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BJP MP: चंबल में बगावत, मालवा में विरोध के उठते सुर.. दिग्गजों की कोशिशें नाकामयाब…?

भोपाल। मध्य प्रदेश में भाजपा का चुनावी खेल बिगड़ता दिख रहा है। चंबल में बगावत के सुर थमने का नाम नहीं ले रहे हैं और मालवा भी हाथ से निकलता दिखने लगा है। मालवा जबकि संघ की कार्यशाला रहा है और मालवा एवं मध्य भारत भाजपा के लिए चुनाव में वरदान साबित होते आए हैं। अब हाल ये है कि प्रदेश में डैमेज कंट्रोल की हर कवायद फेल होती नजर आ रही है।

 बहुत सोच-समझकर बीजेपी ने मध्यप्रदेश के लिए रणनीति फाइनल की थी, लेकिन कुछ पुराने उसूलों से समझौता भी किया था। सीएम शिवराज का चेहरा नहीं बदला लेकिन उन्हें पीछे करके पीएम मोदी के चेहरे को आगे किया। ऐसे क्षत्रपों को मैदान में उतारा जिनसे उम्मीद थी कि वो अपने अपने अंचल में पार्टी की लगाम को कस देंगे, लेकिन हर एक्सपर्ट असंतोष और नाराजगी कम करने में नाकाम ही नजर आ रहा है। बीजेपी के लिए इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात ये है कि दो ही अंचलों में दो बड़े दिग्गज तैनात किए गए हैं। और, उन्हीं दो अंचलों में सबसे ज्यादा गुस्सा फूट रहा है। असंतोष का ताजा मामला बीजेपी के लिए दोहरी चिंता का कारण बन सकता है।

सिंधिया की सहमति को ताक में रखते हुए नरेंद्र तोमर को फिर से चुनाव प्रबंधन की कमान सौंप दी पर तोमर और प्रह्लाद पटेल का आखिरी मौके पर खेल बिगाड़ने वाले कैलाश विजयवर्गीय दोनो ही हर मामले में फेल होते नजर आ रहे हैं। अमित शाह के लगातार दौरों के बाद ऐसा लग रहा था कि अब बीजेपी में हालात ठीक हो रहे हैं, लेकिन एक दिन पहले हुई बड़ी हलचल ने सारे अनुमानों को खारिज कर दिया है। कोलारस से बीजेपी विधायक विरेंद्र रघुवंशी ने अचानक बीजेपी से नाता तोड़ लिया है और बकायदा एक प्रेस कांफ्रेंस कर इस बात का ऐलान भी किया है। बीजेपी विधायक रहे विरेंद्र रघुवंशी ने पत्रकारों से मुखातिब होकर सीधा ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनकी टीम पर हमला बोला, कहा कि बीजेपी में शामिल हुए नए लोग उन्हें काम नहीं करने दे रहे। इससे भी ज्यादा संगीन आरोप भ्रष्टाचार से जुड़े हुए हैं।

