संपादकीय…अब सनातन का मुद्दा मिल गया
केंद्र में लगातार सत्ता में काबिज भारतीय जनता पार्टी को बैठे बिठाए बड़ा मुद्दा मिल गया है। यह मुद्दा है सनातन का। पहले हिंदू का मुद्दा था, अब सनातन का। उसे लगता है कि यह मुद्दा उसे अगले चुनाव की वैतरिणी पार करवा सकता है। यही कारण है कि बेरोजगारी से लेकर तमाम मुद्दों को लगातार चुनाव के समय हाशिए पर भेजने में कामयाब भाजपा एक बार फिर अपने लक्ष्य में सफल होती दिख रही है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पहले से ज्यादा हिंदू वोट प्राप्त करने का लक्ष्य बेधने के लिए भाजपा को हिंदू गोलबंदी का नया ‘ट्रिगर पॉइंट’ चाहिए। कुछ-कुछ वैसा ही, जो उसे 2019 में बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के राष्ट्रवादी प्रभाव के कारण मिल गया था। भाजपा इसकी खोज में लगी है। उसके रणनीतिकारों का मानना है कि सनातन ऐसा मुद्दा है, जिसे वे पहले के मुकाबले कुछ बेहतर हिंदू गोलबंदी का माध्यम बना सकते हैं। इसके प्रयास शुरू भी कर दिए गए हैं।
चुनावी रणनीतिकार मानते हैं कि भाजपा को 2024 में कोई ऐसा काम दोबारा करना पड़ेगा, जैसा उसने 2019 में किया था। उस चुनाव में पड़े प्रत्येक सौ वोटों में से तकरीबन 37 से कुछ ज्यादा वोट भाजपा को मिले थे, जिनके कारण 303 सीटें उसकी झोली में आ गई थीं। इनमें से 211 सीटें उसने सिर्फ 11 राज्यों से जीत ली थीं। ये राज्य थे- यूपी, एमपी, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, दिल्ली, झारखंड, उत्तराखंड और हिमाचल। 239 में से 211 सीटें जितवाने के कारण इन्हें भाजपा के नंबर एक राज्यों की संज्ञा दी जा सकती है। इनके मुकाबले नंबर दो के राज्यों की संख्या छह थी। इनकी कुल 182 सीटों में से भाजपा 84 जीतने में कामयाब रही थी। ये राज्य थे- बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना और असम। यानी भाजपा को मिली 303 में से 295 सीटें इन्हीं 17 राज्यों से प्राप्त हुई थीं।
अब भाजपा को इन राज्यों में यह प्रदर्शन दोहराने की चिंता है। लोकसभा में बहुमत 272 सीटें जीतने पर बनता है। भाजपा के पास इस जादुई आंकड़े से 31 सीटें ज्यादा हैं। अगर पहले नंबर के 11 राज्यों में 2019 की असाधारण सफलता हासिल करने में भाजपा जरा भी चूक गई तो वह लगातार तीसरी बार पूर्ण बहुमत की पार्टी नहीं बन पाएगी। अगर वह बहुत थोड़ा-थोड़ा ही लडख़ड़ाई, तो भी यह काफी है। संदर्भ देखें तो दूसरे नंबर के राज्यों में भाजपा ने 46 प्रतिशत की दर से जीत हासिल की थी। यहां तो भाजपा को हर हालत में यह प्रदर्शन दोहराना ही होगा।
जाहिर है कि भाजपा को अपने दोनों क्षेत्रों में जबर्दस्त प्रदर्शन हिंदू वोटों की गोलबंदी के आधार पर ही प्राप्त हुआ था। पांच साल बाद उसे एक बार फिर इतने ही हिंदू वोट चाहिए। जैसा कि हमेशा होता है कि उसे लक्ष्य इससे भी ज्यादा हिंदू वोट पाने का रखना होगा, तब उसे कुछ घटकर वांछित संख्या में वोट प्राप्त हो सकेंगे। हिंदू वोट की गोलबंदी इस बार कितनी हो पाएगी, यह अभी एकदम नहीं कहा जा सकता। क्योंकि खुद भाजपा के रणनीतिकार मानते हैं कि भाजपा के प्रभाव-क्षेत्र में भी यह गोलबंदी अब फ्रीजिंग पॉइंट पर पहुंच गई है। जब तक चुनाव की मुहिम में नई गर्मी नहीं आएगी, तब तक बर्फ पिघलेगी नहीं।
सवाल तो उठता है, क्या ‘सनातन’ का सवाल नई गर्मी पैदा करेगा? प्रधानमंत्री ने इस मामले में स्वयं पहलकदमी की है। पहले उन्होंने मंत्रियों से कहा कि वे इस मसले पर विपक्ष पर करारा हमला करें। इसके बाद छत्तीसगढ़ में वे स्वयं विपक्ष पर टूट पड़े। इसमें शक नहीं कि यह मुद्दा विपक्ष ने अपनी गलती से बनाकर प्रधानमंत्री के हाथ में थमाया है। भाजपा इसे आखिरी दम तक खींचेगी। अब यह विपक्ष पर है कि वह अपना बचाव कितना कर पाता है।
स्टालिन के बेटे का सनातन को लेकर बयान हालांकि दक्षिण भारत को लेकर रहा है, लेकिन चूंकि हिंदू और सनातन को लेकर लगातार देश में बहस चल ही रही है और भाजपा कहीं न कहीं ऐसे मुद्दों की आड़ में मूल मुद्दों का ध्वस्त करने में सफल हो ही जाती है। उसने अच्छे खासे पढ़े-लिखे लोगों को भी इस धारा में शामिल कर लिया है। इसलिए उसे लगता है कि अब ङ्क्षहदू के बजाय सनातन को लपक लिया जाए। यह उसने करना शुरू कर भी दिया है।
वैसे विपक्षी गठबंधन के अधिकांश घटक दलों ने इस मामले को ठंडा करने के प्रयास भी किए हैं, लेकिन भाजपा इसकी आड़ में अपना माहौल बनाने के प्रयासों में जुट गई है। वैसे राम मंदिर के लोकार्पण और उसकी भव्यता का भी भाजपा चुनावी माहौल के लिए भरपूर उपयोग करेगी, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि सनातन का मुद्दा दक्षिण का घाटा उत्तर भारत में पूरा करने में उसके लिए अधिक सहायक साबित हो सकता है। वह इसमें जुट भी गई है। संसद के विशेष सत्र में एक देश एक चुनाव का हौवा खड़ा करके भाजपा ने महिला आरक्षण का मुद्दा अपने हाथ में ले लिया। लेकिन महिला आरक्षण बिल लागू होने में लगी शर्त उसके रास्ते में बाधक बन सकता है। इसलिए अब सनातन का ही सहारा है।
– संजय सक्सेना