Supreme court: ईडी की ताकत पर सुप्रीम कोर्ट ने कस दिया शिकंजा…?

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसले में कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में ईडी की शिकायत पर विशेष कोर्ट के संज्ञान लेने के बाद जांच एजेंसी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि यदि ऐसे मामलों में आगे जांच के लिए आरोपी की हिरासत जरूरी है तो ईडी को इसके लिए विशेष अदालत में आवेदन देना होगा। पीठ में उज्जल भुइयां भी शामिल थे। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘आरोपी का पक्ष सुनने के बाद विशेष अदालत को संक्षेप में कारण बताते हुए आवेदन पर अनिवार्य रूप से फैसला सुनाना होगा। सुनवाई के बाद अदालत हिरासत की अनुमति तभी देगी जब वह इस बात से संतुष्ट हो कि हिरासत में रखकर पूछताछ जरूरी है।’

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायत में जिस व्यक्ति को आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया है उसे गिरफ्तार करने के लिए ईडी को मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए), 2002 की धारा 19 की शर्तों को पूरा करना होगा।

धारा 45 के तहत जमानत के लिए दोहरी शर्त की अनिवार्यता
इसके अलावा, जिस व्यक्ति को मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया है, लेकिन वह मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत जारी समन पर विशेष अदालत के समक्ष उपस्थित होता है, उसकी जमानत के लिए कड़ी दोहरी शर्त की अनिवार्यता नहीं होगी। पीएमएलए की धारा 45 के तहत जमानत पाने के लिए दोहरी शर्त की अनिवार्यता है। इसमें पहली शर्त यह है कि अदालत इस बात को लेकर आश्वस्त हो कि आरोपी दोषी नहीं है। दूसरी शर्त यह है कि अदालत को यह भरोसा हो कि आरोपी जमानत पर कोई अपराध नहीं करेगा। न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन और एस.के. कौल की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने जमानत के लिए दो अतिरिक्त शर्त जोड़ने वाली पीएमएलए की धारा 45(1) को मनमाना बताते हुए नवंबर 2017 में रद्द कर दिया था।

क्या है मामला?
हालांकि, विजय मदनलाल चौधरी मामले में न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सी.टी. रविकुमार की तीन जजों की खंडपीठ ने जुलाई 2022 में उस फैसले के पलटते हुए पीएमएलए, 2002 में वर्ष 2019 के संशोधनों को उचित ठहराया था। इसके बाद मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में जमानत पाना लगभग असंभव हो गया था क्योंकि आरोपी को अपराधी साबित करने की जिम्मेदारी ईडी पर होने की बजाय खुद को निरपराध साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी पर डाल दी गई थी।

भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली खंडपीठ दो प्रमुख कारणों से पीएमएलए के प्रावधानों की समीक्षा के लिए सहमत हुई थी – पहला कि इसमें आरोपी को गिरफ्तारी के समय ईसीआईआर (आम मामलों में एफआईआर के समान) की कॉपी नहीं दी जाती, और दूसरा कि इसमें आरोप साबित होने तक निरपराध मानने के सिद्धांत से समझौता किया गया है। पिछले साल नवंबर में न्यायमूर्ति एस.के. कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने उनकी सेवानिवृत्ति से कुछ दिन पहले ईडी की शक्तियों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखने का आदेश दिया था ताकि वह सुनवाई के लिए नई खंडपीठ को जिम्मेदारी सौंप सकें।

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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