असल में चीन ने पिछले कुछ सालों से अपनी जनसंख्या पर क़ाबू करने का काम शुरू किया था, जिसका नतीजा यह था कि पिछले साल वहाँ की जनसंख्या बढऩे की बजाय घट गई थी। शायद अपने इस कृत्य पर अब चीन पछता रहा हो। आधिकारिक तौर पर वह यह कह कर मुँह छिपा रहा है कि क्वांटिटी नहीं बल्कि क्वालिटी पॉपुलेशन चाहिए। तो चीन अब हमसे पिछड़ ही गया। और अब हमारे पास कहने को हो गया है कि हम चीन पर भारी हैं।
जनसंख्या केवल भीड़ ही नहीं होती। यदि उसका सही उपयोग हो तो वह उपयोगी साबित हो सकती है। दावा किया जा रहा है कि भारत को जनसंख्या बढऩे का फ़ायदा आने वाले वर्षों में होने वाला है। हमारी जनसंख्या की सबसे सकारात्मक बात यह मानी जा रही है कि कुल जनसंख्या की आधी यानी पचास प्रतिशत की उम्र तो तीस वर्ष से नीचे है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि हमारे जितना युवा देश कोई नहीं है। किसी देश की पचास प्रतिशत से ज़्यादा जनसंख्या युवा होने का मतलब यह है कि उसके पास सबसे बड़ा वर्क फ़ोर्स है।
वर्क फ़ोर्स बड़ा होने से देश का विकास चौगुना गति से होता है। विकास की रफ़्तार जब बढ़ती है तो अर्थ व्यवस्था में सुधार के उपाय जल्द से जल्द कारगर होने लगते हैं। जब अर्थ व्यवस्था तेज़ी से सुधार की दिशा में अग्रसर होती है तो उस देश को कोई महाशक्ति बनने से रोक नहीं सकता।
जब युवाओं की संख्या बहुत बढ़ जाती है तो कौशल विकास भी नए आयाम छूने लगता है। मान सकते हैं कि यह कौशल ही हमें दुनिया का सिरमौर बनाने वाला है। दुनिया में हमारे कौशल की माँग बढ़ेगी और दुनिया कौशल की ख़ातिर हमारी ओर खिंची चली आएगी। हमारा बाज़ार इतना बड़ा है कि दुनिया हमारी ओर ललचाई निगाह से देख रही है। आगे इसमें और भी इज़ाफ़ा होने वाला है। हमारे यहां एक तरफ कौशल विकास पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन दूसरी तरफ कतिपय तत्व युवाओं की शक्ति का दुरुपयोग भी कर रहे हैं। तमाम ऐसे संगठन बनाए जा रहे हैं, जहां युवाओं को जाति, संप्रदाय और धर्म को लेकर संवेदनशील बनाया जा रहा है। यह वर्क फोर्स नहीं, वार फोर्स बन रही है। ऐसी वार फोर्स, जो हमारे ही देश को नुकसान पहुंचाएगी।
युवा शक्ति का राजनीतिक और सामाजिक दुरुपयोग हमारी आवश्यक बुराई है। यह आज से नहीं, लंबे समय से हो रहा है। कोई कहता है कि शिक्षा के कारण इस तरह की बुराइयां आती हैं। परंतु हमारा अनुभव कहता है कि पढ़े-लिखे लोग इस तरह की बुराइयों में आजकल अधिक उलझ रहे हैं। सोशल मीडिया पर इसके प्रमाण देखे जा सकते हैं। वैसे एक बात और, युवा शक्ति के लिए हमारे पास काम तो बहुत है, पर शायद उन्हें हम दे ही नहीं पा रहे हैं। रोजगार का शायद सही बटवारा नहीं हो पा रहा है। किसी को एक करोड़ का पैकेज है तो किसी के पास महीने के दस हजार रुपए की नौकरी या इतना काम नहीं है।
और हां, खबरों में युवा शक्ति के दुरुपयोग के और भी उदाहरण देखने को मिल जाते हैं। कहीं युवा शक्ति आनलाइन फ्राड करने में लगा हुआ तो कहीं अपराध की दुनिया में सक्रिय हो रहा है। यह सब कहीं न कहीं रोजगार न मिलने के कारण ही माना जा रहा है। कहते हैं न, खाली दिमाग शैतान का घर। सो कोई काम नहीं होगा तो दिमाग खाली रहेगा। और दिमाग खाली रहेगा तो हम सकारात्मक नहीं, नकारात्मक ही सोचेंगे। मानव स्वभाव है, बुराइयों की तरफ हम जल्द आकर्षित होते हैं।
तो सबसे पहले हमें युवा शक्ति को सकारात्मक दिशा की ओर ले जाना होगा। और यह तभी संभव है, जब हमारे मार्गदर्शक हमें सही दिशा की ओर जाने दें। वैसे एक सच यह भी है कि नई पीढ़ी आज की पुरानी पीढ़ी से बेहतर सोचती दिख रही है। बस, उसे सोशल मीडिया से ही ज्यादा खतरा है। हमारे मार्गदर्शक हमें धर्म, संप्रदाय और जाति के भंवर में फंसाकर अपनी राजनीति करते हैं। अपनी रोटियां सेकते हैं। हमारी ऊर्जा का उपयोग करते हैं। फिर हमें, मानसिक गुलाम बनाकर हमारा शोषण करते हैं। बस, नई पीढ़ी को यह सोच विकसित करनी होगी। हम सकारात्मक दिशा की ओर चलें, सकारात्मक सोचें और नए भारत को गढ़ें। बढ़ती जनसंख्या को चिंता कारण नहीं, देश की समृद्धि का कारक बनाएं। जय हिंद।
- संजय सक्सेना
Post a Comment