संपादकीय....राजस्थान की राजनीति में उठापटक का अंतहीन दौर

लगता है राजस्थान में राजनीतिक उठापटक का दौर खत्म होने वाला नहीं है। कांग्रेस की सरकार है, काबिज हैं अशोक गेहलोत। शह पर शह दे रहे हैं सचिन पायलट। और भाजपा सरकार गिराने की पूरी कोशिश कर रही है। लेकिन दांव किसी का नहीं चल पा रहा। कांग्रेस हाईकमान के लिए भाजपा एक अनबूझ पहेली जैसी बन कर रह गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंच पर गत दिवस हालांकि मोदी और गेहलोत के बीच आरोप-प्रत्यारोप दिखे, लेकिन इसके पहले वाले दौरे में मोदी ने बाकायदा गेहलोत की तारीफ की थी। और इस दौरे के दो दिन पहले ही यानि रविवार को
अशोक गहलोत ने दावा किया कि 2020 में जब उनकी सरकार को गिराने की साजिश हुई, तब पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता वसुंधरा राजे सिंधिया ने उनका साथ दिया था। उनकी मदद की बदौलत ही वह साजिश नाकाम की जा सकी थी। गहलोत के मुताबिक, तब सरकार गिराने के लिए कांग्रेस विधायकों के बीच पैसे भी बांटे गए थे। चूंकि सरकार गिराई नहीं जा सकी, इसलिए उन्होंने अपने विधायकों से कहा कि वे पैसे वापस कर दें, लेकिन ‘जिन्होंने पैसे दिए वे, पता नहीं क्यों वापस ले ही नहीं रहे।’
यानि पायलट द्वारा वसुंधरा के कार्यकाल में हुए घोटालों की जांच की मांग को गेहलोत यूं ही नहीं टाल रहे हें। वसुंधरा के साथ उनका पैक्ट खुद ही उन्होंने उजागर कर दिया। फिर भी, राजनीति तो राजनीति ही है। कह नहीं सकते, यही सही हो। गेहलोत कुछ भी कह सकते हैं और कुछ भी कर सकते हैं। हाईकमान को भी ब्लेकमेल कर ही चुके हैं। वैसे इस पूरे मामले पर गौर करें तो कई गंभीर सवाल उभरते हैं। अव्वल तो गहलोत ने यह बात तो कह दी कि उनकी सरकार गिरने से बचाने में वसुंधरा ने मदद की, लेकिन यह नहीं कहा कि सरकार गिराने की उस कथित साजिश में भूमिका सचिन पायलट की थी, जो उनकी अपनी पार्टी के हैं। दूसरी बात यह कि अगर खुद गहलोत के कहे मुताबिक उनकी अपनी पार्टी के विधायकों ने पैसे स्वीकार किए तो बतौर मुख्यमंत्री उनका दायित्व है कि उन विधायकों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराएं क्योंकि कानूनन रिश्वत देना और लेना दोनों अपराध है।
भाजपा ने ऐसी मांग भी की है। लेकिन इन कानूनी पहलुओं से अलग शुद्ध राजनीतिक नजरिए से देखा जाए तो संसदीय लोकतंत्र में विभिन्न पार्टियों के बीच की रस्साकशी कई बार किस तरह के नाटकीय दृश्य उपस्थित कर देती है, उसका यह एक दिलचस्प उदाहरण है। हालांकि यह भी सही है कि ऐसे मामलों की अंतिम सचाई कभी सामने नहीं आती। इस मामले में भी किसकी बातों में कितनी सचाई है यह पता करना करीब-करीब नामुमकिन है। वसुंधरा राजे ने सीएम गहलोत की बातों को सफेद झूठ कह भी दिया है।
लेकिन यह तो सच है कि जब सचिन पायलट अपने करीबी विधायकों के साथ हरियाणा जाकर बैठ गए थे और कांग्रेस विधायकों में अफरातफरी का माहौल बनने लगा था, तभी कुछ समय में माहौल शांत होने लगा, कांग्रेस के विधायक गहलोत के समर्थन में आने लगे और यह स्पष्ट हो गया कि पायलट गहलोत की सरकार गिराने की स्थिति में नहीं रह गए हैं। उस समय भी मीडिया में सूत्रों के हवाले से ये खबरें आई थीं कि परदे के पीछे गहलोत को वसुंधरा राजे का समर्थन मिल चुका है। उसके बाद यह परसेप्शन बना कि कांग्रेसी विधायकों का एक धड़ा समर्थन वापस ले ले तो भी गहलोत की सरकार गिरने की नौबत आना मुश्किल है क्योंकि दूसरी तरफ से उसकी भरपाई हो सकती है। स्वाभाविक ही उसके बाद कांग्रेस विधायकों में बगावत का जोश ठंडा पड़ गया।
राजनीति में ऐसे दांव-पेच नए नहीं। लेकिन दिलचस्प है कि एक समय जिनकी मदद से सरकार बची, दूसरे समय उन्हीं को एक्सपोज करने में सीएम गहलोत नहीं हिचक रहे और जिन लोगों ने कथित तौर पर मदद की, वे धन्यवाद स्वीकार करने तक में न केवल घबरा रहे हैं बल्कि सराहना का जवाब आक्रामक आरोपों से दे रहे हैं। इसमें कांग्रेस हाईकमान की जरूर भद पिट रही है। वो न तो खुलकर गेहलोत का साथ दे पा रहा है और न ही पायलट का। पायलट भी आरोप लगाते रहते हैं। उन्होंने तो वसुंधरा के कार्यकाल के घोटालों की जांच को लेकर धरना तक दे डाला। लेकिन गेहलोत के कान पर जंू तक नहीं रेंगी।
अब चुनाव की बेला भी आ गई। मध्यप्रदेश के साथ ही नंवबर के आसपास इसी साल राजस्थान में भी चुनाव होना है। भाजपा के साथ बड़ी समस्या यह है कि पूर्व सीएम वसुंधरा को नेतृत्व पसंद नहीं करता, अन्य जिन भी नेताओं को नेतृत्व सौंपा जा रहा है, वे कारगर साबित नहीं हो पा रहे। फिलहाल वहां भाजपा केवल आरोप-प्रत्यारोप तक सिमटी है और कांग्रेस में खुलकर जंग चल रही है। देखना होगा कि चुनाव का समय आते-आते क्या परिवर्तन आता है और यह खेल किस चरम पर पहुंचता है?

0/Post a Comment/Comments