हिमाचल की तर्ज पर कर्नाटक....बगावत का दौर, मोदी - शाह व्यक्तिगत फोन कर रहे... फिर भी फैल रहा रायता...

नई दिल्ली । कर्नाटक में भाजपा का हाल हिमाचल विधानसभा चुनाव जैसा हो गया है। बागियों ने ठीक-ठाक मुसीबत बढ़ा रखी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कमान अपने हाथ में लेकर आक्रामक बैटिंग तेज कर दी है। केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, मनसुख मंडाविया, प्रह्लाद पटेल लगातार राज्य में कैंप कर रहे हैं, लेकिन इतने से काम नहीं चल पा रहा है। अगले सप्ताह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी प्रचार में उतरेंगे। प्रधानमंत्री खुद 20 जनसभा और रोड-शो करने वाले हैं। कहानी बस इतनी है कि मुख्य लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच है। भाजपा को बागियों ने परेशान कर रखा है और प्रधानमंत्री खुद फोन करके लोगों को मना रहे हैं। पीएम मोदी वरिष्ठ नेता केएस ईश्वरप्पा से लेकर अबतक एक दर्जन से अधिक नेताओं को फोन कर चुके हैं। अब देखिए आगे क्या होता है?
पटना और हैदराबाद में इसी तरह की हवा है। हैदराबाद के एक बड़े नेता ने फोन पर बताया कि विपक्षी एकता का मंच बनेगा। इसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बड़ी भूमिका रहेगी। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव इसके लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं। बताते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को नीतीश कुमार ने इसका संकेत भी दे दिया है। इस बारे में तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी चर्चा हो रही है। राजद और जद(यू) दोनों में समान सम्मान पाने वाले एक अन्य नेता का कहना है कि ज्यादा समय नहीं है।
राजद और जद(यू) दोनों में समान सम्मान पाने वाले एक अन्य नेता का कहना है कि ज्यादा समय नहीं है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव का नतीजा आने के बाद जुलाई-अगस्त तक इसकी रुपरेखा भी बन जाने की उम्मीद है। क्योंकि इसके बाद छत्तीसगढ़, म.प्र., राजस्थान में विधानसभा चुनाव की धूम रहेगी और 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए समय भी नहीं मिल पाएगा।।

कांग्रेस पार्टी के पूर्व सांसद राहुल गांधी का पूरा ध्यान कर्नाटक पर है। मल्लिकार्जुन खरगे को भी पता है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के जो नतीजे आएंगे, वह दिल्ली के राजनीतिक पारे में बड़ा उलटफेर करेंगे। लिहाजा मल्लिकार्जुन खरगे हर रोज तमाम कांग्रेस के बड़े नेताओं से अपडेट ले रहे हैं। राज्य के प्रभारी रणदीप सुरजेवाला के लिए करो या मरो जैसा टाइम चल रहा है। यहां से हाथ लगी सफलता उन्हें हरियाणा विधानसभा चुनाव में काम आएगी। मीडिया प्रभारी के तौर पर उनके पास अच्छा अनुभव रहा है। लिहाजा सुरजेवनाला ने सभी घोड़े खोल दिए हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा भी प्रचार के लिए जा रही हैं। इन सबके बावजूद प्रदेश कांग्रेस प्रमुख डीके शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दारमैया को लेकर हलचल बनी हुई है।
राहुल गांधी के एक करीबी रणनीतिकार हैं। खेल करते रहते हैं। फिर भी सब केन्द्रीय गृहमंत्री के मास्टर स्ट्रोक से घबराए रहते हैं। हालांकि कांग्रेस के पूर्व महासचिव का कहना है कि हम जीते बैठे हैं। बस 10 जनपथ(सोनिया गांधी का आवास) और 24 अकबर रोड (कांग्रेस मुख्यालय) हमारे नेताओं को आपस में साधे रहे।
कामयाबी के बाद भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को तकलीफ क्यों है?
प्रयागराज में उमेश पाल हत्याकांड प्रकरण ने अभी भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नींद हराम कर रखी है। उ.प्र. में लोकभवन के सूत्र बताते हैं कि जिस दिन असद और गुलाम को मुठभेड़ में मार गिराने की सूचना आई थी। मुख्यमंत्री सचिवालय के चेहरे चमक उठे थे। उ.प्र. सरकार इसे माफिया को मिट्टी में मिलाने के आपरेशन की सफलता के रूप में देख रही थी। यह खबर प्रयागराज में खूब तेजी से चल रही है कि इस सफलता के लिए एसटीएफ को पूर्वांचल के किसी खास मुखबिर और माफिया से मदद लेनी पड़ी थी। माफिया गुड्डू बमबाज का परिचित बताया जाता है।
महाराष्ट्र में एनसीपी प्रमुख शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार में राजनीतिक रस्साकशी चल रही है। दिल्ली से लेकर मुंबई तक के कई भाजपा नेता इसमें कूदफांद कर रहे हैं। एक साहब तो बाकायदा इसका श्रेय भी महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फड़णवीस को दे रहे हैं। उनका कहना है कि दिल्ली के नेताओं के संकेत पर फड़णवीस ने हमेशा अजीत पवार से अपनी यारी को बनाए रखा है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले को भी राजनीतिक गुल खिलने की उम्मीद है। मुंबई कन्वेंशन में जहां अजीत पवार नहीं पहुंचे वहीं शिवसेना के संजय राऊत भी अब चुप रहने में भलाई समझ रहे हैं। वहीं कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री का कहना है कि अजीत पवार जुड़े ही कब थे जो टूट जाएंगे? वह शरद पवार की राजनीतिक हैसियत थी कि उन्हें मजबूरन आना पड़ा था। सूत्र का कहना है कि यह एनसीपी का आंतरिक मामला है। हमें केवल इतना कहना है कि लोग कांग्रेस के टूटने की उम्मीद लगाकर हमें चेता रहे थे, जबकि शिवसेना टूट गई और एनसीपी खुद को सहेजने में जुटी है।

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