विरोध व संघर्ष उभर कर सामने आ गया है.
उदयनिधि के शब्दों में क्या है द्रविड़ मॉडल?
उदयनिधि ने कहा कि, सनातन धर्म सामाजिक न्याय और समानता के खिलाफ है. कुछ चीजों का विरोध नहीं किया जा सकता, उन्हें खत्म ही कर देना चाहिए. हम डेंगू, मच्छर, मलेरिया या कोरोना का विरोध नहीं कर सकते. हमें इसे मिटाना है. इसी तरह हमें सनातन को भी मिटाना है. सनातन नाम संस्कृत का है. अपने बयान के ही बीच, उदयनिधि ने सवाल किया कि सनातन क्या है? इसका जवाब खुद देते हुए उन्होंने कहा कि सनातन का अर्थ है कुछ भी बदला नहीं जाना चाहिए और सब कुछ स्थायी है. लेकिन द्रविड़ मॉडल बदलाव की मांग करता है और सभी की समानता की बात करता है।
सनातन और द्रविड़ों के संघर्ष का इतिहास
द्रविड़ और सनातन के संघर्ष के मूल में भेदभाव और छूआछूत रहा है. इसकी पृष्ठभूमि वैसे तो काफी पुरानी है, लेकिन जिस घटना ने इसे राजनीतिक और सामाजिक रूप से पहचान दिलाई वह आजादी से करीब 20 साल पहले की है, जिसकी जड़ें त्रावणकोर महाराज की सियासत से जुड़ी हुई हैं.
1924 में केरल में त्रावणकोर के राजा के मंदिर की ओर जाने वाले रस्ते पर दलितों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया. इससे दलितों के आत्म सम्मान को चोट पहुंची और उन्होंने इसका खुला विरोध करना शुरू किया. लिहाजा, वे स्थानीय लोग जो इस विरोध की लड़ाई लड़ रहे थे, राजा के आदेश से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और अब आंदोलन बिना नेतृत्व का हो गया. इसी आंदोलन सीन में व्यापक तौर पेरियार की एंट्री होती है, जिन्होंने दलितों के हक की लड़ाई लड़ी, अपने मित्र रहे त्रावणकोर राज का विरोध किया और महीनों तक जेल भी काटी।
त्रावणकोर महाराज के विरोध के लिए पेरियार ने मद्रास राज्य कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दिया और त्रावणकोर में आंदोलन का नेतृत्व किया. त्रावणकोर पहुंचने पर उनका राजकीय स्वागत हुआ, लेकिन उन्होंने इस स्वागत को अस्वीकार कर राजा का विरोध किया. आंदोलन के बीच ही सामने आया कि चेरनमादेवी शहर में कांग्रेस के अनुदान पर चल रहे सुब्रह्मण्यम अय्यर के स्कूल में ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण छात्रों के साथ खाना परोसते समय अलग व्यवहार किया जाता है।
ब्राह्मणों-गैर ब्राह्नणों के बीच का संघर्ष
पेरियार ने ब्राह्मण अय्यर से सभी छात्रों से एक समान व्यवहार करने का आग्रह किया. लेकिन न तो वो अय्यर ही उनकी बात माने और न ही कांग्रेस के अनुदान को रोक पाने में पेरियार कामयाब हुए, लिहाजा उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और आत्म-सम्मान आंदोलन शुरू किया. जिसका उद्देश्य गैर-ब्राह्मणों (जिन्हें वो द्रविड़ कहते थे) में आत्म-सम्मान पैदा करना था. यहां ये स्पष्ट हुआ कि द्रविड़, गैर ब्राह्मणों को कहते हैं और इस तरह यह संघर्ष ब्राह्मण और गैर ब्राह्मणों के बीच का है।
पेरियार की विचारधारा को मानती है डीएमके
पेरियार का मानना था कि समाज में निहित अंधविश्वास और भेदभाव की वैदिक हिंदू धर्म में अपनी जड़ें हैं, जो समाज को जाति के आधार पर विभिन्न वर्गों में बांटता है जिसमें ब्राह्मणों का स्थान सबसे ऊपर है. इसलिए, वो वैदिक धर्म के आदेश और ब्राह्मण वर्चस्व को तोड़ना चाहते थे. एक कट्टर नास्तिक के रूप में उन्होंने भगवान के अस्तित्व की धारणा के विरोध में प्रचार किया. डीएमके पार्टी पेरियार की विचारधारा को मानने वाली है, और इसीलिए इसमें सनातन के प्रति विरोध दिखाई देता है. उदयनिधि ने भी अपने भाषण के दौरान एक पंक्ति में सनातन की आलोचना करते हुए द्रविड़ मॉडल की बड़ाई की थी।
एक जैसे हैं आर्य और द्रविड़ के पूर्वज?
आर्य और द्रविड़ के बीच संघर्ष को साल 2009 में सामने आई एक और रिपोर्ट खारिज करती है. असल में तब, फिनलैंड समेत कई देशों में भारतीयों के डीएनए पर आधारित शोध हुए, जिनमें एक नया ही तर्क सामने आया था.
रिसर्च में सामने आया कि सभी भारतीयों का गुणसूत्र लगभग एक जैसा है और ये साबित करता है कि सभी समुदायों के पूर्वज समान हैं. यहां तक कि आर्य और द्रविड़ का कोई भेद गुणसूत्रों के आधार पर नहीं मिलता है, जैसा कि बहुत से जानकार कहते रहे हैं कि आर्य बाहरी हैं, जबकि केवल द्रविड़ ही भारत के मूल निवासी हैं.
कुछ ऐसा ही तर्क सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी के भूतपूर्व निदेशक और वैज्ञानिक लालजी सिंह भी दे चुके हैं. इस दौरान देश के 13 राज्यों के 25 अलग-अलग जाति-समूहों के डीएनए का मिलान किया गया था.