कर्नाटक का संदेश..धर्म और ध्रुवीकरण नहीं मुद्दों की राजनीति चलेगी..


संजय सक्सेना
आंजनेय, बूटी के बदले पूरा सुमेर पर्वत ही उठाकर ले आए थे। सुषेन वैद्य ने उसमें संजीवनी बूटी खोजी और लक्ष्मण को जीवनदान मिल गया। यह तो त्रेता युग की बात है। कलियुग में मामला कुछ अलग है। लेकिन आंजनेय अर्थात बजरंग बली को जीवित भगवान माना जाता है। सो कर्नाटक में जब कांग्रेस ने एक प्रयोग किया, तो भाजपा को लगा कि बस श्रीराम के बाद रामभक्त हनुमान उसे मिल गए। और केवल कर्नाटक ही नहीं पूरे देश में एक संगठन को बजरंग बली का संगठन बनाने का प्रयास शुरू कर दिया।
नारा था बजरंग बली, तोड़ दुश्मन की नली। बजरंग बली ने दुश्मन की नली तो तोड़ी, लेकिन उनके दुश्मनों की नहीं, जो नकली भक्त थे। जो बजरंग बली और उनके इष्ट भगवान श्रीराम के नाम पर राजनीति करते हैं। असली भक्त कौन और नकली कौन? हम कौन होते हैं यह तय करने वाले। भगवान को ही तय करने दो। शायद उन्होंने तय कर लिया और तभी कर्नाटक में आखिरी दौर में लिया गया बजरंगबली का सहारा भी भाजपा की नैया पार नहीं लगा पाया। यानि धर्म की आड़ में धु्रवीकरण की राजनीति वहां तो नहीं चल पाई।
ध्रुवीकरण की सियासत फेल
कर्नाटक में एक साल से बीजेपी के नेता हलाला, हिजाब से लेकर अजान तक के मुद्दे उठाते रहे। ऐन चुनाव के समय बजरंगबली की भी एंट्री हो गई लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण की ये कोशिशें बीजेपी के काम नहीं आईं। कांग्रेस ने बजरंग दल को बैन करने का वादा किया तो बीजेपी ने बजरंग दल को सीधे बजरंग बली से जोड़ दिया और पूरा मुद्दा भगवान के अपमान का बना दिया। बीजेपी ने जमकर हिंदुत्व कार्ड खेला लेकिन यह दांव भी काम नहीं आ सका।

