Editorial
मध्य प्रदेश का आर्थिक सर्वेक्षण.. विकसित राज्य, लेकिन शिक्षा में पिछड़ते हम

मध्यप्रदेश को हम विकसित राज्यों की श्रेणी में ले तो आए हैं, लेकिन यह कितना कागजों पर है और कितना यथार्थ में, यह तो मैदान में ही जाकर पता चलता है। सर्वेक्षण चूंकि सरकारी होता है, इसलिए इसमें आंकड़ों में फेरबदल करने या बिना सर्वे किए ही आंकड़े भरने की आशंका भी काफी रहती है, ऐसा होता भी है। इसके बावजूद प्रदेश का आर्थिक सर्वेक्षण हमें चिंता की ओर ले जाता है। आर्थिक मंदी से तो हम उबर रहे हैं, लेकिन प्रदेश पर बढ़ता कर्ज हमारी परेशानी बढ़ा रहा है।
विधानसभा में बजट सत्र के दूसरे दिन आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया गया। यह सर्वेक्षण एक तरफ यह संकेत दे रहा है कि प्रदेश कोरोना काल की आर्थिक मंदी से उबर रहा है, लेकिन दूसरी ओर रोजगार और शिक्षा के क्षेत्र में हम आज भी पिछड़े नजर आ रहे हैं। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार साल 2019-20 से 2022-23 तक टैक्स कलेक्शन में 12.79 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2023-24 के लिए रेवेन्यू सरप्लस 413 करोड़ रहने का अनुमान है। वहीं जीएसडीपी भी पिछले साल की तुलना में 1.16 लाख करोड़ बढ़ी है।
प्रदेश का जीएसडीपी साल 2023-24 में 12,46,471 करोड़ था जो अब बढक़र 13,63,327 करोड़ होने का अनुमान है। इस तरह प्रचलित भावों के हिसाब से ये बढ़त लगभग 9.37 प्रतिशत है, हालांकि पिछली बार ये बढ़त लगभग 16.43 प्रतिशत थी। स्थिर कीमतों के हिसाब से जीएसडीपी 6,60,363 करोड़ रुपए थी, जो पिछले वर्ष के 6,22,908 करोड़ रुपए से ज्यादा है। यह लगभग 6.01 प्रतिशत की वृद्धि है।
प्रति व्यक्ति आय की बात करें तो ये 2011-12 में 38,497 रुपए थी, ये अब बढक़र साल 2023-24 में 1,42,565 रुपए हो गयी है। यानी लोगों की आमदनी में लगभग चार गुना बढ़ोत्तरी हुई है। पिछले साल से तुलना करें तो ये आमदनी मामूली तौर पर ही बढ़ी है। 2022-23 में प्रति व्यक्ति आय 1,40,583 थी। इसमें खास बात यह है कि पूरे देश और दुनिया की तरह हमारे राज्य में भी आर्थिक संतुलन बड़ी समस्या है। यानि औसत आय ही बढ़ी है, लेकिन बीपीएल की संख्या में कोई खास बदलाव नहीं दिख रहा है।
यह फिर भी राहत की बात हो सकती है, लेकिन आर्थिक सर्वे में कई ऐसे तथ्य भी आए हैं, जो राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए परेशानी का सबब दिख रहे हैं। साल 2023-24 में रोजगार कार्यालयों में 3.34 लाख नए बेरोजगार जुड़े हैं। बेरोजगारों की संख्या बढक़र 33.13 लाख हो चुकी है। राज्य का राजकोषीय घाटा साल 2023-24 में 4.02 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो कि साल 2020-21 (5.44 ) के बाद सबसे अधिक है। हालांकि ये अनुमानित 4.18 प्रतिशत के लक्ष्य से कुछ कम रहने का अनुमान है। 2022 -23 में राजकोषीय घाटा 47,339 करोड़ था जो अब बढक़र 55,709 करोड़ हो गया है। इस साल प्रारंभिक शिक्षा पर उपलब्ध 4093 करोड़ में से सिर्फ 4028 करोड़ खर्च हो सके।
शिक्षकों के प्रशिक्षण की बात करें तो इस पर उपलब्ध 67 करोड़ में से सिर्फ 25 करोड़ ही 2023-24 में खर्च किये जा सके। सबसे चिंताजनक बात यह सामने आई है कि 2021-22 में पांचवीं तक बच्चों के स्कूल छोडऩे की दर 3.08 थी, जो 2022-23 में बढक़र 4.50 प्रतिशत हो गई। लड़कियों के स्कूल छोडऩे की दर 2.91 प्रतिशत से बढक़र 4.88 प्रतिशत हो गई है। 2023 -24 में इंजीनियरिंग, आर्किटेक्ट और एमसीए कॉलेजों में 2.14 लाख सीटें उपलब्ध थीं पर ऑनलाइन प्रक्रिया में कुल 1.49 लाख एडमिशन ही हुए। यानि निचले स्तर पर भी बच्चे स्कूल अधिक छोड़ रहे हैं, जबकि हम शत प्रतिशत शिक्षा की बात कर रहे हैं और स्कूल चलो अभियान भी लगातार चलाए जा रहे हैं।
गेहूं और धान दोनों का उपार्जन इस बार कम गेहूं का उपार्जन पिछले साल 71 लाख मीट्रिक टन हुआ था, लेकिन इस बार मात्र 48.39 लाख मीट्रिक टन ही हुआ है। धान का उपार्जन भी इसी अवधि में 46 लाख मीट्रिक टन से घटकर 42 लाख मीट्रिक टन हो गया है। गेहूं का रकबा इस साल 2022-23 की तुलना में 5.84 प्रतिशत कम हो गया है। 9781 हजार हेक्टेयर से क्षेत्र घटकर 9210 हजार हेक्टेयर रह गया। इसी तरह गेहूं का उत्पादन भी जो पिछले साल 34,977 हजार मीट्रिक टन था, अब वो घटकर 32,972 हजार मीट्रिक टन रह गया। हालांकि प्रदेश में फसलों के कुल उत्पादन में 0.2 प्रतिशत वृद्धि हुई है। फसलों का रकबा कम होता जा रहा है, यह भी ङ्क्षचता की बात है।
कुल मिलाकर प्रदेश का आर्थिक सर्वेक्षण हमारी ङ्क्षचताओं को दूर करने के बजाय बढ़ाता ही दिख रहा है। प्रदेश की आर्थिक स्थिति में यदि सुधार हो रहा है, तो बेरोजगारी भी कम होना चाहिए। इधर हम शिक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन न केवल बच्चे पढ़ाई छोड़ रहे हैं, अपितु तकनीकी से लेकर एमबीए तक वाले कालेजों की हालत खराब होती जा रही है। और तो और बेरोजगार डाक्टर और इंजीनियरों की संख्या भी अच्छी खासी है। यानि उच्च शिक्षा और तकनीकी डिग्री पाने वाले भी रोजगार के लिए इंतजार कर रहे हैं।
बजट तो आज आ ही गया है, लेकिन भविष्य के लिए हमें अपनी योजनाओं में क्या परिवर्तन करना चाहिए, इस पर भी विचार करना होगा। स्कूली बच्चे पढ़ाई न छोड़ें, इस पर ज्यादा गौर करना होगा। आर्थिक सर्वेक्षण को आंकड़ों का पोथन्ना समझ कर एक तरफ पटकने और केवल सकारात्मक उपलब्धियां ही देखने के बजाय हम इसमें कमजोरियां देखें और उन्हें दूर करने का प्रयास करें।
-संजय सक्सेना