विधायक रघुवंशी के आरोप और बिखराव

कोलारस विधायक वीरेंद्र रघुवंशी के आरोप के बाद एक बार फिर पार्टी में नाराज बीजेपी और महाराज बीजेपी की चर्चा गरमा गई है। रघुवंशी शिवपुरी जिले की कोलारस विधानसभा से विधायक रहे। ये जगह ज्योतिरादित्य सिंधिया का संसदीय क्षेत्र रहा है। वहां के विधायक का टिकट वितरण से पहले ही इस तरह पार्टी से तौबा कर लेना जाहिर करता है कि हालात किस कदर चिंताजनक हैं। उस पर कांग्रेस ये दावा भी कर रही है कि रघुवंशी जल्द उनकी पार्टी का हिस्सा बनेंगे। बीजेपी में असंतोष और नाराजगी का अंडर करंट लंबे समय से महसूस किया जा रहा है। ये पहले तब उफान पर आया जब पार्टी के पुराने नेता दीपक जोशी ने अपने पिता कैलाश जोशी की तस्वीर के साथ कांग्रेस का दामन थाम लिया। अब ये अंडर करंट फिर जोर पकड़ रहा है। इस बार हालात पहले से ज्यादा बेकाबू हैं और इस अंडर करंट को भांपने के लिए तैनात बड़े बड़े एक्सपर्ट बेबस नजर आ रहे हैं। दीपक जोशी का जाना पूरे प्रदेश के नेताओं के लिए बड़ा मैसेज था। जिसके बाद स्थितियां बदलने के लिए बड़े-बड़े नेताओं की टीम बनीं। खुद अमित शाह ने टीम के मास्टरमाइंड्स को जिम्मेदारियां भी सौंपी, लेकिन नतीजा सिफर ही नजर आ रहा है। क्योंकि जोशी के बाद रघुवंशी जिन आरोपों के साथ पार्टी छोड़ गए हैं वो आरोप कांग्रेस की रणनीति को और ताकतवर बनाएंगे। इतना ही नहीं बीजेपी के कुछ और  विधायकों की पार्टी छोड़ने की अटकलें भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। आधा दर्जन एमएलए छोड़ सकते हैं बीजेपी, ऐसी चर्चा है। इनमें नारायण त्रिपाठी, शरद कौल, राजेश प्रजापति और संदीप जायसवाल का नाम सामने आ रहा है, इन खबरों में कितना दम है ये तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन पार्टी में भगदड़ की इन खबरों से बीजेपी कार्यकर्ताओं को मॉरल तो डाउन हो ही जायेगा।

मालवांचल की बात करें तो हालात यहां भी बीजेपी के खराब होते दिख रहे हैं। कैलाश विजयवर्गीय का गढ़ कहा जाने वाला इंदौर भी खदबदा रहा है और विरोध प्रदर्शन इंतेहा पार कर रहा है। इंदौर चार में मालिनी गौड़ या उनके बेटे को टिकट देने का विरोध जोरों पर है। पीएम नरेंद्र मोदी के परिवारवाद की खिलाफत वाले क्राइटेरिया की दुहाई देते हुए विरोधी धड़ा कैलाश विजयवर्गीय से मिलने पहुंचा और नाराजगी जाहिर की। इस मुद्दे पर विरोधी तोमर से भी मुलाकात कर चुके हैं। विधानसभा पांच में तो विजयवर्गीय के करीबी महेंद्र हार्डिया के खिलाफ ही पार्टी के लोगों का विद्रोह बुलंद है, वे खून से चिट्ठियां लिखकर संगठन तक पहुंचा रहे हैं। असंतोष और नाराजगी का ये ज्वर खासतौर से उन सीटों पर दिख रहा है जहां सिंधिया समर्थक टिकट के प्रबल दावेदार हैं या बीजेपी के ही नेता हैं, लेकिन अब कार्यकर्ताओं की सुनना बंद कर चुके हैं। कांग्रेस भी बीजेपी की नाराजगी वाली ऐसी हर सीट पर पैनी नजर जमा कर बैठी है। 

चुनाव प्रभारी बेअसर

 अमित शाह ने मध्य प्रदेश पर अपना शिकंजा कसने के लिए अपने खास भूपेंद्र यादव और अश्विन वैष्णव को यहां तैनात कर दिया। लेकिन ये दोनों ही चेहरा दिखाने तक सिमट गए लगते हैं। सीएम शिवराज एकला चलो की रणनीति पर चलते दिख रहे हैं। टिकटों के पहले चरण में शिवराज ही भारी रहे, इसका भी विपरीत असर पड़ा है। सीएम से नाराजगी खुल कर सामने आ रही है। अफसरशाही के आगे बीजेपी घुटने टेके दिखती है और नेता कार्यकर्ता बेबस। देखना होगा बीजेपी आगे क्या रणनीति अपनाती है? असंतोष के स्वर ज्वार भाटे का रूप लेकर तूफान लाते हैं या थम पाएंगे?  कुछ भी संभव है। 

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