  एक बात और, यह भी साफ हो गया है कि ऐन मौके पर जनता से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों से हटकर कुछ और मुद्दों को लेकर चलेंगे तो वह ज्यादा समय तक नहीं चलेगा।  यानि मुख्य मुद्दों से मतदाता को बहुत देर तक भटका कर नहीं रखा जा सकता। यह बात कर्नाटक चुनाव से स्पष्ट हो चुका है। कांग्रेस ने चुनाव की रणनीति सही रखी। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी सहित प्रमुख नेताओं ने शुरुआत से ही किसानों के मुद्दे उठाए। बसवराज बोम्मई की मौजूदा सरकार की कमियों पर फोकस किया। भारतीय जनता पार्टी को दो सीएम बदलने पड़े, इसके पीछे की कहानी भ्रष्टाचार की चासनी के साथ पेश किया। मजबूत लिंगायत महारथी बीएस येदियुरप्पा पर लगे दाग भी भाजपा धो नहीं पाई और कांग्रेस ने इसे जमकर उछाला। वहीं ग्रांड ओल्ड पार्टी के बुजुर्ग अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने तेज तर्रार डीके शिवकुमार, प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के साथ मिलकर जो पांच वादे किए उसका प्रभाव कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों पर साफ दिख रहा है। एक नजर अखिलेश यादव के ताजा ट्वीट पर डालते हैं- कर्नाटक का संदेश ये है कि भाजपा की नकारात्मक, सांप्रदायिक, भ्रष्टाचारी, अमीरोन्मुखी, महिला-युवा विरोधी, सामाजिक-बँटवारे, झूठे प्रचारवाली, व्यक्तिवादी राजनीति का ‘अंतकाल’ शुरू हो गया है।
 फिर भी यह सवाल तो है, राजनीति में धर्म का इस्तेमाल क्या जीत की गारंटी है? और व्यक्तिवादी राजनीति की एक्सपायरी डेट होती है या नहीं? अब तक के रुझानों में कर्नाटक में भाजपा के हारने का मुख्य कारण है भ्रष्टाचार। राहुल गांधी के लगभग हर दूसरे भाषण में चालीस प्रतिशत कमीशन वाली सरकार का उल्लेख इसका प्रमाण कहा जा सकता है। भाजपा की पहचान उस नाते रही है कि आप एक गुड गवर्नेंस देते हैं, लेकिन यहां जिस तरह से सीएम बदले और जिस तरह से ऑडियो टेप आए, सुसाइड तक के प्रयास हुए इस सरकार में और इस सरकार से जुड़े लोगों और उनके रिश्तेदारों के। उसके बाद उसे ढकने का प्रयास किया गया। इन मुद्दों को कांग्रेस ने जमकर उठाया और मतदाता का रुख एक बार फिर उससे जुड़े मुद्दों की तरफ करने में सफलता हासिल की। देखना होगा कि कर्नाटक का यह प्रयोग और मुद्दों की तरफ मतदाता की वापसी का सिलसिला आने वाले राज्यों के साथ ही आम चुनावों तक रह पाता है या नहीं।
ओल्ड पेंशन स्कीम 
जिस प्रकार से हिमाचल प्रदेश के सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू कर्नाटक चुनाव प्रचार में मौजूद रहे। जिस तरह से छत्तीसगढ़ के मजबूत सीएम भूपेश बघेल चुनाव प्रचार में गए। उससे लगता है कि बीजेपी की लाभार्थी को टारगेट करने की जो रणनीति रही है, उसमें सेंध लगाने में कांग्रेस सफल रही। जो ओल्ड पेंशन स्कीम है, वह बहुत बड़ा फैक्टर रहा है, हाल के सभी चुनावों में। दूसरा यूथ और बेरोजगारों के लिए जो कांग्रेस ने वादे किये। यूं तो इस तरह के वादे बीजेपी और दूसरी पार्टियां भी करती हैं। लेकिन बीजेपी ने जो ऑडियोलॉजिकल ऐज लेने की जो कोशिश की, खुद पीएम मोदी कई मंचों से कह चुके हैं कि ये जो कांग्रेस की पॉलिटिक्स है कि हम 3000 रुपये देंगे, 2000 रुपये देंगे यह ठीक नहीं है। कई साल पहले पीएम ने लोकसभा में मनरेगा को कांग्रेस की नाकामी का स्मारक बताया था। उनको लगता है कि जो वेलफेयर स्कीम बीजेपी सरकार ला रही है चाहे वह उज्जवला योजना हो, चाहे वह गरीब कल्याण अन्न योजना हो वो ठीक है लेकिन कांग्रेस के वादे खोखले हैं। इसमें दो राय नहीं है कि मोदी सरकार की स्कीम से कोरोना काल में गरीबों को मदद मिली है। लेकिन जब यह दांव, यही रणनीति कांग्रेस पार्टी अपनाई, चाहे वह हिमाचल में हो, या कर्नाटक में हो उसपर उन्होंने पलटवार किया।हालांकि कांग्रेस का यह फॉर्म्यूला हर जगह चला भी नहीं है, जैसे उत्तर प्रदेश में भी नहीं चला। हालांकि यूपी में अलग कारण था।
जेडीएस की कमजोरी
दूसरा यह है कि जेडीएस थोड़ी बहुत कमजोर होती दिखाई दे रही है, उसका फायदा कांग्रेस को मिलता दिख रहा है। खासकर ओल्ड मैसूर वाले इलाके में, जहां वोक्कालिगा आमतौरपर एचडी कुमारस्वामी और उनके पिताजी एचडी को वोट करते रहे हैं। लेकिन इस इलाके में कांग्रेस ने सेंध लगाई है। ये दिलचस्प पैटर्न है कि जैसे पंजाब चुनाव में दो चुनावों में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को अनउपयोगी साबित कर दिया। इसी तरह से जेडीएस के मजबूत होल्ड वाले इलाके ओल्ड मैसूर इलाके को बीजेपी नहीं भर पाई। वहां अपना फायदा नहीं उठा पाई। यही वजह से कांग्रेस वहां मजबूत होती दिखाई दे रही है। वहीं कोस्टल कर्नाटक में बीजेपी प्रदर्शन बहुत शानदार है। बेगलुरु में भी ठीक ठाक प्रदर्शन है। लेकिन इसके बाद बावजूद बीजेपी हार रही है तो वहां जो रिजनल पॉलिटिक्स है उसका प्रभाव दिख रही है। ओवरऑल हम देखें तो कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया है।
भ्रष्टाचार का मुद्दा अहम रहा
बीजेपी की हार के पीछे अहम वजह भ्रष्टाचार का मुद्दा भी रहा। कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ शुरू से ही '40 फीसदी पे-सीएम करप्शन' का एजेंडा सेट किया और ये धीरे-धीरे बड़ा मुद्दा बन गया। करप्शन के मुद्दे पर ही एस.ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा तो एक बीजेपी विधायक को जेल भी जाना पड़ा। स्टेट कॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने पीएम तक से शिकायत कर डाली थी। बीजेपी के लिए यह मुद्दा चुनाव में भी गले की फांस बना रहा और पार्टी इसकी काट नहीं खोज सकी।
कर्नाटक के राजनीतिक समीकरण भी बीजेपी साधकर नहीं रख सकी। बीजेपी न ही अपने कोर वोट बैंक लिंगायत समुदाय को अपने साथ जोड़े रख पाई और ना ही दलित, आदिवासी, ओबीसी और वोक्कालिंगा समुदाय का ही दिल जीत सकी। वहीं, कांग्रेस मुस्लिमों से लेकर दलित और ओबीसी को मजबूती से जोड़े रखने के साथ-साथ लिंगायत समुदाय के वोटबैंक में भी सेंधमारी करने में सफल रही है।


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