संपादकीय…भारत-कनाडा के संबंध – Vishleshan
हाल की घटनाओं को देखें तो भारत और कनाडा के संबंधों में आ रही तल्खी कम होने की फिलवक्त तो संभावना कम ही दिखती है। भारत ने जो कदम उठाए, वो अपनी जगह सही हंै, लेकिन विश्व स्तर पर अमेरिका और आस्ट्रेलिया जिस तरह से कनाडा का साथ देते दिख रहे हैं, वो चिंता वाली बात है।
असल में भारत और कनाडा के बीच आज जैसी स्थिति निर्मित हो गई है, वह बहुत ही पेचीदा और विकट है। दोनों ही देशों के सामने पीछे हटने का विकल्प नहीं है। वास्तव में इस पर पीछे हटना दोनों के लिए नुकसानदेह होगा। आज कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भारी महंगाई की समस्या का सामना कर रहे हैं। और कहीं न कहीं उनकी पार्टी आतंवादी या माफिया वाले संगठनों के साथ जुड़ी रही। कह सकते हैं, जस्टिन उनकी दम पर ही वहां शासन चला रहे हैं।
खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के तीन महीने बाद जस्टिन ने भरी संसद में आरोप लगा दिया कि निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंसियों का हाथ है। उसके बाद से भारत और कनाडा के रिश्ते हर दिन बिगड़ते चले गए हैं। कनाडा के हर ऐक्शन पर भारत ने जवाबी कार्रवाई की है। दोनों देशों के बीच 8 बिलियन डॉलर से ज्यादा का इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट होता है। अगर कूटनीतिक स्टैंडऑफ लंबा चला तो किसे ज्यादा नुकसान होगा? सवाल का जवाब इतना सीधा नहीं। व्यापार के आंकड़े भी पूरी तस्वीर साफ नहीं करते।
एक संदर्भ के अनुसार 2022 में पौने दो लाख से ज्यादा भारतीय छात्र कनाडा में रहकर पढ़ाई कर रहे थे। अमेरिका के बाद भारतीय छात्रों की दूसरी पसंद कनाडा ही है। विदेश जाकर पढऩे वाले भारतीय स्टूडेंट्स में से 13.8 प्रतिशत कनाडा का रुख करते हैं। और इनमें पंजाब के रहने वालों की संख्या अधिक है। भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों में कनाडा पांचवें नंबर पर है। 2022 में कनाडा से 2.8 लाख पर्यटक भारत आए। इसके उलट, भारतीयों के फॉरेन ट्रिप की पसंद में कनाडा नौवें नंबर पर आता है। पिछले साल 8 लाख भारतीय कनाडा गए थे।
कनाडा में 17.6 लाख ओवरसीज भारतीय रहते हैं। भारतीयों की आबादी के लिहाज से दुनिया में कनाडा सातवें नंबर पर आता है। इनमें से 15.1 लाख लोगों ने कनाडा या अन्य किसी देश की नागरिकता ले ली है। वहीं 1.8 लाख नॉन-रेजिडेंट इंडियन यानी एनआरआई हैं। उन्होंने 2021 में भारत में अपने परिवारों को करीब 4 बिलियन डॉलर वापस भेजे। रेमिटेंस के मामले में भी कनाडा 9वें पायदान पर है। भारत और कनाडा के बीच 2022-23 में सिर्फ 8.2 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ। भारत के व्यापार भागीदारों की लिस्ट में कनाडा 35वें नंबर पर है। दवा आदि वस्तुओं का भी व्यापार होता है।
एक आम कनाडाई के लिए जीवनयापन और किराए पर आवास की सुविधाएं अत्यंत खर्चीली हो गई हैं। इस समस्या के समाधान के लिए ट्रूडो ने दो योजनाएं बनाई हैं। पहली है, बहुत सारे सस्ते मकान बनवाना। और दूसरी है, अपने सबसे रैडिकल वोटर-बेस यानी खालिस्तानियों को लामबंद करना। अगर ट्रूडो की मंशा हरदीप सिंह निज्जर के कातिलों को पकड़वाना ही होती तो इसका रास्ता बहुत सीधा-सरल था। वे जांच करवाते, सबूत जुटाते और सबूत मिलने पर बड़े शालीन तरीके से भारत सरकार से इस बारे में चर्चा करते। इसके बावजूद तीन ऐसी चीजें हुई हैं, जो बताती हैं कि ट्रूडो की दिलचस्पी एक समाधान की तलाश में शुरू से ही नहीं थी।
सही बात तो यह है कि ट्रूडो की पार्टी ने इन नेटवर्कों में खासा निवेश किया है, क्योंकि समाज पर उनका दबदबा है और वे वोटरों को प्रभावित कर सकते हैं। आगामी चुनावों में ट्रूडो की हार ही इस दुष्चक्र को समाप्त कर सकती है। अगर ट्रूडो की मंशा निज्जर के कातिलों को पकड़वाना ही होती तो वे जांच करवाते और सबूत मिलने पर बड़े शालीन तरीके से भारत सरकार से इस बारे में चर्चा करते। लेकिन ट्रूडो की दिलचस्पी समाधान की तलाश में शुरू से नहीं थी।
बात अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की करें तो आस्ट्रेलिया ने कुछ खुले तौर पर और अमेरिका ने भी कनाडा के समर्थन में अपना रुख दिखाया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या अमेरिका को जस्टिन की पार्टी के आतंकवादी संगठनों के साथ संबंधों की जानकारी नहीं है? या फिर वह केवल इसलिए उसका समर्थन कर रहा है, क्योंकि वह उसके महाद्वीप में है? और काफी कुछ उस पर निर्भर भी है? विश्व स्तर पर ऐसे देशों की आलोचना तो की ही जानी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र से लेकर कोई भी अंतर्राष्ट्रीय संगठन आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने का समर्थक नहीं रहा। ऐसी गतिविधियों पर लगाम लगाने की रणनीति ही बनती आई है। सभी देश इन पर नियंत्रण की बात करते हैं। ऐसे में कनाडा के प्रधानमंत्री को अलग-थलग पड़ जाना था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कारण कुछ भी हों, मुद्दा आतंकवादी गतिविधियों का प्रमुख होना चाहिए। भारत और कनाडा के बीच रिश्तों में फिलहाल तल्खी कम होने की उम्मीद नहीं है। फिर भी, विश्व समुदाय को इसके लिए पहल करना चाहिए।
– संजय सक्सेना