भोपाल इंदौर के मास्टर प्लान पर अफसरों - नेताओं का गठजोड़ हावी, पीएम की मीटिंग का भी पालन नहीं कर रहे सीएम शिवराज...

भोपाल। न भोपाल का मास्टर प्लान आया और न इंदौर का। लगता है मध्य प्रदेश के सरकार पर या तो भू माफिया हावी है, या कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार का रिमोट ही भू माफिया के पास है..? कुछ भी हो, मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नही चलती। सीएम शिवराज उन पर भारी हैं। नही तो दो साल पहले पीएम की बैठक के बाद ऐलान करने के बावजूद सीएम शहरों का मास्टर प्लान लागू नहीं कर पाए। भोपाल में माफिया इतना हावी है कि दस साल से मास्टर प्लान का पता नही है। वल्लभ भवन में बैठक होती है, हर बार नई आपत्ति लगती है और प्लान टल जाता है।प्रधानमंत्री की सलाह भी कौने में पड़ी है।

 प्रदेश के शहरों का बहुप्रतीक्षित मास्टर प्लान मुख्यमंत्री सचिवालय में अटक गया है। नगरीय विकास और आवास विभाग द्वारा दावे-आपत्ति बुलाने के बाद संशोधित मास्टर प्लान का प्रस्ताव मुख्य सचिव की सहमति के साथ मुख्यमंत्री सचिवालय भेजा गया था, लेकिन उसे हरी झंडी नहीं मिल पा रही है। भोपाल के मास्टर प्लान की अवधि 2005 में समाप्त हो चुकी है। वहीं, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर के मास्टर प्लान की समय अवधि 2021 में समाप्त हो गई है।
मुख्यमंत्री ने नवंबर 2021 में बनारस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बैठक में शामिल होने के बाद सभी मास्टर प्लान एक महीने के अंदर तैयार करने के निर्देश दिए थे। नगरीय विकास और आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने मास्टर प्लान तैयार तो करवाए, लेकिन चुनावी वर्ष होने के कारण इसके प्रस्ताव फिर अटक गए। इन शहरों के अनियोजित विकास के चलते जनता में भी खासी नाराजगी है। बावजूद इसके राज्य सरकार ने अब तक मास्टर प्लान का प्रकाशन नहीं कराया है।
अब फिर मुख्यमंत्री सचिवालय मास्टर प्लान को लेकर पुनर्विचार कर रहा है। बता दें कि कुछ दिन पहले ही सांसद शंकर लालवानी के नेतृत्व में इंदौर के प्रबुद्धजनों का एक दल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिला था और इंदौर के मास्टर प्लान को लेकर सुझाव दिए एवं इसे शीघ्र लागू करने का आग्रह किया था।
इंदौर-भोपाल में तेजी से हो रहे विकास कार्य के कारण कई आवासीय क्षेत्र व्यावसायिक क्षेत्र में बदल गए हैं, लेकिन मास्टर प्लान न होने से रहवासियों को एफएआर (फ्लोर एरिया रेशियो) सहित अन्य गतिविधियों में नुकसान हो रहा है। राजधानी की चूनाभट्टी कोलार रोड छह लेन बनाने का कार्य शुरू हो गया है, लेकिन सड़क से लगे आवासीय क्षेत्रों में भवन निर्माण का एफएआर नहीं बढ़ाया गया है। चूनाभट्टी में अब भी पुराना एफएआर निर्धारित है। घनी आबादी होने के बाद भी कम एफएआर होने के कारण भूमि का समुचित तरीके से उपयोग नहीं हो पा रहा है। इससे निर्माण कार्य कम हो रहे है और शासन को राजस्व क्षति हो रही है। चूनाभट्टी के रहवासियों ने शासन से एफएआर बढ़ाने की मांग की है। मास्टर प्लान न बनने से यह समस्या आ रही है।
अफसरों और नेताओं का गठजोड़ कर रहा काम
असल बात ये है कि मध्य प्रदेश में भूमाफिया के नाम पर एक नेताओं और अफसरों का गठजोड़ भी काम कर रहा है। जहां प्रदेश के मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री अवैध क्षेत्र में फार्म हाउस और उन पर मनमाने निर्माण करने के आरोपी हों, वहां किससे उम्मीद की जाए? राजधानी भोपाल में आम आदमी का अतिक्रमण बुलडोजर से तोड़ा दिया जाता है, लेकिन अफसरों के मकान अवैध क्षेत्र में, बने हैं। निर्माण की अनुमति भी वहां नही दी जाती, पर बंगले तन गए हैं। और सत्ता के बैठे नेताओं की तो गिनती करना भी मुश्किल है, जो इस समय जमीनों के काले खेल कर रहे हैं। करोड़ों की सरकारी जमीनें कैसे निजी हो गईं, पता ही नही चला। तालाबों के किनारे, डूब क्षेत्र, जंगल की जमीन, सब माफिया के कब्जे में है। भोपाल इंदौर में अरबों का जमीन घोटाला पिछले दस सालों के दौरान हुआ होगा। पर मास्टर प्लान लागू नहीं होगा। 

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