संपादकीय….ये बहशीपन और राजधानी – Vishleshan
गुंडों ने मेरे और बेटी के साथ छेड़छाड़ की। भाई ने विरोध किया, तो गुंडे उन पर लाठी-डंडे लेकर टूट पड़े। मुझे, मेरी बेटी और बहन को भी बेरहमी से पीटा। हम आरोपियों के सामने भाई को छोडऩे के लिए गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन नशे में धुत हत्यारों ने एक नहीं सुनी। दौडक़र पुलिस से मदद मांगने पहुंची, तो पुलिसकर्मी के ड्राइवर ने भी मदद नहीं की। मैं वो पल नहीं भूल सकती, जब भाई ने मेरी गोद में दम तोड़ा। अगर पुलिस समय पर कार्रवाई करती, तो शायद मेरा भाई जिंदा होता। पुलिस ने रिपोर्ट तक समय पर नहीं लिखी।
ये एक लाडली बहन का दर्द नहीं, हमारे बहशी समाज और बेरहम प्रशासन की जुबानी है। धर्म और आस्था के ज्वार के बीच एक महिला से छेड़छाड़ और उसे रोकने का प्रयास करने पर हत्या की घटना ने राजधानी को बहशीपन की हद तक जाने वाले शहर का तमगा भी दे दिया है। हमें और उस धार्मिक उत्सव में पहुंचने वाले अंधे, गूंगे, बहरे धर्मावलंबियों को डूब कर मर जाना चाहिए, जो देखते रहे। कोई मदद के लिए आगे नहीं आया। आता कैसे? कहीं पुलिस की पूछताछ और फिर थाने-अदालत का चक्कर। यह तो बाद में होता, धर्म के नाम पर दुकान चलाने वाले अपराधियों का ऐसी जगह इतना जमावड़ा होता है कि बचाने वाले को भी मौत के घाट उतार दिया जाता है।
मौका अनंत चतुर्दशी चल समारोह का था। धर्म के नाम पर नारे लगाकर आसमान गुंजाने वाले कितने नपुंसक वहां मौजूद थे, जो धर्म के लिए जान देने की बात करते हैं। लेकिन एक व्यक्ति को बचाने नहीं आ सके। हत्या की घटना के बाद आज जब उस बहन का दर्द बयान के रूप में सामने आता है तो दिल दहल जाता है। बहन कहती है- गुरुवार देर रात बेटी, बहन ने चल समारोह देखने को कहा। हम वहां अकेले नहीं जाना चाहते थे। लिहाजा, भाई अमित सिरोलिया को साथ ले गए। जम-जम और मिलन होटल के बीच में एक जगह फुटपाथ पर बैठ गए। यहां से कैंची छोला की एक झांकी गुजर रही थी। एक बड़े बाल वाला युवक कुछ लोगों से झगड़ा कर रहा था। हम सब बैठे-बैठे यह सब देख रहे थे। इसी बीच युवक बेहद करीब आकर बैठ गया। वह नशे में धुत था। उसने मेरे साथ गलत हरकत की। इसके बाद बेटी कशिश के साथ भी उसने यह किया। हमने उसे दूर जाकर बैठने के लिए कहा। आरोपी जाने को तैयार नहीं था। बहस करने लगा। अपशब्द कहने लगा। यह देख भाई अमित सिरोलिया ने उसे समझाने का प्रयास किया। क्योंकि वह नशे में था। भाई विवाद नहीं करना चाहते थे। आरोपी उनसे भी बदसलूकी करने लगा। चंद मिनट बाद वह बड़ा सा पत्थर लेकर आया और भाई के सिर में मार दिया। यह देख उसके दो साथी बिना जाने की घटना का कारण क्या है, डंडे और लाठी से भाई को पीटने लगे।
वह मदद के लिए चीख रहे थे। हम भी भाई को छोडऩे के लिए मिन्नतें करते रहे, लेकिन डीजे की धुन में आवाज दब गई। हम मदद के लिए आगे गए। आरोपियों ने हमें पीटना शुरू कर दिया। बहन के हाथ में गंभीर चोट आई है। मेरे और बेटी को भी चोट लगी हैं। आरोपियों के सिर पर खून सवार था। वह अंधाधुध मार रहे थे। मैं जान बचाने के लिए आगे की ओर भागी। यहां मुझे पुलिस का वाहन दिखा। मेरी जान में जान आई। उम्मीद थी यहां कोई मदद मिलेगी।
