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संपादकीय….उपचुनाव के संकेत… – Vishleshan

छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों पर मंगलवार को हुए उपचुनावों के नतीजे मिले जुले दिख जरूर रहे हैं, लेकिन इससे मिले संकेत गंभीर माने जा सकते हैं। कहीं न कहीं एकजुटता की ताकत तो दिखाई देने लगी है। वहीं पूर्वाेत्तर में भाजपा के बढ़ते कदम भी दिखाई दे रहे हैं, भले ही वो वहां की स्थानीय पार्टियों के साथ मिलकर चल रही हो। फिर भी विपक्षी गठबंधन की एकता यदि और बढ़ जाती है, तो वह एनडीए के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी। आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को आम चुनाव का सेमीफाइनल ही माना जाएगा।

उपचुनावों पर खास ध्यान दिया जा रहा था तो उसके पीछे सबसे बड़ी वजह थी इसकी टाइमिंग। यह विपक्ष के इंडिया गठबंधन बनने के बाद होने वाला पहला चुनावी टकराव था। इसका क्षेत्र भी बड़ा व्यापक था। उत्तर के झारखंड, यूपी और उत्तराखंड से लेकर पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और दक्षिण के केरल तक की सीटों पर मुकाबला हुआ। दूसरी बात यह कि ये उपचुनाव पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों और फिर लोकसभा चुनावों से ठीक पहले हुए थे। बहरहाल, संख्या के लिहाज से देखा जाए तो इन चुनाव नतीजों को मिला-जुला ही कहना होगा।

सात सीटों में से तीन बीजेपी के खाते में गईं और चार विपक्षी दलों में से किसी न किसी के हिस्से में। लेकिन भूलना नहीं चाहिए कि केरल (पुतुपल्ली) में बीजेपी मुकाबले में ही नहीं थी। वहां टक्कर कांग्रेस की अगुआई वाली यूडीएफ और एलडीएफ के बीच था जिसमें कांग्रेस-यूडीएफ ने बाजी मारी। ऐसे देखें तो स्कोरकार्ड तीन-तीन का बनता है। त्रिपुरा की दोनों सीटों पर बीजेपी की भारी जीत बताती है कि वहां लेफ्ट पार्टियों के लिए आगे की राह सचमुच मुश्किल है। हालांकि लेफ्ट पार्टियों ने वहां चुनावी धांधली के आरोप लगाते हुए मतगणना का बहिष्कार कर रखा था। लेकिन इस बारे में जब तक विश्वसनीय जांच से कुछ स्थापित नहीं होता, तब तक सिर्फ आरोप के बिना पर कोई नतीजा नहीं निकाला जा सकता।

पश्चिम बंगाल (धुपगुड़ी) में विपक्ष का कोई साझा उम्मीदवार नहीं था। तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के अलावा वहां लेफ्ट पार्टियों का भी एक प्रत्याशी था, जिसे कांग्रेस ने समर्थन दिया था। जीत तृणमूल कांग्रेस को मिली और निकटतम प्रतिद्वंद्वी बीजेपी का रहा। बीजेपी यह कहकर खुश हो सकती थी कि वहां तृणमूल के मुकाबले में वही है और उसने कांग्रेस व लेफ्ट को पीछे धकेल दिया है। लेकिन चूंकि अब लोकसभा चुनावों के लिहाज से लेफ्ट दल, कांग्रेस और तृणमूल- सभी एक ही पाले में खड़े नजर आ रहे हैं तो बीजेपी के लिए यह दिलासा काफी नहीं होगा।

फिर भी अगर इंडिया गठबंधन के नजरिए से देखें तो झारखंड की डुमरी और यूपी की घोसी, ये दोनों सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण सीटें कही जाएंगी। डुमरी में हालांकि झारखंड मुक्ति मोर्चा का मुकाबला ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन से था लेकिन झामुमो प्रत्याशी को इंडिया गठबंधन का समर्थन हासिल था। घोसी की अहमियत इस बात में थी कि वहां समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के खिलाफ विपक्षी खेमे के किसी भी दल ने उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था। ऐसे में झारखंड के डुमरी में झामुमा और यूपी के घोसी में समाजवादी पार्टी की जीत के खास मायने हो जाते हैं। यह माना जा सकता है कि बीजेपी को इंडिया गठबंधन को हलके में लेने का जोखिम नहीं उठाना चाहिए।

एक बात और। ये परिणाम उपचुनावों के हैं, जिनमें सत्ता का दबदबा और दबाव दोनों ही रहते हैं। ऐसे में यदि उत्तर प्रदेश में विपक्ष को जीत मिली, वो भी बहुत बड़े अंतर से, तो यह चेतावनी भी हो जाती है एनडीए के लिए। यूपी में भाजपा सत्ता में है और मुख्यमंत्री योगी का डंका पूरे देश में बज रहा है। उन्हें अगले प्रधानमंत्री के दावेदार के रूप में भी देखा जा रहा है। राम मंदिर निर्माण भी पूरा हो रहा है। अपराधियों पर बुलडोजर भी चलवा रहे हैं। और भी तमाम बातें हैं, लेकिन घोसी के परिणाम कहीं न कहीं योगी के लिए भी चेतावनी तो हैं। मीडिया और सोशल मीडिया पर छा जाने भर से काम शायद नहीं चलने वाला। यूपी में कुछ ठोस काम भी करना होगा।

यही नहीं, एनडीए का नेतृत्व कर रही भाजपा को भी अपने मुद्दों पर फिर से विचार करना होगा। अभी जिन पांच राज्यों में चुनाव की तैयारियां चल रही हैं, नवंबर में चुनाव हो सकते हैं, वहां भी भाजपा के लिए बहुत अच्छे संकेत नहीं हैं। फिर भी, भाजपा मूल मुद्दों के बजाय दाएं-बाएं ही चलती दिख रही है। मूल मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने और बेवजह के मुद्दों में विपक्ष को उलझाने की चाल कामयाब होती नहीं दिख रही है। फिर भी प्रयास जारी हैं। देखना होगा, आम चुनाव के सेमीफायनल में कौन से मुद्दें हावी रहते हैं और एनडीए बनाम इंडिया की जंग के इस सेमीफायनल में क्या नतीजे आते हैं।

– संजय सक्सेना 

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