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संपादकीय….बिन पानी सब सून…!

दोनों सावन सूखे निकले

प्यासी धरती, प्यासे खेत
हाहाकार मच रहा चहुं दिस
नदियों में दिखती बस रेत..।
सावन महीने को लेकर बड़ी किंवदंतियां हैं। माना जाता है कि सावन और भादों, दो महीने वर्षाकाल के लिए सर्वोत्तम होते हैं। परंतु इस बार तो सावन सूखे ही चले गए। यही नहीं, उन्नीस साल बाद इस बार दो सावन पड़े थे। कहां तो एक ही सावन वर्षाकाल के लिए पर्याप्त होता है, लेकिन इस बार दोनों ही सावन सूखे रहे और भादों की शुरुआत भी। अंग्रेजी माह देखें तो जुलाई और अगस्त दोनों ही महीनों में जरूरत की बारिश नहीं हुई।
मानसून की ऐसी बेरुखी देश के अनेक हिस्सों में तो रही है, इसके चलते आधे मध्यप्रदेश में सूखे की आशंका गहराती जा रही है। इस बार पूरे प्रदेश में कम बारिश से किसानों पर ही नहीं बल्कि शहरों में भी पेयजल संकट पैदा होने की आशंका है। सबसे ज्यादा संकट बुंदेलखंड, ग्वालियर-चंबल और उत्तरी मालवा क्षेत्र में दिखाई दे रहा है। ग्वालियर शहर को जलापूर्ति वाला तिघरा डेम साढ़े तीन मीटर खाली है। विदिशा और रायसेन की प्यास बुझाना वाला हलाली बांध 3 मीटर खाली है। भोपाल के कलियासोत और कोलार डैम पूरे नहीं भर पाए हैं। और नदियों में भी पानी बहुत ज्यादा दिख नहीं रहा है।
थोड़ा आंकड़ों पर जाते हैं। राजधानी भोपाल समेत 11 जिले ऐसे हैं, जहां 30 से 46 प्रतिशत तक कम बारिश हुई है। सतना में सबसे अधिक 46 प्रतिशत कम बारिश हुई है। भोपाल में 37 प्रतिशत कम बारिश हुई है। अगले एक हफ्ते तक बारिश नहीं हुई तो 10 जिले सतना, अशोक नगर, मंदसौर, खरगोन, खंडवा, भोपाल, सीधी, गुना शाजापुर और रीवा सूखे की चपेट में आ जाएंगे। अपर्याप्त बारिश का असर बांधों में दिखने लगा है। 52 में से 36 बड़े बांध 25 फीसदी से ज्यादा खाली हैं। धान पर दोहरी मार पड़ी है। एक तो पौधों की बड़वार रुक गई। दूसरी तरफ तापमान बढऩे से कल्ले नहीं आ रहे हैं। मैदानी किसानों की मानें तो इस बार धान की फसल को 25 प्रतिशत से ज्यादा नुकसान हो चुका है।
प्रदेश के विंध्य और बुंदेलखंड इलाकों के जिलों की हालत सबसे खराब बताई जा रही है। यहां छह जिलों सतना, रीवा, सीधी, सिंगरौली, छतरपुर और टीकमगढ़ में सामान्य से काफी कम बारिश हुई है। मालवा-निमाड़ इलाके के भी पांच जिले धार, शाजापुर, खरगोन, बड़वानी और आलीराजपुर भी ऐसे ही इलाकों में शामिल हैं। वैसे भी बुंदेलखंड के अधिकांश भाग में पानी की कमी ही रहती आई है। इस बार और हालात खराब बताए जा रहे हैं। नर्मदापुरम जिले में यह स्थिति है कि वहां एक हजार मिलीमीटर से ज्यादा बारिश हो चुकी है। इसके बावजूद वहां अब तक की सामान्य बारिश से 23 प्रतिशत कम बारिश आंकी गई है और अभी से खेतों से लेकर पेयजल तक की चिंता सताने लगी है।
कृषि विशेषज्ञ कहते हैं कि पिछले साल मिट्टी में नमी होने के कारण ज्यादातर इलाकों में पलेवा की जरूरत नहीं पड़ी थी, लेकिन इस बार हालात बिल्कुल उलट हैं। खेत इतने सूख गए हैं कि इस महीने अच्छी बारिश नहीं हुई तो रबी सीजन की फसलों को भी खासा नुकसान होने की आशंका है। रबी का सीजन 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच शुरू हो जाएगा। इसी वक्त में पानी की सर्वाधिक मांग आती है। इसकी पूर्ति हो पाएगी या नहीं, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। किसानों के चेहरों पर अभी से चिंता की लकीरें गहरी होने लगी हैं। जमीन में पानी है नहीं। डैम खाली हैं। नहरें भी भरी नहीं हैं। इस पर पर्याप्त बिजली नहीं मिल रही है। मात्र 4 से 5 घंटे बिजली मिलती है। किसान कहते हैं कि सूखे जैसे हालात बनने और पर्याप्त बिजली नहीं मिलने के चलते सोयाबीन की फसल खराब हो चुकी है। कम बिजली आने के चलते सिंचाई का भी कोई उपयुक्त साधन नहीं बन पा रहा है। धान के लिए तो पानी की आवश्यकता कुछ ज्यादा ही होती है, सो जिनकी धान पहले बो दी गई थी, उन्हें ज्यादा नुकसान हुआ है। चौथाई से ज्यादा फसल तो खराब हो ही चुकी है। अब इस महीने यदि थोड़ा अच्छा पानी बरस जाता है, तो कुछ बचने की उम्मीद की जा सकती है।
एक तरफ खेत सूख रहे हैं तो दूसरी ओर प्रदेश के पूरे ग्रामीण इलाकों में रविवार से 3 घंटे की बिजली कटौती शुरू कर दी गई है। यह तो अधिकृत तौर पर की गई है। अनाधिकृत तो आठ घंटे तक हो जाती है। जब चाहे, चली जाती है। तापमान बढऩे के कारण अब बिजली की जरूरत और बढ़ गई है। ऊर्जा विभाग का कहना है कि शहरों में घरों में कूलर, ऐसी इस्तेमाल करने के कारण डिमांड 25 प्रतिशत तक बढ़ गई है। पिछले साल इन दोनों डिमांड 10000 मेगावाट थी तो अब बढक़र 14000 मेगावाट तक पहुंच गई। शहरों में सप्लाई के लिए गांवों की बिजली काटी जा रही है।
सूखे से निपटने के लिए कर्ज में डूबी सरकार और ज्यादा चिंता में डूब गई है। इधर चुनाव भी सिर पर हैं। बिजली और पानी की जरूरतें पूरी करना फिलहाल आसान नहीं दिखता। जगह-जगह पूजा पाठ शुरू हो गए हैं। लोग टोटके भी कर रहे हैं। किसी को सिर मुंडा कर गधे पर बैठाकर घुमाया जा रहा है, तो कहीं हवन-पूजन का सहारा लिया जा रहा है। किसी भी तरीके से इंद्रदेव प्रसन्न हो जाएं और बचे हुए वर्षाकाल में बादलों की छटाएं बिखेर दें, बारिश का कोटा पूरा कर दें।
– संजय सक्सेना

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