गाड़ी में एक ड्राइवर बैठा था। मैने उससे मदद मांगी। पुलिस बुलाने के लिए कहा। बताया- कुछ लोग मेरे भाई को बेरहमी से पीट रहे हैं। उसने मुझे वाहन में बैठा लिया। पुलिस नहीं बुलाई। मैने उससे पुलिस बुलाने की मिन्नतें कीं, वह बोलता रहा। आप घबराओ मत। अंदर बैठ जाओ। मैंने ही उससे फोन मांगा। इसी फोन से मैने भाई अमित को कॉल किया। बेटे को भी कॉल कर बताया कि- मुझे बहुत डर लग रहा है। मुझे बचा लो। भाई घायल हालत में ही पुलिस वाहन तक आया। इस बीच बेटा भी आ गया साथ लेकर घर तक पहुंचा। भाई के सिर से खून बह रहा था।
हम कुछ कर पाते, इससे पहले ही उसने पानी मांगा। बताया- मुझे घबराहट हो रही है। इसके बाद मेरे कंधे पर सिर रखा। चंद सेकेंड बाद ही बेसुध हो गया। इस समय रात करीब ढाई बज चुके थे। हम उसे बेहोश समझकर अस्पताल पहुंचे, जहां मौत की पुष्टि हो गई। मोहल्ले में लौटे तो बताया गया कि अमित को पीटने वाला युवक घर तक पहुंच गया था। घर के पास उत्पात मचा रहा था। मोहल्ले के युवकों ने उसे समझाने का प्रयास किया, तो आरोपी विवाद करने लगा। तब उसकी धुनाई की गई। इसका सीसीटीवी फुटेज भी मिला है। इतना सब होने के बाद भी पुलिस नहीं आई। बहन को भी अस्पताल ले गए थे। वहां डॉक्टरों ने पुलिस केस बताकर इलाज से मना कर दिया था। उन्होंने बताया था कि पुलिस को सूचना दे दी है। तब भी शुक्रवार सुबह तक पुलिस नहीं आई। आखिरकार, सुबह 5.30 बजे हम स्वयं थाने पहुंचे और शिकायत की। थाने में पुलिस ने भी रिपोर्ट दर्ज नहीं की। कुछ देर में थाने आने की बात कहकर चलता कर दिया गया। दोबारा फिर थाने पहुंचे, तब केस दर्ज किया। आरोपी को फांसी की सजा दिलाओ, तभी भाई की आत्मा को सुकून मिलेगा। अमित की भांजी का कहना है कि मारपीट के दौरान भी आरोपियों ने मुझे घसीटा, पीटा। मेरे पैर में डंडे मारे। मैं चीखती रही। वहां काफी भीड़ थी, लेकिन कोई भी मदद के लिए तैयार नहीं था। इतनी भीड़ होने के बाद भी जहां विवाद हो रहा था, वहां कोई पुलिसकर्मी मौजूद नहीं था। घटना के करीब एक घंटे बाद तक युवक वहीं घूमता रहा था। घर तक भी आया, लेकिन उसे किसी ने नहीं पकड़ा।
क्या ऐसी उत्सव समितियों और झांकियों को शहर में निकालने का अधिकार होना चाहिए, जिसके सदस्य महिलाओं से छेड़छाड़ करते हैं? जो शराब पीकर चल समारोह में चलना शान और धर्म समझते हैं? क्या यही हमारा धर्म है? वो धर्म जो इंसानियत सिखाता है, उसके नारे लगाने वाले शराब के नशे में चलते हैं। वो महिलाओं से अभद्र व्यवहार करते हैं। सच कड़वा होता है, लेकिन धर्म के नाम पर अधर्म का धंधा खूब चलता है। और रोकने पर हत्या कर देते हैं। मारपीट तो सामान्य बात है।
रही पुलिस की बात। तो वो बेचारी होती है। सरकार और नेताओं के इशारे पर चलती है। भोपाल में वीआईपी ड्यूटी से लेकर तमाम समारोहों, रैलियों की व्यवस्था करते-करते थक जाती है। कहां तक आम आदमी की समस्या देखें। मामलों के ढेर लगे होते हैं। और हमारा समाज। वो तो विश्व गुरू बनने जा रहा है। अभी हाल ही में उज्जैन में विश्व गुरू बनने वालों का तमाशा देखा। रोज ऐसे तमाशे देख रहे हैं। समाज के ठेकेदार अपनी दुकान चलाने तक सीमित रह गए हैं। अपना घर, अपने बच्चे और फिर अपने कुछ खास। बस अपनी दुकान चलाने तक सीमित हैं राजनेता और समाज के ठेकेदार। करने के लिए विज्ञप्ति जारी कर देंगे। बयान दे देंगे। सोशल मीडिया पर आरोपों की बौछार करते रहेंगे। तभी तो समाज गर्त की तरफ जा रहा है। और हां, राजनीतिक लाभ, टिकट के लिए रैलियां भी निकाल लेंगे। तोडफ़ोड़ कर सकते हैं। लेकिन मानवता के लिए रत्ती भर योगदान नहीं देंगे। इंसानियत का तकाजा जैसे उनके पास से नहीं गुजरता। बस। जो भुगतता है, वही जानता है।
– संजय सक्सेना