संपादकीय... मिलेट्री स्टेशन पर फायरिंग


पंजाब में एक तरफ खालिस्तान वाला मामला फिर से गरमाता दिखने लगा है। खालिस्तान के समर्थन में आंदोलन और लोगों को एकत्र करने वाले अमृतपाल सिंह को पुलिस अभी तक ढूंढ नहीं पाई है, इस बीच बठिंडा मिलिट्री स्टेशन पर बुधवार तडक़े फायरिंग की घटना हो गई। यह घटना जितनी गंभीर है, उतनी ही रहस्यमय भी साबित हो रही है। सेना के चार जवानों की मौत तो एक बड़ा सदमा है ही, उससे भी बड़ी बात यह है कि इस मिलिट्री स्टेशन की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर ऐसे सवाल उठे हैं, जो हमारी सेना की छवि के अनुरूप नहीं लगते।
हालांकि मिलेटी स्टेशन पर फायरिंग की घटना को लेकर शुरू में ही कह दिया गया कि यह कोई आतंकी हमला नहीं है, बाहर से कोई नहीं आया। यही आज तक माना जा रहा है। इसे फै्रक्ट्रिसाइड यानी भ्रातृहत्या बताया गया। यानी किसी वजह से कोई नाराज सैनिक खुद पर काबू नहीं रखा पाया और गुस्से में फायरिंग कर उसने साथी जवानों की जान ले ली। लेकिन दो दिन पहले इंसास राइफल और उसकी गोलियां गायब हुई थीं, जिनका इस हमले में इस्तेमाल होने की बात कही जा रही है। अगर यह बात सही है तो इसका मतलब यह एक सुनियोजित घटना थी।
यह भी कहा जा रहा है कि हमलावर एक से ज्यादा थे। कुर्ता-पायजामा पहने दो नकाबपोशों को जंगल की ओर भागते देखा भी गया। यह बात भी इस घटना के फै्रक्ट्रिसाइड होने की संभावना को खंडित करती है। दूसरी बात यह कि जब हमलावरों को पकड़ा नहीं जा सका है और न ही उनकी पहचान हो पाई है तो फिर यह बात दावे से कैसे कही जा सकती है कि इसके पीछे कोई आतंकी साजिश नहीं हो सकती? क्या यह नहीं हो सकता कि सेना से जुड़े एकाध लोगों के माध्यम से इस पूरी साजिश को अंजाम दिया गया हो? क्या ऐसा भी हो सकता है कि जिन हमलावरों को जंगल की ओर भागा माना जा रहा है, वे मौका निकालकर किसी तरह वापस कैंट में आ गए हों।
यदि अभी तक उनकी पहचान नहीं हो पाई है तो एक बार अन्य जवानों में मिल जाने के बाद उन्हें अलग करना मुश्किल होगा। कुछ और भी तथ्य हैं जिनके ठोस जवाब फिलहाल नहीं मिल रहे। कहा जा रहा है कि इंसास राइफलों के लापता होने की रिपोर्ट भी मंगलवार को दर्ज कराई गई, यानि लापता होने के दो दिन बाद। यही नहीं, फायरिंग की घटना की रिपोर्ट दर्ज कराने में भी असाधारण देरी देखी गई। यह घटना तडक़े 4.30 बजे की है, लेकिन पुलिस स्टेशन को इसकी सूचना दोपहर 2.56 बजे दी गई। पुलिस डायरी में इस घटना की पहली एंट्री दिन में 3.03 बजे होना बताई गई है। यह भी संदेह तो पैदा करती ही है।
पंजाब में पहले भी आतंकी हमला हो चुका है। और अब खालिस्तान वाला मामला फिर से उठता दिखने लगा है। इसलिए कहां किसकी सरकार है, यह देखे बिना इस मामले की उच्च स्तरीय जांच होना चाहिए। चूंकि यह देश की सुरक्षा और सेना की छवि से जुड़ा अत्यंत महत्वपूर्ण मामला है इसलिए इसमें किसी तरह की कयासबाजी नहीं की जानी चाहिए। अनुमानों के आधार पर दावे और खतरनाक साबित हो सकते हैं। उन तमाम पहलुओं को अनदेखा भी नहीं किया जा सकता, जो सोचे जा रहे हैं। स्वाभाविक तौर पर सेना और सरकार दोनों ने इसे काफी गंभीरता से लिया है और इस पूरे प्रकरण के हर पहलू पर बारीकी से जांच करवाई जा रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जांच के बाद न केवल सभी सवालों के जवाब मिलेंगे बल्कि सुरक्षा व्यवस्था में आई खामियों को भी दुरुस्त किया जाएगा।
और जहां तक पंजाब सरकार का मामला है, तो उसे अपने सुरक्षा बलों को और अधिक दुरस्त करने होंगे। इंटेलीजेंस टीम को भी दुरस्त करने की जरूरत जान पड़ती है। आतंकवाद का खतरा तो इस राज्य पर मंडराता ही रहता है, पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई भी यहां सक्रिय रहती है। अवैध घुसपैठ को रोकना बड़ी जिम्मेदारी है। हालांकि सीमा पर सेना से लेकर सीमा सुरक्षा बल भी तैनात हैं, लेकिन जो अपने नाम-पता बदलकर राज्य में आ जाते हैं, उनकी पड़ताल भी जरूरी है। केंद्र-राज्य के संबंध कैसे भी हों, संघीय प्रणाली में आंतरिक सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण मसला होता है। इसमें सबको साथ मिलकर काम करना होता है। उम्मीद है, सब कुछ ठीक करने के प्रयास तेज होंगे।
- संजय सक्सेना

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