Editorial
राहुल गांधी… जिम्मेदारी बहुत बड़ी है… महत्वपूर्ण भी…

देश को दस साल बाद राहुल गांधी के रूप में विपक्ष का नेता मिला है, जो संसदीय राजनीति के लिए एक अच्छी खबर और लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत के रूप में मानी जा रही है। राहुल को संसद में विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता भी दे दी गई है, परंतु विपक्ष की नुमाइंदगी का मतलब यह नहीं कि वह हर मामले में सत्ता पक्ष के खिलाफ हो, उनेक ऊपर संसद में समन्वय बनाने की जवाबदेही भी आ गई है। राहुल ने संदेश भी दे दिया है कि वह हमेशा से जनता के साथ हैं और रहेंगे, साथ ही उसकी ओर से मुद्दे भी उठाते रहेंगे।
असल में लोकसभा चुनाव परिणामों के साथ ही कांग्रेस के भीतर से मांग उठने लगी थी कि राहुल को नेता प्रतिपक्ष का पद संभालना चाहिए। पार्टी अध्यक्ष पद छोडऩे के बाद से राहुल के पास कांग्रेस की कोई जिम्मेदारी नहीं थी। सदन के भीतर पहली बार वह कोई पद संभालने जा रहे हैं। ऐसे में राहुल के सामने चुनौती होगी कि वह पूरे विपक्ष को साथ लेकर चलते हुए रचनात्मक विरोध की भूमिका को किस तरह आकार देते हैं।
देखा जाए तो नेता प्रतिपक्ष संवैधानिक पद है और वह कई प्रमुख समितियों और महत्वपूर्ण नियुक्तियों में सहभागी होता है। जाहिर है कि पिछले 10 बरसों से यह पद खाली होने के चलते संसद ने काफी कुछ खोया है और अब उसकी भूमिका फिर से होगी। लेकिन, यह पद इन समितियों और नियुक्तियों तक ही सीमित नहीं है। नेता प्रतिपक्ष को शैडो पीएम तक कहा जाता है। वह सरकार के मुखिया पीएम की परछाई की तरह होता है, उसके हर काम पर नजर रखने वाला। सो अब राहुल को और अधिक सजगता की जरूरत होगी।
राजनेताओं से उम्मीद की जाती है कि एक बार जनादेश आने के बाद वे चुनावी दौर की कड़वाहट को भुलाते हुए जनता के हित में मिलकर काम करेंगे। इस बार भी चुनाव में अपनी-अपनी पार्टियों के प्रचार की अगुआई करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी ने एक-दूसरे पर खूब हमले बोले हैं। अब उन बातों को पीछे छोड़ते हुए उन्हें बेहतर तालमेल वाले कामकाजी रिश्ते कायम करने का अवसर है। कई मामले होते हैं जहां सरकार और विपक्ष की सहमति जरूरी होती है। बेहतर होगा कि उन स्थितियों में राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर जनहित में फैसला लिया जाए।
राहुल गांधी को भले ही चुनाव के पहले घोषित तौर पर विपक्षी गठबंधन इंडिया का नेता नहीं चुना गया था, लेकिन इसमें किसी को शक नहीं कि विपक्ष का असल चेहरा वही थे। भाजपा, खासकर पीएम मोदी सहित सभी प्रमुख नेताओं के निशाने पर सबसे ज्यादा राहुल गांधी ही रहे। चुनाव के दौरान विपक्ष के सारे दलों को एकजुट रखने के लिए उन्होंने भरपूर प्रयास किए और उसकी सराहना भी हुई। चुनाव परिणाम पर भी उसका असर दिखा। लेकिन नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गांधी केवल कांग्रेस ही नहीं, उन सभी दलों का प्रतिनिधित्व करेंगे, जो इन चुनावों में सरकार के खिलाफ उतरे थे। उनके सामने न केवल सदन में विपक्षी दलों की भूमिका को अधिकाधिक प्रभावी बनाने की चुनौती होगी बल्कि इस प्रभाव का सही दिशा में और उपयुक्त लक्ष्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल सुनिश्चित करने की भी चुनौती है।
राहुल ने संसद में नेता प्रतिपक्ष के रूप में मान्यता मिलने के बाद ही अपने भाषण में साफ कर दिया कि वह संसद में जनता के प्रतिनिधि हैं और जनहित के मुद्दे लगातार उठाते रहेंगे। यही नहीं, वीडियो जारी कर विपक्ष के साथियों के धन्यवाद दिया और कहा, देश की जनता, कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और इंडिया गठबंधन के सहयोगियों का मुझ पर भरोसा जताने के लिए दिल से धन्यवाद। विपक्ष का नेता सिर्फ एक पद नहीं है – यह आपकी आवाज बन कर आपके हितों और अधिकारों की लड़ाई लडऩे की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। राहुल गांधी ने कहा, हमारा संविधान गरीबों, वंचितों, अल्पसंख्यकों, किसानों, मजदूरों का सबसे बड़ा हथियार है और हम उस पर किए गए हर हमले का पूरी ताकत से जवाब देकर उसकी रक्षा करेंगे। मैं आपका हूं और आपके लिए ही हूं।
संसद में विपक्ष के संविधान के मुद्दे जवाब देते हुए सत्तापक्ष ने आपातकाल के मुद्दे पर कांग्रेस पर जबर्दस्त हमला किया और पूरे देश में आपातकाल विराधी दिवस भी मनाया, लेकिन अब जनता संसद को एक नये रूप में देखना चाहती है। नया संसद भवन बन गया है, तो उसमें कुछ नया होना भी चाहिए। संसद में मुद्दों पर हंगामे तो होते रहते हैं, अब उम्मीद ये की जा रही है कि जब विपक्ष भी सशक्त है तो जनता से जुड़े मुद्दों पर सार्थक बहस भी होगी। देश में बढ़ते कर्ज से लेकर फ्रीबीज योजनाओं पर फिर से विचार करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। चुनावों के दौरान जिन मुद्दों का जिक्र हुआ, उन्हें संसद में उठाने का अवसर विपक्ष तो तलाशेगा ही, सत्तापक्ष की भी इसमें रचनात्मक भूमिका की जरूरत होगी।
नेता प्रतिपक्ष के साथ ही मजबूत विपक्ष के सत्तापक्ष से कैसे संबंध होंगे, यह तो भविष्य बताएगा, लेकिन लोकतांत्रिक परंपराओं को सहेजने की जिम्मेदारी दोनों ही पक्षों पर होगी। राहुल गांधी कितनी परिपक्वता दिखाते हैं और सत्तापक्ष कितना रिस्पांस देता है, यह देखना होगा। जनता खुद इसका विश्लेषण करेगी, समीक्षा करेगी। यह होना भी चाहिए।
– संजय सक्सेना