संपादकीय ....चाचा-भतीजा...कर नाटक... चालू आहे


कर्नाटक में चुनावी नाटक बनाम महाराष्ट्र के सियासी नाटक का दौर जारी है, तो इस बीच राष्ट्रीय राजधानी में पहलवानों की धमक के साथ ही खाप पंचायतों का मोर्चा सत्ताधीशों के चेहरों की शिकन बढ़ाने वाला है। कर्नाटक का चुनावी संग्राम रोचक होता जा रहा है। यहा सत्ता पर काबिज भाजपा के हाल खस्ता होते दिख रहे हैं, तो उधर कांग्रेस खोई जमीन वापस पाने मैदान में उतर चुकी है। दोनों पार्टियों का ध्यान कर्नाटक पर है, सो महाराष्ट्र में चाचा-भतीजे की जुगलबंदी नया गुल खिलाने की पटकथा तैयार करने में जुट गए लगते हैं। सुप्रीम कोर्ट के रुख से ऐसा लग रहा है कि महाराष्ट्र सरकार खतरे में है। और सांसद संजय राउत कह भी रहे हैं कि ‘महाराष्ट्र में शिंदे-फडणवीस सरकार का डेथ वारंट जारी हो चुका है, सिर्फ तारीख का ऐलान होना बाकी है।
सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने पिछले दिनों उद्धव और शिंदे गुटों और राज्यपाल दफ्तर की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस फैसले के साथ ही साफ हो जाएगा कि महाराष्ट्र का सियासी भविष्य क्या होगा? शिंदे गुट के 40 विधायक अगर अयोग्य हो गए तो विधानसभा में 248 सदस्य बचेंगे। यानी बहुमत का आंकड़ा 125 हो जाएगा। ऐसे में एनडीए के पास सिर्फ 122 विधायक ही रह जाएंगे। यानी भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में नहीं रहेगी।
इसे भांपते हुए ही शायद पहले चाचा ने विपक्षी गठबंधन से दूरियां बढ़ाने के संकेत दिए, तो भतीजे ने सीधे-सीधे मुख्यमंत्री पद की दावेदारी कर डाली। यह दावेदारी यूं ही तो नहीं कही जा सकती। इसके चार मायने लगाए जा रहे हैं। पहला, वर्तमान एकनाथ शिंदे सरकार पर मंडराते अस्थिरता के बादल। दूसरा, संकट को अपने पक्ष में भुनाने की महत्वाकांक्षा। तीसरा, ईडी-सीबीआई के छापों से बढ़ता दबाव और चौथा, मोदी-बीजेपी का समर्थन करने की राजनीतिक मजबूरी।
शिंदे और बीजेपी की यही चिंता है। इसलिए वो भी विपक्ष में तोडफ़ोड़ के दांव चल रहे हैं। उन्हें पता है कि इसमें एनसीपी के अजित पवार सॉफ्ट टारगेट हो सकते हैं। लेकिन अजित भी कच्चे गुरु के चेले नहीं हैं। मुख्यमंत्री पद के रूप में वह इसकी कीमत वसूलना चाहते हैं। सो कहीं से पेशकश हो, उन्होंने पांसा फेक दिया। अजित दादा जनता की अदालत में आए और मुख्यमंत्री पद का अपना दावा ठोक दिया। साथ-साथ यह भी कह दिया कि जीते-जी एनसीपी नहीं छोडूंगा। इसमें भी चाचा शरद पवार की बल्ले-बल्ले हो गई। न सांप मरा, न लाठी टूटी। न एनसीपी टूटी, न अजित दादा का कद बढ़ा। खुदा न खास्ता शिंदे-फडणवीस सरकार गिर गई तो शरद पवार कोई राजनीतिक चमत्कार भी करवा सकते हैं। उद्धव, शिंदे, कांग्रेस को जोडक़र नई सरकार बन सकती है और तब अजित दादा के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता खुल सकता है।
देखा जाए तो राजनीतिक दांव पेच में चाचा-भतीजे एक जैसे हैं। दोनों ने हफ्तेभर के अंदर मीडिया को लंबे इंटरव्यू दिए, और राज्य का राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया। चाचा पवार ने एक चैनल को इंटरव्यू में कह दिया कि अडाणी मामले में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) जांच की जरूरत नहीं है। जब हो-हल्ला हुआ तो पलटकर कहा, ‘एनसीपी जेपीसी को उपयोगी नहीं मानती, लेकिन विपक्ष चाहता है तो हम इस पर दबाव नहीं डालेंगे।’ अब भतीजे अजित दादा ने एक मराठी अखबार को दिए इंटरव्यू में मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोंक दिया। लेकिन बाद में इस पर हो-हल्ला हुआ, तो कह दिया, ‘मुख्यमंत्री पद की आकांक्षा कोई गलत बात नहीं है, लेकिन एनसीपी तोडक़र यह नहीं होगा। मैं जीते-जी एनसीपी में रहूंगा।’ राजनीतिक वार-पलटवार में हो गए न- यथा चाचा तथा भतीजा।
वैसे, भतीजे के खिलाफ सिंचाई घोटाले और महाराष्ट्र सहकारी बैंक से एनसीपी से जुड़े लोगों की चीनी मिलों को अनाप-शनाप लोन मंजूर कराने के आरोप हैं। ईडी ने बैंक मामले में पहला आरोप-पत्र दाखिल किया है। इसमें अजित दादा का नाम नहीं है। लेकिन दूसरा पूरक आरोप-पत्र भी दाखिल हो सकता है। और सबको पता है कि कोई कितना भी भ्रष्ट हो, एक बार भाजपा की गंगा में नहाया कि उसके सारे पाप धुल जाते हैं। वह कीचड़ में कमल की तरह हो ही जाता है, एकदम कंचन।
सो कर्नाटक के चुनावी नाटक और महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे की राजनीति के बीच पहलवानों का नया मोर्चा उत्तर भारत में क्या राजनीतिक परिवर्तन करता है, यह देखना होगा। कर्नाटक और महाराष्ट्र के नतीजे तो जल्द आ जाएंगे, पर पहलवानों के साथ खाप पंचायतों का समर्थन और साथ ही एकदम खट जाट नेता सत्यपाल मलिक के बयान। कुछ और राज्यों के चुनाव के साथ ही आम चुनाव की आहट। शायद अभी उठापटक का यह सिलसलिा और तेज होने वाला है। इंतजार करते हैं।
- संजय सक्सेना
-----

0/Post a Comment/Comments