क्या वाकई कर्नाटक चुनाव आगामी आम चुनाव का सेमीफाइनल है? अभी मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में लोकसभा के पहले विधानसभा होने हैं, परंतु कर्नाटक विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस और भाजपा के बीच हाई वोल्टेज घमासान देखकर ऐसा लग रहा है, कि यह सिर्फ इस राज्य की सत्ता हासिल करने को लेकर नहीं है। अपितु आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए इस चुनाव में दोनों दल अपने-अपने स्तर पर कुछ प्रयोग कर रहे हैं, यदि वे सफल होते हैं तो आम चुनाव में सफल होने वाली पार्टी अपने प्रयोग दोहरा सकती है।
कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों पर वोटिंग 10 मई को है और परिणाम 13 मई को आएंगे। कांग्रेस ने इस बार चुनाव के बीच कर्नाटक में नया सामाजिक प्रयोग किया है। चुनाव के दौरान ही पार्टी ने जाति जनगणना की मांग के अलावा आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से अधिक करने का वादा किया। राज्य के पूर्व सीएम और पार्टी के सीनियर नेता सिद्धारमैया अब हर सभा में आरक्षण की सीमा को 75 प्रतिशत तक करने की बात दोहरा रहे हैं। राहुल गांधी भी राज्य में हो रही सभाओं में आक्रामक रूप से ओबीसी कार्ड खेल रहे हैं। दिलचस्प बात है कि मोदी सरनेम पर राहुल की टिप्पणी 2019 में कर्नाटक में ही सामने आई थी, जिसके चलते उन पर ओबीसी के अपमान का आरोप लगाया जा रहा है।
कांग्रेस के इस सामाजिक प्रयोग के पीछे उसकी अपनी राजनीतिक गणना है। राज्य में जातियों के समीकरण बहुत मायने रखते हैं और इसमें सभी का पहले से ही अपना-अपना हिसाब-किताब रहा है। जहां तक इस चुनाव की बात है, वोक्कालिगा समुदाय इस बार जेडीएस के साथ दिख रहा है। इसमें बीजेपी और कांग्रेस को बहुत छोटा हिस्सा मिलने की संभावना है। कांग्रेस को लगता है कि मुस्लिम और ईसाई वोट उसे एकमुश्त मिल सकता है। वहीं लिंगायत वोट में भी कांग्रेस सेंध लगाने की कोशिश कर रही है, इसमें भाजपा से आए जगदीश शेट्टार को लाभ उसे मिल सकता है। और इसमें जो भी वोट आएगा- वह बोनस ही होगा क्योंकि लिंगायत समुदाय के लोग बड़ी संख्या में भाजपा को वोट करते रहे हैं। ऐसे में पार्टी को वोट का बड़ा हिस्सा ओबीसी से ही मिलने की उम्मीद है। सिद्धारमैया खुद ओबीसी नेता हैं। इसके अलावा ‘जिसकी जितनी आबादी, उसको उतना हक’ के दांव से कांग्रेस दलितों को भी अपने पक्ष में करने में लगी हुई है।
कांग्रेस को लगता है कि अगर इस चुनाव में यह दांव सफल रहा तो आम चुनाव तक इसी रणनीति के साथ मैदान में उतरा जाएगा। हाल के सालों में पूरे देश में बीजेपी की बड़ी सियासी जीत के पीछे ओबीसी वोट का बड़ा योगदान रहा है। नरेंद्र मोदी खुद को ओबीसी नेता के रूप में जनता के बीच पेश करते हैं। मध्यप्रदेश में तो उसने पिछले बीस साल से ओबीसी को ही सीएम बनाया है। इस प्रयोग से पार्टी को इसकी काट भी मिलने की उम्मीद है। हालांकि इसके अपने जोखिम भी हैं। पार्टी जितने आक्रामक रूप से ओबीसी राजनीति करेगी, आरक्षण की सीमा को बढ़ाने की मांग करेगी, सवर्ण वोट पार्टी से छिटकते जाएंगे। वैसे कांग्रेस जानती है कि उसे सवर्ण वोट कम ही मिलते हैं।
दूसरी ओर भाजपा ने भी इस बार कर्नाटक विधानसभा चुनाव में एक खास राजनीतिक प्रयोग किया है। यह प्रयोग गुजरात मॉडल की तर्ज पर है। इसके तहत पार्टी चुनाव के दौरान ही पुराने नेतृत्व के मुकाबले नए नेतृत्व को सामने करती है। कुछ समय पहले पार्टी ने इसी मंशा से येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाकर एसआर बोम्मई को वहां का मुख्यमंत्री बनाया था। पार्टी ने टिकट वितरण में भी यही ट्रेंड कायम रखा। पूर्व सीएम और छह बार के विधायक जगदीश शेट्टार तक को पार्टी ने चुनाव में टिकट नहीं दिया। इस कारण शेट्टार बीजेपी छोडक़र कांग्रेस में शामिल हो गए। इसी तरह पार्टी ने दूसरे कुछ दिग्गजों को टिकट दिए। पार्टी ने संदेश दिया कि राज्य में वह नए नेतृत्व और नई पीढ़ी के साथ चुनाव में हैं। इसके पीछे बीजेपी की दोहरी सोच है। पहली, इससे वह एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को काउंटर कर लेगी। और दूसरी, पुराने और उम्रदराज हो रहे नेतृत्व के रहते हुए नया नेतृत्व खड़ा कर लेगी, ताकि आने वाले दिनों में भी अपनी स्थिति मजबूत बनाए रख सके।
हालांकि दक्षिण की राजनीति इस लिहाज से थोड़ी अलग है और हर नेता के पास अपना वोट बैंक होता है। वे जिधर भी रुख करते हैं, वह वोट बैंक उधर ही जाता है। ऐसे में नए नेतृत्व के प्रयोग के अपने जोखिम हैं। लेकिन पार्टी नेतृत्व को लगता है कि इस प्रयोग में फायदा अधिक और नुकसान कम है। अगर कर्नाटक में बीजेपी का यह प्रयोग सफल हो गया तो आने वाले समय में पीढ़ी परिवर्तन की यह प्रक्रिया बीजेपी में और तेजी से देखी जा सकती है। साल के अंत में राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और वहां भी बीजेपी का मुख्य चेहरा बदला जा सकता है। देखना होगा, किसका प्रयोग कितना सफल होता है और राज्यों के आगामी चुनावों के साथ ही लोकसभा चुनाव में किसे कितना लाभ मिलता है?
- संजय सक्सेना
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